'अचानक नहीं हुई भारत की आर्थिक स्थित मजबूत', निर्मला सीतारमण ने बताया देश कैसे बना इकोनॉमिक पावर?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत है और वैश्विक अनिश्चितता का सामना करने में सक्षम है। 2047 तक विकसित देश बनने के लिए आठ प्रतिशत विकास दर जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारत का विकास घरेलू कारकों से प्रभावित है जिससे बाहरी फैसलों का प्रभाव कम होता है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि भारत की घरेलू आर्थिक स्थिति मजबूत है और देश वैश्विक अनिश्चितता के प्रभाव को सहने करने में सक्षम है। वर्ष 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने का लक्ष्य है। इसके लिए हमें आठ प्रतिशत की दर से विकास करना होगा।
अमेरिका की तरफ से भारत पर लगाए जाने वाले 50 प्रतिशत के शुल्क से भारतीय निर्यात के प्रभावित होने की आशंका के संदर्भ में उन्होंने कहा कि भारत का विकास मुख्य रूप से घरेलू कारकों से प्रभावित होता है जो बाहरी फैसले के प्रभाव को कम कर देता है। देश ने अतीत में भी इस प्रकार की स्थिति को झेला है। वैश्विक अनिश्चितता, व्यापार में विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध से वैश्विक सप्लाई चेन का स्वरूप बदल रहा है। लेकिन भारत की आर्थिक बुनियाद मजबूत है जिससे हम इस प्रकार की परिस्थिति से आसानी से पार कर जाएंगे।
'अचानक ही नहीं हुई आर्थिक स्थिति मजबूत'
शुक्रवार को नई दिल्ली में आयोजित कौटिल्या आर्थिक कानक्लेव के संबोधन में वित्त मंत्री ने कहा कि अचानक भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं हो गई है, इसके लिए कई महत्वपूर्ण कारक जिम्मेदार है। पिछले दस सालों में हमारी सरकार ने वित्तीय स्थिति को मजबूत किया है, पूंजीगत खर्च की गुणवत्ता में बढ़ोतरी की गई है और महंगाई को काबू में रखने का प्रयास किया गया है।
उन्होंने आगे कहा कि हमने रणनीतिक रूप से सुधार कार्यक्रम चलाए, कारोबार को आसान बनाया और वित्तीय समावेश किया। इससे आम लोगों की जिंदगी की गुणवत्ता में इजाफा हुआ और धीरे-धीरे खपत और निवेश में उनकी हिस्सेदारी बढ़ती चली गई। यही वजह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत होती चली गई और हमारे विकास की रफ्तार भी कायम है।
ट्रंप टैरिफ को लेकर क्या बोलीं वित्त मंत्री?
ट्रंप टैरिफ और कई देशों में चल रहे युद्ध के बीच बदलती स्थिति पर सीतारमण ने कहा कि बदलते वैश्विक हालात में हम खुद को अलग नहीं रख सकते। ऐसे हालात में जहां वैश्विक फैसले से हमारे भाग्य का फैसला हो सकता है, हमें उन फैसलों में हिस्सेदार बनना ही पड़ेगा। अभी जो व्यापारिक व वैश्विक हालात हैं, वे आसानी से सुलझने वाले नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि हम उसे छोड़ दे। व्यापारिक असंतुलन से कुछ देशों के उद्योग खत्म हो जाते है तो कुछ देशों में जरूरत से ज्यादा औद्योगिक क्षमता का विस्तार हो जाता है।
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