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आपको मिलता है नमक और इनकी टांगें होती है दफन

कहते हैं कि नमक खाने का हक अदा करना चाहिए। लेकिन अगरिया समुदाय नमक खिलाने की दर्दनाक कीमत चुका रहा है। अगरिया समुदाय की आजीविका शदियों से नमक बनाने की है। इनके जीवन का मतलब सिर्फ नमक बनाना है। इनके द्वारा बनाया गया नमक देश की 75 फीसदी आबादी खाती है। अगरिया समुदाय अपनी पूरी जिन्दगी रन ऑफ कच्छ के खेतों

By Edited By: Published: Thu, 31 Jan 2013 03:04 PM (IST)Updated: Thu, 31 Jan 2013 05:31 PM (IST)

अहमदाबाद। कहते हैं कि नमक खाने का हक अदा करना चाहिए। लेकिन अगरिया समुदाय नमक खिलाने की दर्दनाक कीमत चुका रहा है।

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अगरिया समुदाय की आजीविका सदियों से नमक बनाने की है। इनके जीवन का मतलब सिर्फ नमक बनाना है। इनके द्वारा बनाया गया नमक देश की 75 फीसदी आबादी खाती है। अगरिया समुदाय अपनी पूरी जिंदगी रन ऑफ कच्छ के खेतों में अथाह परिश्रम करके गुजार देती है। पूरे देश को नमक खिलाने वाला यह समुदाय इसके एवज में खास कीमत चुकाने को मजबूर है। नमक बनाने के दौरान इनके पैर असाधारण पतले और कठोर हो जाते हैं। अत्यधिक कष्टदायक जीवन जीने को ये मजदूर मजबूर हैं। आलम यह है कि मरने के बाद इनका पूरा शरीर जल तो जाता है लेकिन इनके पैर को दफनाना पड़ता है।

अहमदाबाद से 235 किमी तो कच्छ के जिला मुख्यालय से 150 किमी दूर स्थित सुरजबरी क्रीक को छोटा रन ऑफ कच्छ कहते हैं। यह अरब सागर से करीब 10 किमी दूर है। इस समुदाय की पहचान ही नमक बनाने से जुड़ी है। गुजरात के पर्यटन अधिकारी फारुख पठान के मुताबिक यहां का पानी अरब सागर से करीब दस गुना ज्यादा खारा है। जब यहां के पानी पर सूरज की किरणें पड़ती हैं तो वह धीरे-धीरे नमक के रूप में बदलता जाता है। हर 15 दिनों में प्रत्येक खेत से करीब 10 से 15 टन नमक पैदा होता है। पठान आगे बताते हैं कि हर घर करीब तीस से साठ खेतों का मालिक है। कष्टदायक वातावरण में प्रत्येक अगरिया कठोर परिश्रम करने के बाद इन्हें केवल 60 रुपये प्रति टन के हिसाब से पैसा मिलता है।भारत के सबसे गरीब समुदायों में एक अगरिया समुदाय के बच्चे शायद ही स्कूल जा पाते हैं। करीब चार महीने जलमग्न होने की वजह से ये उन दिनों बेरोजगार रहते हैं।

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