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पाकिस्तान के इशारों पर घाटी में खून बहा रहे हैं डॉक्टर और इंजीनियर

यह सवाल लाजिमी है क्योंकि पिछले साल जुलाई में बुरहान वानी की मौत के बाद अब तक जिन 67 लोगों ने बंदूक थामी है उनमें ज्यादातर पढ़े लिखे हैं

By Rajesh KumarEdited By: Published: Thu, 01 Jun 2017 01:51 PM (IST)Updated: Fri, 02 Jun 2017 12:46 PM (IST)
पाकिस्तान के इशारों पर  घाटी में खून बहा रहे हैं डॉक्टर और इंजीनियर
पाकिस्तान के इशारों पर घाटी में खून बहा रहे हैं डॉक्टर और इंजीनियर

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। पोस्टर ब्वॉय बने हिज्बुल मुजाहिदीन आतंकी बुरहान वानी की पिछले साल जुलाई में हुए एक एनकाउंटर में मौत के बाद लगातार जम्मू कश्मीर सुलग रहा है। सरकार और सुरक्षाबलों की तरफ से तमाम प्रयास किए गए लेकिन वह सारी कोशिशें नाकाफी साबित हो रही है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर घाटी शांत क्यों नहीं हो रही है?

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डॉक्टर- इंजीनियर के हाथों में बंदूक

सुरक्षा एजेंसियों ने जो डेटा इकट्ठा किया है वह और भी चौंकानेवाला है। क्या डॉक्टर और क्या इंजीनियर अब इस तरह के बेहद शिक्षित लोग भी हाथों में बंदूक लेकर देश के खिलाफ मुखालफत पर उतर आए है और जम्मू कश्मीर में आंतक का रास्ता अख्तियार कर लिया है। जो ना सिर्फ एक बड़ी चुनौती है बल्कि एक नई चिंता भी है।

आतंक की राह पर 1 साल में 67 लोग

सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से आए आंकड़ों के मुताबिक, जम्मू कश्मीर में अब आतंकियों की राह पर सिर्फ अनपढ़ ही नहीं बल्कि डॉक्टर की पढ़ाई करनेवाले पीएचडी से लेकर इंजीनियर और एम.फिल से लेकर ग्रेजुएट और स्कूली छात्र तक शामिल है। सुरक्षा एजेंसियों ने जो डेटा इकट्ठा किया है उसके मुताबिक, बुरहान वानी की मौत के बाद से लेकर अब तक यानि एक साल के भीतर 67 स्थानीय लोगों ने आंतक का रास्ता चुना है।

इनमें से पचास लोग दक्षिण कश्मीर के रहनेवाले हैं, जो बुरहान वानी का पैतृक क्षेत्र है। इनमें से 63 लोग ऐसे ऐसे हैं जिनकी उम्र 30 साल से भी कम है। इनमें एक पन्द्रह साल और एक अन्य 16 साल का नवयुवक शामिल है। सिर्फ तीन ही ऐसे लोगों है जिन्होंने दोबार आतंक की राह पकड़ी या फिर जेल की सज़ा काटने के बाद दोबारा बंदूक थामी।

47 लोगों ने हिज्बुल को किया ज्वाइन

डेटा के मुताबिक, दक्षिण कश्मीर के पुलवामा से 9, अवंतिपुरा (त्राल भी शामिल है) से 9, कुलगाम से 13, शोपियां से 11, अनंतनाग से 8 है। जबकि, उत्तरी कश्मीर से जो आतंक की दुनिया में आए हैं उनमें: कुपवाड़ा से दो, हंदवाड़ा से एक, बांदीपुरा से तीन और सोपोर से दो हैं।

तो वहीं, मध्य कश्मीर से पांच लोगों ने बंदूक थामी है। इनमें से तीन बडगाम और दो श्रीनगर के रहनेवाले हैं। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, इनमें से 47 नए स्थानीय लोग हिज्बुल मुजाहिदीन से जुड़े जबकि 18 लश्कर और दो लोग किसी अन्य संगठन से जुड़े हैं। हालांकि, इनमें से दस लोग पहले ही एनकाउंटर्स में मारे गए हैं जबकि पांच की गिरफ्तारी हो चुकी है। सबसे हैरान करनेवाली बात जो सामने आयी है वह है इन सभी के पढ़ाई का स्तर।

बदल रहा है घाटी में आतंकी- पूर्व डीजीपी

इस गंभीर मुद्दे पर जम्मू कश्मीर के पूर्व डीजीपी एम. एम. खजूरिया ने Jagran.com से ख़ास बातचीत में बताया कि घाटी में अब आतंकवाद की परिभाषा बदल रही है। उनमें काफी बदलाव आ रहा है। उसके लिए जहां एक तरफ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का मक़सद है कि युवाओं को ज्यादा से ज्यादा अपनी ओर आकर्षित करना है तो वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम विरोधी भावनाएं भी है।

क्या वानी की मौत से है नए आतंकियों का कनेक्शन

यह सवाल जेहन में आना इसलिए लाजिमी है क्योंकि पिछले साल जुलाई में बुरहान वानी की मौत के बाद अब तक जिन 67 लोगों ने बंदूक थामी है उनमें ज्यादातर पढ़े लिखे हैं। इसके जवाब में पूर्व डीजीपी खजूरिया ने बताया कि इसका सीधे तौर पर बुरहान वानी के एनकाउंटर से कोई संबंध नहीं है। उनका कहना है कि आज पढ़े लिखे लोगों को आतंकवाद की राह पकड़ने की सबसे बड़ी वजह है इंटरनेट और सोशल मीडिया। इसके जरिए आईएसआई को जहां पूरा मौका मिलता है ऐसे शिक्षित लोगों को बरगलाने का तो वहीं तो दूसरी तरफ मुस्लिम विरोधी भावनाएं भी एक बड़ा कारण है।

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