सरल शब्दों में सीधी और सच्ची बात गढ़कर अमर हो गया 'मधुशाला' का कालजयी रचनाकार
1926 में 19 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह श्यामा से हुआ। लेकिन 1936 में श्यामा मृत्यु हो गई। पांच वर्ष बाद 1941 में बच्चन का दूसरा विवाह तेजी सूरी से हुआ।
1- मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला
' किस पथ से जाऊँ? ' असमंजस में है वह भोलाभाला
अलग- अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूँ
' राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला॥
2- क्षीण, क्षुद्र, क्षणभंगुर, दुबर्ल मानव मिट्टी का प्याला
भरी हुई है जिसके अंदर कटु- मधु जीवन की हाला
मृत्यु बनी है निदर्य साकी अपने शत- शत कर फ़ैला
काल प्रबल है पीनेवाला, संसृति है यह मधुशाला॥
3- वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला
जिसमें मैं बिंबित- प्रतिबिंबित प्रतिपल, वह मेरा प्याला
मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है
भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला॥
नई दिल्ली [ जागरण स्पेशल ]। लोगों की जुबान पर रहने वाली मधुशाला की उक्त पंक्तियां हिंदी के महान कवि हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित है। बच्चन जी ने इस 'हालावाद' के द्वारा व्यक्ति के जीवन के समस्त नीरसताओं को स्वीकार करते हुए भी उससे मुँह मोड़ने के बजाय उसका उपयोग करने की सलाह दी है। समाज में व्याप्त बुराइयों और कमियों के बावजूद बच्चन की मधुशाला मधुर और आनंदपूर्ण क्षण में जीने की ललक कायम करती है। बच्चन के 'हालावाद' का जीवन-दर्शन भी यही है। यह पलायनवाद के सख्त खिलाफ है। 18 जनवरी, 2003 यह प्रसिद्ध कवि व लेखक इस दुनिया को अलविदा कह गया।
मधुशाला तत्कालीन समाज की वास्तविकता की शुष्कता को अपनी मनस्तरंग से सींचकर हरी-भरी बना देने की सशक्त प्रेरणा है। यह सत्य है कि बच्चन जी की इन कविताओं में रूमानियत और क़सक़ है, लेकिन हालावाद ग़म ग़लत करने का निमंत्रण है। ग़म से घबराकर ख़ुदक़शी करने का नहीं। बच्चन जी ने बडे साहस, धैर्य और सच्चाई के साथ सीधी-सादी भाषा और शैली में सहज कल्पनाशीलता और जीवंत बिंबों से सजा-सँवारकर अनूठे गीत दिए। 18 जनवरी, 2003 को मुंबई में उनका निधन हो गया।
सीधी, सरल और जीवंत भाषा
बच्चन जी ने मध्यवर्ग के विक्षुब्ध, वेदनाग्रस्त मन को वाणी का वरदान दिया। छायावाद की लाक्षणिक वक्रता की जगह उन्होंने सीधी, सरल और जीवंत भाषा में अपनी रचनाएं लिखी। उनकी कविताएं सहज और संवेदनापूर्ण होती थीं। दरअसल, वह छायावाद के अति सुकुमार्य, माधुर्य और उसकी अति वैयक्तिक सूक्ष्मता और लक्षणात्मक अभिव्यंजना शैली से उकता गए थे। इसके विपरीत उस वक्त गजलों का प्रभाव था। उसमें चमक और दमक थी। गजलें दिल पर असर करने की ताकत थी। उधर, हिंदी कविता जनमानस और जन रुचि से बहुत दूर हो गई थी।
छात्र जीवन में ही लिखने का शौक
हरिवंशराय बच्चन को छात्र जीवन से ही कविता लिखने का शौक था। उच्च शिक्षा ग्रहण करने के दौरान फारसी के प्रसिद्ध कवि उमर ख्य्याम की रुबाईयों का हिंदी में अनुवाद किया। यह उस वक्त नौजवानों में काफी लोकप्रिय थी। इस अनुवाद के बाद बच्चन जी नौजवनों के बीच लोकप्रिय बन गए। इसी से उत्साहित होकर उन्होंने उसी शैली में अने रचनाएं लिखी जो समय के साथ मौलिक हो गईं। मधुशाला और मधुबाला में इस शैली का प्रयोग किया गया। उनकी प्रसिद्ध काव्य कृतियों में निशा निमंत्रण, मिलनयामिनी, धार के इधर उधर, आदि भी प्रमुख हैं।
उनकी गद्य रचनाओं में - क्या भूलूं क्या याद करूं, टूटी छूटी कडियाँ, नीड़ का निर्माण प्रमुख है। विषय और शैली की दृष्टि से स्वाभाविकता बच्चन की कविताओं का उल्लेखनीय गुण है। उनकी भाषा बोलचाल की भाषा होते हुए भी प्रभावशाली है। लोकधुनों पर आधारित भी उन्होने अनेकों गीत लिखें हैं। व्यक्तिप्रधान गीतों के कवि के रूप में उन्होंने आत्मपरकता, निराशा और वेदना को अपने काव्य का विषय बनाया है।
....बच्चन से हरिवंशराय बच्चन तक
1- बच्चन का जन्म 27 नवंबर, 1907 को इलाहाबाद से सटे प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव बाबूपट्टी में एक कायस्थ परिवार मे हुआ था। इनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव तथा माता का नाम सरस्वती देवी था। इनको बाल्यकाल में 'बच्चन' कहा जाता था। बाद में ये इसी नाम से मशहूर हुए।
2- इन्होंने कायस्थ पाठशाला में पहले उर्दू की शिक्षा ली जो उस समय कानून की डिग्री के लिए अनिवार्य थी। प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में स्नातकोत्तर किया। इसके बाद कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू बी यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएच. डी. पूरी की।
3- 1926 में 19 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह श्यामा बच्चन से हुआ। उस वक्त श्यामा की आयु 14 वर्ष थीं। लेकिन 1936 में श्यामा मृत्यु हो गई। पांच वर्ष बाद 1941 में बच्चन का दूसरा विवाह तेजी सूरी से हुआ। तेेजी रंगमंच से जुड़ी थीं। तेजी बच्चन से अमिताभ तथा अजिताभ दो पुत्र हुए। अमिताभ बच्चन एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। तेजी बच्चन ने हरिवंश राय बच्चन द्वारा शेक्सपियर के अनूदित कई नाटकों में अभिनय का काम किया।
4- 1955 में कैम्ब्रिज से वापस आने के बाद आपकी भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त हो गई। वह राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे और 1976 में आपको पद्मभूषण की उपाधी मिली। इससे पहले आपको 'दो चट्टानें' (कविता–संग्रह) के लिए 1968 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला था।
5- 1955 में, हरिवंशराय बच्चन दिल्ली में एक्सटर्नल विभाग में शामिल हुए, जहा उन्होंने वर्षों तक सेवा की और हिंदी भाषा के विकास में भी जुड़े। 1984 में उन्होंने अपनी आखिरी कविता लिखी “एक नवंबर 1984” जो इंदिरा गाँधी हत्या पर आधारित थी।