लालू के बिना चुनौतियों से निपटने की जुगत में राजद, आखिर कैसे पाएगी पार
लालू को चारा घोटाले में सजा होने के बाद सबसे बड़ा संकट राजद के सामने है। उसको बिना लालू के कई मोर्चों पर एक साथ लड़ना होगा।
नई दिल्ली [अरविंद शर्मा]। चारा घोटाले में राजद प्रमुख लालू प्रसाद को साढ़े तीन साल की कैद के बाद बिहार की राजनीति में सभी दल अपने हिसाब से रणनीति बनाने में जुटे हैं। राजद के सामने भी यह प्रश्न है कि लालू की गैरमौजूदगी में पार्टी की बागडोर अब कौन संभालेगा। 21 नवंबर को 10वीं बार राजद के निर्विरोध राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद तकरीबन डेढ़ माह से लालू की राष्ट्रीय टीम का गठन अभी बाकी है। जाहिर है, लालू के बिना राजद अपने सारे कमजोर मोर्चे को दुरुस्त करने में जुटा है।
जेल जाने से पहले तेजस्वी को दी अहम जिम्मेदारी
जेल जाने से पहले लालू अपने छोटे पुत्र तेजस्वी यादव को पहले नेता प्रतिपक्ष और बाद में मुख्यमंत्री प्रत्याशी के रूप में आगे बढ़ाकर पार्टी का सर्वमान्य चेहरा बना चुके हैं। संगठन की कमान खुद के पास रखी है। अदालती चक्कर और पार्टी पर चौतरफा हमले को भांपकर प्रदेश राजद की कमान भी अपने सबसे विश्वस्त और समर्पित नेता डॉ. रामचंद्र पूर्वे को सौंपकर लालू इत्मीनान हो चुके हैं, लेकिन राष्ट्रीय और प्रदेश कार्यकारिणी का गठन लगातार टलता आ रहा था।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन
लालू जब नवंबर में पार्टी के अध्यक्ष चुने गए थे तो शायद उन्हें अहसास नहीं रहा होगा कि चारा घोटाले में उन्हें अधिक समय तक जेल में रहना पड़ सकता है। इसलिए संगठन के मोर्चे पर विशेष फोकस नहीं था, लेकिन जेल जाने के पहले लालू ने पार्टी को सहज तरीके से चलाने के लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन जरूरी समझा। पार्टी के सूत्र बताते हैं कि उन्होंने अपने स्तर से आननफानन में पदाधिकारियों की सूची को फाइनल कर दिया है। सिर्फ अधिसूचना निकालना बाकी रह गया है।
कार्यकारी अध्यक्ष की दरकार
नई सूची में कोई ज्यादा फेरबदल नहीं है, लेकिन कुछ नामों पर अंतिम समय तक आलाकमान भी हां-न की स्थिति में था। नई टीम में किसी को कार्यकारी अध्यक्ष नहीं बनाया गया है। कल से होगी प्रमंडलवार बैठक लालू की गैरमौजूदगी में राजद के आंदोलनों को धार देने एवं आगे के कार्यक्रमों की रूपरेखा तय करने के लिए तेजस्वी अभी से तैयारी में जुटे हैं। सोमवार को राजद कोर कमेटी ने बैठक करके तेजस्वी को आगे के कार्यक्रम तय करने के लिए अधिकृत कर दिया। बुधवार से वे प्रमंडलवार बैठकें करने वाले हैं। सबसे पहले पटना की बारी है।
पहली परीक्षा की घड़ी
आपको यहां पर बताना जरूरी होगा कि लोकसभा चुनाव के पहले बिहार में फरवरी में तीन सीटों पर होने वाले उपचुनाव में तेजस्वी यादव के सियासी कौशल की परीक्षा होनी है। लालू की गैरमौजूदगी में तेजस्वी के लिए यह लिटमस टेस्ट जैसा होगा, जिसमें राजद का सीधा मुकाबला भाजपा-जदयू गठबंधन से होगा।
नीतीश और सुशील के सामने होगी मुश्किल
अररिया लोकसभा एवं जहानाबाद विधानसभा सीट पर अभी राजद का कब्जा है। महागठबंधन के बिखरने के बाद बिहार में यह पहला उपचुनाव है। इसमें हार-जीत के मायने होंगे और दूरगामी असर भी। लालू के उत्तराधिकारियों के लिए सियासी दांव-पेंच के अनुभवी नीतीश कुमार एवं सुशील कुमार मोदी की संयुक्त शक्ति के सामने टिके रहना इतना आसान नहीं होगा। जाहिर है, इसके लिए लालू की राजनीतिक शिल्प-शैली एवं मार्गदर्शन की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में लालू को बेल पर जेल से बाहर निकालना राजद की पहली कोशिश होगी। तेजस्वी अगर इसमें कामयाब हो गए तो सारी समस्याओं का समाधान अपने आप निकल आएगा।
कांग्रेस को साधने की होगी दूसरी कोशिश
राजद की दूसरी कोशिश कांग्रेस को साधने की होगी। लालू के वोट बैंक पर सबकी नजर है। जदयू-भाजपा की सियासी दुश्मनी के साथ-साथ कांग्रेस की दोस्ती का आधार भी लालू का परंपरागत वोट बैंक ही है। जेल-बेल के चक्कर में पड़े राजद को नजरअंदाज करके कांग्र्रेस अपना कद विस्तार की कोशिश भी कर सकती है। ऐसे में तेजस्वी को अंदरूनी दो मोर्चे पर भी काम करना पड़ेगा। अपनी पार्टी में दायें-बायें चलने की कोशिश करनेवाले नेताओं को साधकर कांग्र्रेस पर भी नियंत्रण रखने की पहल करनी होगी। लालू के बिना राजद में बहुत दिनों तक सहजता की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। हालांकि राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह के मुताबिक जनता को पता है कि लालू पर लगाए गए आरोप आधारहीन हैं। लालू को जेल में जितना कष्ट होगा, उनके चाहने वाले उतने ही एकजुट होंगे। सियासी लाभ भी उतना ही बड़ा होगा। लालू के जेल जाने से भाजपा को भगाने के लिए समर्थकों को ऊर्जा मिली है।
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