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महाराष्‍ट्र में अब रुक जाएंगे विकास के काम, नहीं होगी कोई रिक्रूटमेंट, जानें क्‍यों

यूपी के बाद महाराष्‍ट्र ने भी किसानों का कर्ज माफ करने का एलान तो कर दिया है, लेकिन इसके चलते उसको अपने विकास के काम बंद करने होंगे और रोजगार देने से भी हाथ पीछे खींचने होंगे।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 12 Jun 2017 03:53 PM (IST)Updated: Tue, 13 Jun 2017 07:12 PM (IST)
महाराष्‍ट्र में अब रुक जाएंगे विकास के काम, नहीं होगी कोई रिक्रूटमेंट, जानें क्‍यों
महाराष्‍ट्र में अब रुक जाएंगे विकास के काम, नहीं होगी कोई रिक्रूटमेंट, जानें क्‍यों

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क) किसानों के कर्ज माफी का मुद्दा हमेशा ही भारतीय राजनीति के शीर्ष पर रहा है। लगभग सभी पार्टियों ने इसको वोट बैंक की तरह इस्‍तेमाल किया है। एक ओर जहां मध्‍य प्रदेश में इसी मुद्दे पर पिछले दिनों बवाल मचा रहा था वहीं महाराष्‍ट्र ने कर्ज माफी का एलान कर राजनीति को खुद ही गरमा दिया है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि महाराष्‍ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार है तो मध्‍य प्रदेश में भाजपा की काफी समय से सरकार है। मध्‍य प्रदेश में पानी की समस्‍या के साथ-साथ किसानों का कर्ज हमेशा ही सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द रहा है। महाराष्‍ट्र सरकार ने यह एलान यूपी सरकार द्वारा कर्ज माफी के एलान के बाद किया है। यूपी सरकार के इस फैसले के बाद महाराष्‍ट्र में इसको लेकर राजनीतिक घमासान मचा हुआ था। किसानों के कर्ज माफी को लेकर आरबीआई गवर्नर भी कई बार चिंतित होते हुए दिखाई दिए हैं। वह भी इस बात को साफ कर चुके हैं कर्ज माफी का फैसला देश हित में न होकर बेहद घातक साबित होता है। देश में विकास की रफ्तार रोकने का एक बड़ा कारण कर्ज माफी ही होता है। 

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क्‍या होती है कर्ज माफी की जमीनी सच्‍चाई

दरअसल किसी भी राज्‍य सरकार के लिए किसानों का कर्ज माफ करना न सिर्फ बड़ी चुनौती है बल्कि यह सब कुछ नियमों के दायरे में रखकर ही किया जाता है। किसानों का कर्ज माफ करना राज्‍य के जीड़ीपी को ध्‍यान में रखकर ही किया जाता है। लगभग हर वर्ष राज्‍य सरकारों के पास इस तरह की मांग आती है और सरकार कदम उठाती है। यहां पर एक बात ध्‍यान में रखने वाली बात यह भी है कि किसानों का कर्ज माफ करने का अर्थ होता है कि सरकार उस कर्ज की भरपाई विभिन्‍न टैक्‍स से होने वाली आय के माध्‍यम से करेगी। सरकार के पास यह पैसा आपका और हमारा होता है। इसका नतीजा यह होता है कि जिस रकम को पूर्व में सरकार ने विभिन्‍न योजनाओं के लिए रखा है उससे अब बैंकों का कर्ज चुकाया जाएगा, लिहाजा अन्‍य जनहित के काम को या तो रोक दिया जाएगा या फिर उन्‍हें आगे के लिए टाल दिया जाएगा। इसके अलावा यह भी मुमकिन है कि सरकार अपने इस अप्रत्‍याशित खर्च के लिए अन्‍य चीजों पर भी टैक्‍स लगा दे। कुल मिलाकर टैक्‍स और कर्ज काफी का सीधा ताना-बाना किसी भी आम आदमी से जुड़ता है।

रोकने पड़ेंगे विकास और जनहित के काम

महाराष्‍ट्र सरकार के सामने भी यही समस्‍या है। महाराष्‍ट्र सरकार के ढाई लाख करोड के बजट में यदि 35 हजार करोड़ रुपये के बैंक कर्ज माफ कर दिए जाते हैं तो ऐसे में सरकार को अपने कई जनहित वाले काम रोकने पड़ रहे हैं। इसका जिक्र खुद महाराष्‍ट्र के सीमए देवेंद्र फडणवीस ने किया है। उन्‍होंने साफतौर पर कहा कि यदि इस समस्‍या से निजाद पाना है तो सरकार को खर्च कम करने के अलावा कोई और उपाय नहीं है। इतना ही नहीं राज्‍य और देश के विकास की रफ्तार के पहिए थाम देने वाले इस फैसले का सीधा असर रोजगार भी दिखाई देगा। खुद सीएम फडणवीस के मुताबिक राज्‍य सरकार करीब 30 प्रतिशत रिक्‍त पदों को अब नहीं भर पाएगी और नए पदों की नियुक्ति पर भी उसको रोक लगानी होगी। ऐसे में राज्‍य के सामने बेरोजगारी की समस्‍या और बढ़ जाएगी। अपने नए प्‍लान में उन्‍होंने यह भी कहा है कि अच्‍छे मानसून की संभावना को देखते हुए इस वर्ष सरकार के दस हजार करोड़ रुपये बच सकते हैं, जो सूखा ग्रस्‍त इलाकों में रिलीफ ऑपरेशन के दौरान खर्च हो जाते हैं। 

