फरीदाबाद से जब्त विस्फोटक क्यों भेजा गया श्रीनगर? नौगाम थाने में हुए ब्लास्ट की इनसाइड स्टोरी
जम्मू-कश्मीर पुलिस की एक जांच में लापरवाही सामने आई, जिसमें विस्फोटकों के सैंपल लेने के दौरान धमाका हुआ। इस हादसे में कई लोगों की जान चली गई। विशेषज्ञों के अनुसार, बम निरोधक विशेषज्ञ की गैरमौजूदगी में सैंपल लेना और विस्फोटकों को गलत तरीके से संभालना चूक थी। पूर्व डीजीपी ने एसओपी के उल्लंघन की बात कही और विस्फोटकों को श्रीनगर ले जाने के फैसले पर सवाल उठाया।

फरीदाबाद से जब्त विस्फोटक क्यों भेजा गया श्रीनगर (फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)
नीलू रंजन, जागरण, नई दिल्ली। तीन पोस्टरों से शुरू हुई जांच को 3000 किलोग्राम विस्फोटकों की बरामदगी और एक दर्जन से अधिक आतंकियों की गिरफ्तारी तक पहुंचाकर जांच की मिसाल कायम करने वाली जम्मू कश्मीर पुलिस की कई स्तरों पर लापरवाही भारी पड़ गई।
बरामद अमोनियम नाइट्रेट और डेटोनेटर के सैंपल लेने के दौरान हुए धमाके में एक दर्जन लोगों की जान चली गई और दो दर्जन से अधिक घायल हो गए । उत्तरप्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह इसे क्राइम एविडेंस के रूप में विस्फोटकों के संभालने के लिए तैयार एसओपी का उल्लंघन बताते है।
फरीदाबाद में क्या-क्या मिला था?
वहीं विस्फोटकों से जुड़े मामलों की नोडल एजेंसी एनएसजी के एक पूर्व महानिदेशक बम निरोधक विशेषज्ञ की गैरमौजूदगी में फारेंसिक एक्सपर्ट द्वारा सैंपल लिए जाने को बड़ी चूक मानते हैं। एनएसजी के पूर्व प्रमुख के अनुसार अमोनिया नाइट्रेट में विस्फोट अपने आप नहीं हो सकता है। उसके साथ डेटोनेटर में स्पार्क जरूरी होता है ।
फरीदाबाद में 360 किलो अमोनियम नाईट्रेट के साथ-साथ 20 डेटोनेटर और 20 टाइमर भी मिले थे और उन्हें सबूत के तौर पर थाना परिसर में रखा गया था । उनके अनुसार अमोनियम नाइट्रेट का सैंपल तो आसानी से लिया जा सकता है । लेकिन डेटोनेटर का सैंपल काफी सावधानी से लेना पड़ता है।
सामान्य तौर पर डेटोनेटर में बैटरी के इस्तेमाल से स्पार्क कर विस्फोट किया जाता है। लेकिन कई बार डेटोनेटर में ज्यादा तेज कंपन और तेज झटके कारण भी विस्फोट हो सकता है। यदि डेटोनेटर को घर पर ही तैयार किया गया हो, तो इसकी आशंका और बढ़ जाती है ।
कसे रोका जा सकता था हादसा?
एनएसजी के पूर्व महानिदेशक के अनुसार विस्फोटकों और डेटोनेटर की पहचान सिर्फ बम डिस्पोजल स्क्वायड से जुड़ा प्रशिक्षित जवान ही कर सकता है। फारेंसिक विशेषज्ञ को सिर्फ उसमें प्रयुक्त रसायनों की पहचान करनी होती है। उनके अनुसार यदि विस्फोटक और डेटोनेटर को अलग-अलग रखा जाता और बम स्वायड दस्ते द्वारा सैंपल लेने की प्रक्रिया पूरी की जाती तो यह हादसा नहीं होता।
जबकि विक्रम सिंह विस्फोटकों को श्रीनगर ले जाने के जम्मू कश्मीर पुलिस के फैसले पर ही सवाल उठाते हैं । इसे एसओपी का उल्लंघन और लापरवाही बताते हुए उन्होंने कहा कि क्राइम एविडेंस के रूप में आधा किलो अमोनियम नाइट्रेट ले जाना काफ़ी था। बाकी विस्फोटकों का वीडियो अदालत के सामने सबूत के रूप में पेश किया जा सकता था । फरीदाबाद से श्रीनगर तक विस्फोटकों को ले जाने वाली टीम भी लगातार खतरे में रहीं होगी ।

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