Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बिहार में वोटर लिस्ट में संशोधन का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, EC के आदेश को ADR ने दी चुनौती

    Updated: Sat, 05 Jul 2025 03:36 PM (IST)

    बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण अभियान को लेकर एसोसिएशन ऑफ डेमेक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में चुनाव आयोग के आदेश को रद्द करने की मांग की गई है जिसे संविधान के अनुच्छेद 14 19 21 325 और 326 का उल्लंघन बताया गया है।

    Hero Image
    बिहार में वोटर लिस्ट में संशोधन का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट। (फाइल फोटो)

    माला दीक्षित, नई दिल्ली। बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण अभियान का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन ऑफ डेमेक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण अभियान का चुनाव आयोग का आदेश रद करने की मांग की है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    याचिका में कहा है कि चुनाव आयोग का यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 14,19,21,325 और 326 और जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और उसके रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टोर्स रूल 1960 के नियम 21ए का उल्लंघन करता है, इसलिए चुनाव आयोग का बिहार में मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण करने का 24 जून का आदेश रद किया जाए।

    लाखों वोटर्स का अधिकार हो सकता है समाप्त

    एडीआर ने दाखिल याचिका में कहा है कि अगर चुनाव आयोग का यह आदेश रद नहीं किया जाता, तो यह बिना उचित प्रक्रिया के मनमाने ढंग से लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर सकता है। इससे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कमजोर होगा जो कि संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है।

    याचिका में यह भी कहा गया है कि इसमें जिस तरह उचित प्रक्रिया का पालन किये बगैर कम समय में जो दस्तावेज और चीजें मांगी जा रही हैं उससे लाखों वास्तविक मतदाता मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं। वे मतदान के अधिकार से वंचित हो सकते हैं।

    कई नियमों का बताया गया उल्लंघन

    कहा गया है कि इस आदेश के जरिए चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में शामिल होने की पात्रता साबित करने की जिम्मेदारी नागरिकों पर डाल दी है। आधार और राशन कार्ड जैसे सामान्य पहचान दस्तावेजों को बाहर करके यह प्रक्रिया हाशिए पर पड़े समुदायों और गरीबों पर प्रतिकूल असर डालती है।

    इस प्रक्रिया में मतदाताओं के लिए न सिर्फ अपनी नागरिकता साबित करने के लिए बल्कि अपने माता-पिता की नागरिकता साबित करने के लिए भी दस्तावेज पेश करने की आवश्यकता से अनुच्छेद 326 का उल्लंघन होता है। क्योंकि इन आवश्यकताओं को पूरा न करने पर उसका नाम मतदाता सूची से बाहर हो सकता है।

    याचिकाकर्ता ने और क्या कहा?

    कहा गया है कि चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण को लागू करने के लिए अव्यवहारिक समय सीमा निर्धारित की है, विशेषकर निकट में नवंबर 2025 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों को देखते हुए। याचिकाकर्ता का कहना है कि ऐसे बहुत से लोग हैं जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं था और जिनके पास विशेष सघन पुनरीक्षण आदेश में मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं।

    कुछ लोग इन दस्तावेजों को प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं, लेकिन तय कम समय सीमा उनके लिए बाधा बन सकती है। यह भी कहा गया है कि बिहार ऐसा राज्य है जहां गरीबी और पलायन का उच्च स्तर है, यहां एक बड़ी आबादी है जिसके पास जन्म प्रमाणपत्र या अपने माता-पिता के रिकार्ड जैसे आवश्यक दस्तावेजों तक पहुंच नहीं है।

    यह भी पढ़ें: मतदाता सूची पुनरीक्षण पर सियासी पारा हाई, SC जाने की तैयारी में कांग्रेस; क्यों अलग-अलग याचिकाएं दाखिल करते हैं राजनीतिक दल?

    यह भी पढ़ें: 'हम में नहीं न्याय में भगवान देखें...' सुप्रीम कोर्ट के जज ने वकील से क्यों कहा ऐसा?