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    कांग्रेस की खराब हालत के लिए राहुल और सोनिया दोनों ही जिम्‍मेदार, जानें कैसे

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Fri, 11 Aug 2017 04:16 PM (IST)

    राहुल गांधी की राजनीति में कम समझ और सोनिया गांधी की बिगड़ती तबियत कांग्रेस को लगातार बर्बाद कर रही है।

    कांग्रेस की खराब हालत के लिए राहुल और सोनिया दोनों ही जिम्‍मेदार, जानें कैसे

    सुनीता मिश्र

    बीते सोमवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश के बयान ने एक बार फिर से राजनीतिक गलियारों में कांग्रेस पार्टी की तरफ सभी का ध्यान खींच लिया है। जयराम रमेश ने कहा कि कांग्रेस अस्तित्व के संकट से गुजर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा प्रमुख अमित शाह की ओर से मिल रही चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए हमें खुद को लचीला बनाना होगा, नहीं तो हम अप्रासंगिक हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि सल्तनत जाने के बाद भी कांग्रेस सुल्तान जैसा बर्ताव कर रही है। हालांकि कांग्रेस विचार के तौर पर राजनीतिक जमीन पर अभी भी टिकी हुई है और उसके संगठन का आधार भी है, लेकिन ये सब चीजें पार्टी में कमजोर नेतृत्व के कारण कारगार सिद्ध नहीं हो पा रही हैं। कांग्रेस की डूबती लुटिया के कई कारण हैं। पहला सोनिया गांधी की बिगड़ती तबियत के कारण पार्टी में उनके मजबूत नेतृत्व का खलना।

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    दूसरा राहुल गांधी को राजनीति की कम समझ और सार्वजनिक मंच पर अपने तथ्यहीन भाषणों से पार्टी की किरकिरी कराना और तीसरा मुख्य कारण है प्रियंका गांधी वाड्रा को पार्टी से दूर रखना। प्रियंका ही एक ऐसा तुरप का इक्का हैं जो कांग्रेस की डूबती नैया को किनारे लगा सकती हैं। ये वे मुख्य कारण हैं जिन्हें शायद आम से लेकर खास हर व्यक्ति जानता है, लेकिन इसके अलावा और भी कई कारण ऐसे हैं जिससे कांग्रेस खुद ब खुद जनता से दूर होती चली जा रही है। 1जयराम रमेश का हालिया बयान कहीं ना कहीं पार्टी में पनप रही गुटबाजी की ओर भी इशारा कर रहा है, क्योंकि उन्होंने पार्टी में कई सालों तक काम किया है और वह इसकी कमजोरियों और खूबियों से भलीभांति परिचित हैं।

    कहा यह भी जाता है कि कांग्रेस के नेताओं को अपने ही पार्टी के शीर्ष नेताओं से नहीं मिलने दिया जाता है जिससे पार्टी में आपसी बातचीत के लिए समन्वय स्थापित नहीं हो पा रहा है। कई बार ऐसी भी स्थिति उत्पन्न होती है जब पार्टी के कुछ बड़े नेताओं से घिरे होने के कारण सोनिया गांधी से कांग्रेस के अन्य नेताओं को मिलने की इजाजत भी मिल पाती है। इससे वे राज्य की समस्याओं और हार के कारणों पर आत्ममंथन नहीं कर पाते हैं। कहा जाता है कि इससे इतर कांग्रेस की एक किचन कैबिनेट भी है जिसमें आपस में ही खिचड़ी पकती रहती है! इस कैबिनेट के मुख्य चेहरे न तो जनता से जमीनी रूप से जुड़ने के इच्छुक दिखते हैं और ना ही जनता इनसे मिलकर अपनी समस्याओं का समाधान कर सकती हैं, क्योंकि इनसे आम आदमी का मिलना कठिन माना जाता है।

    वहीं दूसरी ओर इस तरह की धारणा है कि भाजपा का बड़े से बड़ा नेता फिर चाहे वह खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या फिर भाजपा प्रमुख अमित शाह ही क्यों ना हों, आम जन से मिलने और उनकी समस्याओं से रूबरू होने में तनिक भी समय नहीं लगाते हैं। यही कारण है, जिन राज्यों में भाजपा पार्टी के आने की संभावना भी नहीं जताई जा रही थी, वहां उन्होंने भगवा परचम लहराकर साबित कर दिया कि जनता खुद से जुड़ने वालों के साथ है न कि उन लोगों के जो उनसे दूरी बनाने में यकीन रखते हैं। भाजपा शासित अन्य राज्यों में भी वहां के मुख्यमंत्री आए दिन अपने मंत्रियों से प्रदेश की समस्याओं का ब्यौरा मांगकर उसका समाधान करते हैं।

    आज भी अमित शाह यूपी, गुजरात, केरल, त्रिपुरा के साथ अन्य राज्यों में जाकर वहां के लोगों से सीधे मुखातिब होने में यकीन रखते हैं। यही वजह है कि भाजपा एक के एक राज्य में जीत दर्ज करती जा रही है। खैर कांग्रेस में नीचे से ऊपर तक चले आ रहे सामंतवाद को खत्म करने के लिए पार्टी को नए सिरे से सोचना होगा। फिर चाहे वह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हों, राहुल गांधी हों या फिर पार्टी का अन्य सशक्त नेता। पुराने ढर्रे को छोड़कर पार्टी को नया फॉर्मूला और कार्यशैली अपनानी होगी। कांग्रेस पार्टी को मानना होगा कि भारत बदला चुका है, अब पुराने नारे से काम चलने वाला नहीं है। पुराना मंत्र पुराने समय में काम आ चुका है, तब से अब कई पीढ़ियां बदल गई हैं। यदि कांग्रेस खुद को प्रासंगिक रखना चाहती है तो उसे अब इस नई पीढ़ी के अनुसार चलना होगा।

    (लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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