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जा‍निए आखिर कैसे दलवीर भंडारी की वजह से पहली बार ब्रिटेन को मिली हार

दलवीर सिंह ने दूसरी बार इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में जीत कर इतिहास रच दिया है। जानिए कैसे।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 21 Nov 2017 12:16 PM (IST)Updated: Wed, 22 Nov 2017 10:20 AM (IST)
जा‍निए आखिर कैसे दलवीर भंडारी की वजह से पहली बार ब्रिटेन को मिली हार
जा‍निए आखिर कैसे दलवीर भंडारी की वजह से पहली बार ब्रिटेन को मिली हार

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। नीदरलैंड के हेग स्थ‍ित अंतरराष्ट्रीय अदालत में भारतीय जज दलवीर भंडारी जज चुन लिए गए हैं। वह दूसरी बार अंतरराष्‍टीय अदालत के जज बने हैं। उन्‍हें जनरल एसेंबली के 193 में से 183 मत मिले जबकि सुरक्षा परिषद में उन्‍हें 15 वोट मिले। उनका सीधा मुकाबला ब्रिटेन के उम्मीदवार जस्टिस क्रिस्टोफर ग्रीनवुड से था। वर्ष 1946 में अंतरराष्‍ट्रीय अदालत की स्‍थापना के बाद यह पहला मौका है जब इंग्‍लैंड का कोई जज इस मुकाबले में हारा हो। सरल भाषा में कहा जाए तो 1946 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि जब अंतरराष्‍ट्रीय अदालत में ब्रिटेन का कोई जज नहीं है। हम आपको बता दें कि जस्टिस भंडारी ने पाकिस्तान में बंद कुलभूषण जाधव मामले में भी अहम भूमिका निभाई थी।

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किया बड़ा उलटफेर

अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में 15 जज चुने जाने हैं, 15 में 14 जजों का चुनाव हो चुका था। क्रिस्‍टोफर और भंडारी के बीच अंतरराष्‍ट्रीय अदालत के अंतिम जज का मुकाबला बेहद कड़ा और दिलचस्प था। इस लड़ाई में जनरल असेंबली में तो भंडारी पहले से ही लीड बनाए हुए थे लेकिन सुरक्षा परिषद में उनके पास शुरुआत में कम वोट थे। लेकिन बाद में 12वें दौर में हुए उलटफेर ने भंडारी के सिर पर अंतरराष्‍ट्रीय जज का ताज रख दिया। इससे पहले अपनी हार मानते हुए ब्रिटेन के जस्टिस क्रिस्‍टोफर खुद ही मैदान से बाहर हो गए थे।

कैसे होता है चुनाव

इस मुकाबले में जीत हासिल करने के लिए जनरल असेंबली और सुरक्षा परिषद में जीत दर्ज करना बेहद जरूरी होता है। अंतरराष्‍ट्रीय अदालत में कुल 15 सदस्‍य होते हैं। इन जजों का एक तिहाई हिस्‍सा नौ वर्षों की अवधि के लिए हर तीन वर्ष में चुना जाता है। इस कोर्ट की एक खासियत यह भी है कि इसमे कोई भी दो जज एक ही राष्ट्र के नहीं हो सकते है। इसके अलावा किसी न्यायाधीश की मौत पर उनकी जगह किसी समदेशी को दी जाती है। इस कोर्ट के जज कहीं दूसरी जगह कोई अन्‍य पद स्‍वीकार नहीं कर सकते हैं। किसी एक न्यायाधीश को हटाने के लिए बाकी के न्यायाधीशों का सर्वसम्मती से निर्णय लेना बेहद जरूरी होता है। न्यायालय द्वारा सभापति तथा उपसभापति का निर्वाचन और रजिस्ट्रार की नियुक्ति होती है।

अंतरराष्‍ट्रीय कोर्ट का काम

किन्‍हीं दो राष्ट्रों के बीच का संघर्ष अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के सामने आता है। इस तरह का मामला दर्ज कराने वाले राष्‍ट्र यदि चाहें तो किसी समदेशी तदर्थ न्यायाधीश को इसके लिए नामजद भी कर सक्ती हैं। अंतरराष्‍ट्रीय कोर्ट का दरवाजा कोई भी वह देश जो इसका सदस्‍य है खटखटा सकता है। मौजूदा समय में इसके सदस्‍य देशों की संख्‍या 192 है। कोर्ट मामलों के निपटारे को संयुक्‍त राष्‍ट्र के घोषणापत्र और दोनों देशों के बीच हुई संधियों की रोशनी में देखकर अपना निर्णय सुनाता है। इसके अलावा कई मामलों में पूर्व के दिए निर्णयों को भी सामने रखकर वह अपना फैसला सुनाता है। अंतरराष्‍ट्रीय कोर्ट को परामर्श देने का क्षेत्राधिकार भी प्राप्त है। वह किसी ऐसे पक्ष की प्रार्थना पर, जो इसका अधिकारी है, किसी भी विधिक प्रश्न पर अपनी सम्मति दे सकता है। मौजूदा समय में दो देशों के बीच हुए करार के समय कई बार इस बात को भी लिखा जाता है कि इस संबंध में कोई भी मामला अंतरराष्‍ट्रीय कोर्ट के तहत आएगा।

कौन हैं दलबीर भंडारी

1 अक्टूबर 1947 को राजस्थान के जोधपुर में जन्‍में दलवीर भंडारी भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश रह चुके हैं। उनके पिता और दादा राजस्थान बार एसोसिएशन के सदस्य थे। जोधपुर विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने राजस्थान हाईकोर्ट में वकालत की। उनहोंने अमेरिका के शिकागो स्थित नार्थ वेस्टर्न विश्वविद्यालय से कानून में मास्टर्स की डिग्री भी हासिल की है। अक्टूबर 2005 में वह मुंबई हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने।

पद्मभूषण से सम्मानित किए जा चुके हैं भंडारी

19 जून 2012 को पहली बार इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के सदस्य के रूप में दलवीर भंडारी ने शपथ ली थी। आईसीजे से पहले भंडारी कई कोर्ट में उच्च पद पर काम कर चुके है। भंडारी को पद्मभूषण से सम्मानित भी किया जा चुका है। वह न्‍यायिक प्रणाली में सुधार को लेकर और विश्‍व में हो रहे बदलावों को देखते हुए एक किताब भी लिख चुके हैं। इसका नाम 'ज्यूडीशियल रिफॉर्म्स: रीसेंट ग्लोबल ट्रेंड्स' है।

उनके ऐतिहासिक फैसले

यहां आपको बता दें कि उनके दिए फैसलों की बदौलत ही देश में गरीबों के लिए रैन बसेरे बनाए गए थे। इसके अलावा उनके ऐतिहासिक फैसलों में हिंदू विवाह कानून 1955, बच्चों को अनिवार्य और नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार, रैनबसेरा, गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों को सरकारी राशन बढ़ाने आदि प्रमुख हैं।

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