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बैंक से तो बच जाएगा लेकिन साहूकारों से कैसे बचेगा किसान

यहां पर एक चीज और ध्‍यान देने वाली है और वह ये है कि सरकार सिर्फ वही कर्ज माफ करने का फैसला करती है जो किसानों ने बैंकों से लिया है। लेकिन हकीकत यह भी है कि किेसान बैंकों के साथ-साथ साहूकारों से भी कर्ज लेते हैं। बैंका का कर्ज माफ होने पर भी उन्‍हें कर्ज से पूरी तरह से छुटकारा नहीं मिलता है। क्‍योंकि साहूकार का कर्ज चुकाए बिना उसको दोबारा कर्ज नहीं मिल सकेगा। कुल मिलाकर कर्ज लेने वाला किसान इससे उभर नहीं पाता है। वहीं दूसरी ओर कर्ज माफी के बाद सरकार की तरफ से इसकी अदायगी भी तुरंत नहीं हो पाती है। ऐसे में बैंक किसानों को कर्ज देने से बचते हैं। इससे किसानों की समस्‍या बढ़ जाती है और अंत में उसको साहूकारों के हाथों पिसना पड़ता है।

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यूपी में किसानों की कर्ज माफी- एक नजर में

यूपी की यदि बात करें तो यहां के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने 4 अप्रैल राज्‍य के किसानों का करीब 36359 करोड़ का कर्ज माफ करने का एलान किया था। इसमें से 30,729 करोड़ का कर्ज एक लाख रुपए तक का है। बाकी के 5,630 करोड़ रुपए वो हैं जो बैंकों के खाते में एनपीए के तौर पर दर्ज हैं। बैंकों ने इस वक्त उत्तर प्रदेश में 86,214.20 करोड़ रुपए के कर्ज यूपी के छोटे किसानों को दिए हुए हैं। इसका औसत 1.34 लाख प्रति किसान बैठता है। वहीं राज्‍य की माली हालत पर नजर डालें तो पता चलता है कि उत्‍तर प्रदेश देश का ऐसा दूसरा राज्‍य है जिस पर सबसे अधिक कर्ज है। सरकार के मुताबिक इस फैसले से राज्‍य के करीब 86 लाख किसानों को फायदा पहुंचने की उम्‍मीद है। किसी भी राज्‍य ने अभी तक इतना बड़ी कर्ज की रकम को माफ नहीं किया है। यूपी की सरकार के मुताबिक उन्‍हीं किसानों का कर्ज माफ किया गया है जिन्‍होंने 31 मार्च 2016 से पहले बैंक से कर्ज लिया होगा। वर्ष 2008 में यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में इसका करीब आधा कर्ज माफ किया गया था।

देश के बैंकों का बड़ा कर्जदार है यूपी

यहां पर ध्‍यान रखने वाली बात यह भी है कि यूपी पर फिलहाल 327470 करोड़ का कर्ज है।  यूपी सरकार के इस फैसले से बैंकों पर मौजूदा कर्ज माफी के फैसले से 27,420 करोड़ का बोझ पड़ेगा। यूपी सरकार का 2017 के वित्त वर्ष में सालाना राजस्व 3 लाख 20 हजार 244 करोड़ रूपये था। कर्ज माफी की रकम यूपी के कुल राजस्‍व का करीब आठ फीसद है। स्टेट बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक यूपी  का वित्तीय घाटा 415 सौ करोड़ रुपये का है, जो राज्य के जीडीपी का लगभग 3 फीसदी है।

ये है देश का हाल

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2013-2015 के दौरान करीब 1,14,182 करोड़ का कर्ज माफ किया गया था। यदि आपको याद हो तो सरकार ने इसी वर्ष जनवरी में फसल ऋण पर दिए जाने वाले करीब 661 करोड़ के ब्‍याज को भी माफ करने का एलान किया था। इसके अलावा आंकड़े बताते कि सबसे अधिक कर्जदार वाले पंद्रह राज्‍यों में आंध्र पेदश समेत छत्‍तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्‍य प्रदेश, महाराष्‍ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्‍थान और तमिलनाडु का नाम शामिल है। वहीं दूसरी ओर वर्ष 2007-15 तक के बीच कृषि से जुड़े विभिन्‍न क्षेत्रों में काफी उतार-चढ़ाव दर्ज किया गया है।

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