पत्रकारों के लिए लगातार बढ़ रही हैं चुनौतियां, वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे पर क्या सोचते हैं सीरियाई पत्रकार
वर्तमान में पत्रकारों के लिए कई तरह की चुनौतियां और मुश्किलें बढ़ गई हैं। फेक न्यूज के दौर पर उनका महत्व भी काफी बढ़ गया है।
नई दिल्ली। पूरी दुनिया में जर्नलिस्म और जर्नलिस्ट दोनों का ही तरीका मौजूदा समय में बदल चुका है। वर्तमान में इन दोनों के लिए चुनौतियां भी लगातार बढ़ी हैं। वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे के मौके पर दैनिक जागरण ने सीरियाई पत्रकार वईल अवाद से उनके अनुभव और उनके विचारों को साझा करने की कोशिश की। आपको बता दें कि अवाद इराक, सऊदी अरब अफगानिस्तान के वार जोन में रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के खात्मे से पहले और बाद में भी उन्होंने इस खतरनाक क्षेत्र में अपनी रिपोर्टिंग को अंजाम दिया है। उन्होंने दुनिया के बड़े मीडिया ग्रुप हाउस के साथ काम किया है।
अफगानिस्तान के अपने अनुभव के बारे में वईल अवाद ने बताया कि वहां पर प्रेस केवल काबुल के आसपास के इलाकों तक ही सीमित है। इसके आगे आज भी प्रेस और पत्रकारों को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अफगानिस्तान के दूर-दराज के इलाकों में तो तालिबान का लोगों और पत्रकारों पर डर और असर साफ दिखा्र देता है। ऐसा ही इराक का भी है। यहां पर जब अमेरिका ने अपने कदम रखे तो प्रेस की आजादी काफी हद तक खो गई। उससे पहले सद्दाम हुसैन के दौर में भी बंदिशें थी। इस्लामी मुल्कों में पत्रकारिता की बात करते हुए उन्होंने ये भी बताया कि यहां पर प्रेस आजाद नहीं है।
शिया और सुन्नी सरकारें जहां अपने हक और दूसरों के खिलाफ खबरों को तूल देती हैं। एशिया में पत्रकारिता की बात करते हुए उन्होंने माना कि यहां पर भी कई देशों में पत्रकारों पर बंदिश है। चीन, तुर्की और अमेरिका इसका जीता-जागता उदाहरण है। इन देशों ने सही खबर दिखाने वाले या अपनी मनचाही खबर ना छापने की वजह से कई पत्रकारों के जेल के अंदर डालने का काम किया है। वो मानते हैं कि वर्तमान में पत्रकारों के लिए चुनौतियां काफी बढ़ गई हैं।
बीते कुछ समय से विभिन्न देशों की सरकारों और राजनीतिक पार्टियां अपने हितों के लिए फेक न्यूज को बढ़ावा देती रही हैं। वर्तमान में कई पत्रकार बिना किसी तह तक गए बिना इन फेक न्यूज के आधार पर अपनी खबरों को आगे बढ़ा देते हैं। प्रतिद्वंदिता के अलावा पत्रकारों के लिए सही खबर देने की चुनौतियां अब ज्यादा है। फेक न्यूज के दौर में सही खबरों को देने वाले अब कम हैं। वहीं ऐसे पत्रकारों की कमी भी दिखाई देती है जो अपनी खबरों को सच्चाई की गहराई तक जाकर करते हैं। ये कमी किसी एक देश तक सीमित नहीं है बल्कि कई देशों में एक जैसी ही है। पहले ऐसा नहीं होता था। पत्रकारों पर हमले बीते कुछ वर्षों में बढ़े हैं जो चिंता का विषय हैं।
अवाद का कहना है कि सोशल मीडिया और इंटरनेट और स्मार्ट फोन के दौर में हर कोई जर्नलिस्ट हो गया है। लेकिन इससे खतरे भी बढ़े हैं। सबसे बड़ा खतरा झूठी खबरों की बाढ़ का है जो सोशल मीडिया के जरिए बिना सच जाने फैलाई जाती है। यूजर स्मार्ट फोन से वीडियो बनाता है और उसको पोस्ट कर देता है। इस तरह के लाखों करोड़ों वीडियो के आधार पर दूसरे लोग अपना विचार बनाते हैं और उसको भी सोशल मीडिया पर साझा करते हैं। यहां पर पत्रकारों के लिए चुनौतियां बढ़ जाती हैं कि कैसे वो एक सही खबर को लोगों के सामने पेश करे। इसके दो रास्ते हैं या तो वो तथ्यों की तह तक खोज करे या फिर ऊपरी तह पर ही रहकर खबरों को आगे बढ़ा दे। अफसोस की बात है कि वर्तमान में पत्रकार ऐसा ही कर भी रहे हैं। हमारा समाज आज भी अखबार में या टीवी पर दिखाई जाने वाली खबरों पर विश्वास करता है, लिहाजा ये हर पत्रकार की जिम्मेदारी बनती है कि वो सच दिखाए।