1967 और 1986 में जब भारतीय सेना के डर से पीठ दिखाकर भागे थे चीनी सैनिक
भारत को धमकाने के लिए चीन बार-बार 1962 की लड़ाई का जिक्र करता है लेकिन वह भूल जाता है कि 1967 और 1986 में उसको भारत ने करारा जवाब दिया था।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। सिक्किम से लगते इलाके में जिस तरह से चीन ने पिछले साल माहौल खराब किए रखा, उसको देखते हुए यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि चीन आसानी से मानने वाला नहीं है। चीन का यह रवैया नया तो नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि वह भारत के दिए पिछले घाव पूरी तरह से भूल गया है। उसे सिर्फ 1962 की लड़ाई ही याद है, जब भारत को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। 1962 की उस हकीकत से सभी अच्छी तरह से वाकिफ हैं ओर होना भी चाहिए। लेकिन हम सभी को इस बात का भी जरूर पता होना चाहिए कि आखिर जिसका जिक्र बार-बार किया जाता है वह था क्या।
दरअसल, 1962 के बाद जब चीन भारत के अक्साई चिन को हड़प चुका था तब उसने 1967 में भारत-चीन और भूटान के बीच आने वाले चोला इलाके को भी हड़पने की नाकाम कोशिश की थी। उस वक़्त चीन के सैनिक इस पूरे इलाके को जिसको 'डोकलम प्लेटू' कहा जाता है और जिसमें भूटान भी आता है, में दाखिल हो गए थे। उस वक्त चीन की मंशा भारत की उन चोटियों को हड़पने की थी जो इस इलाके में आती हैं। तब भारत ने समय रहते चीन को करारा जवाब दिया था। उस वक्त जहां हमारे करीब पचास जवान शहीद हुए थे वहीं उनके करीब 300 जवान मारे गए थे। भारत ने न सिर्फ चीन के सैनिकों को दूर तक खदेड़ दिया था, बल्कि उनकी हिम्मत इतनी टूट गई थी कि उन्होने दोबारा इस ओर पलटकर नहीं देखा।
इसी तरह की कोशिश चीन ने एकबार फिर 1986 में अरुणाचल प्रदेश के स्ंग्दोंग्चू इलाके में की थी। यह क्षेत्र तवांग के उत्तर में स्थित है। तब भी भारत ने चीन के सैनिकों को काफी पीछे तक खदेड़ दिया था। भारत से मिली इस करारी हार को छिपाने के लिए चीन ने तिब्बत में सेना की कमान संभाल रहे अपने मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट कमांडर और मिलिट्री रीजन के चीफ को भी पद से हटा दिया था। उस वक्त भारतीय सेना की कमान जनरल सुंदरजी के हाथों में थी। इस मिशन को ऑपरेशन फॉलकॉन का नाम दिया गया था। जानकार मानते हैं कि डोकलम इलाके में आखरी बार गोली सन 1967 में चली थी, उसके बाद कभी यहां पर गोली नहीं चली है। सिक्किम के इस इलाके में करीब 8 साल तक अपनी सेवाएं देने वाले रिटायर्ड मेजर जनरल पीके सहगल ने डोकलाम विवाद के दौरान दैनिक जागरण से बात करते हुए बताया कि यह इलाका कितना संवेदनशील है और चीन इस पर क्यों आंख लगाए बैठा है।
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इस खास बातचीत में उन्होंने बताया कि आज की तारीख मे भारत की आर्मी लगातार बैटल टेस्ट पर है, जबकि चीन ने 1962 के बाद से कोई जंग नहीं लड़ी है। इसलिए भी भारत का पलड़ा भारी है। इसके अलावा इस पूरे इलाके में स्थित चुम्बी वैली सबसे निचली चोटी है। वहां मौजूद दूसरी चोटियां इससे कहीं ज्यादा ऊंची हैं और इन पर भारत का कब्जा है। इनमें चुंबो-ला चोटी भी है। यदि एक बार को यह मान भी लेते हैं कि चीन की फौज यहां पर आ जाती है तो यहां पर ज्यादा समय तक रुक पाना उसके लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि भारतीय सेना यहां की ऊंची चोटियों पर कब्जा जमाए हुए है और किसी भी विपरीत परिस्थिति में चीन को काफी नुकसान पहुंचा सकती है।
मेजर जनरल सहगल बताते हैं कि डोकलाम ट्राइ-जंक्शन इसलिए भी अहम है क्योंकि चीन की मंशा यहां के जरिये भारत को पूरे पूर्वी इलाके से काटने की है। वह डोकलाम इलाके में जिस सड़क का निर्माण कर रहा है यदि उसको न रोका गया तो वह भारत के काफी करीब आ जाएगा। इतना ही नहीं उसकी मंशा आगे आकर सीधे सिलीगुड़ी तक सड़क पहुंचाने की है। भारत ने इस पूरे इलाके में अपनी फौज की स्थति काफी मजबूत की हुई है, यदि चीन यहां पहुंचने में कामयाब हो गया तो भारत के लिए काफी नुकसानदेह साबित होगा। उनके मुताबिक चीन ने 1967 से भूटान की करीब 700 किमी. जमीन को हथिया रखा है। बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि साल 2012 में भारत-चीन और भूटान के बीच इस क्षेत्र को लेकर एक समझौता हुआ था जिसके तहत यहां पर कोई निर्माण नहीं किया जायेगा। लेकिन चीन ने इसको नहीं माना और इस इलाके में उसने कई इमारतें बना डाली हैं। इसके बाद भी वह लगातार समझौते का उलंघन कर रहा है।
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यहां पर ध्यान देने वाली बात यह भी है कि भारत और भूटान के बीच हुए समझौते के मुताबिक जब भी भूटान पर कोई संकट आएगा, तब भारत उसकी मदद करेगा। उनके मुताबिक भूटान और चीन से लगती सीमा पर भूटानी सैनिकों के साथ भारतीय सैनिक भी होते हैं, जो लगातार गश्त करते हैं। यहां पर भारतीय फौज की पूरी एक कंपनी भूटान फौज के साथ होती है। भारत यहां पर भूटान के सैनिकों को ट्रेनिंग देने का भी काम करता है। सहगल बताते हैं कि चीन का करीब दस देशों के साथ बॉर्डर को लेकर विवाद है। इसके अलावा वियतनाम में भी उसका बुरा हश्र हुआ था। यदि भारत के इलाके पर उसने आंखें दिखाई तो यहां पर भी उसको इस बार मुंह की खानी होगी।
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