लोग झेल रहे वायु प्रदूषण की मार, कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को ढील दे रही सरकार; उठने लगे सवाल
वायु प्रदूषण पर फिर से चर्चा हो रही है, जिसमें वाहन और कोयले से चलने वाले ताप विद्युत संयंत्र मुख्य दोषी हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के लगभग 78% ता ...और पढ़ें

सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण नियमों में बार-बार ढील दी (सांकेतिक तस्वीर )
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। वायू प्रदूषण फिर से चर्चा में है और महानगरों में वाहन कठघरे में। दिल्ली एनसीआर में तरह तरह की पाबंदियां वाहनों पर लागू हैं। ऐसे में यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि कुछ महीने पहले ही कोयले से चलने वाले ताप विद्युत संयंत्रों को राहत पर राहत क्यों दी जा रही है।
कुछ महीने पहले ही इन संयंत्रों के लिए एफडीजी(फ्लू एंड गैस डिसल्फेराइजेशन) लगाने के मामले में अवधि क्यों बढ़ा दी गई। सेंटर फॉर रिसर्च आन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) की नई रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि देश के तकरीबन 78 फीसद ताप बिजली संयंत्रों में सल्फर डाइआक्साइड (SO2) को नियंत्रित करने की प्रणाली नहीं है और अब ये ताप बिजली संयंत्र देश में प्रदूषण फैलाने में अहम जिम्मेदार हैं।
78% ताप बिजली संयंत्रों में SO2 नियंत्रण प्रणाली नहीं
वर्ष 2015 में जारी अधिसूचना के बाद सरकारी क्षेत्र की एनटीपीसी एकमात्र कंपनी रही जिसने एफजीडीलगाने का काम किया और किया जा रहा है। एनटीपीसी के अधिकारियों का कहना है कि एफजीडी जिन संयंत्रों में लगाये गये हैं वहां SO2 उत्सर्जन में कमी पाई गई है।
एनटीपीसी ने जिन 20 हजार मेगावाट क्षमता में इसे लगाया है वहां औसतन 70 फीसद तक एसओ2 उत्सर्जन में कमी हुई है। लेकिन निजी कंपनियों ने इसे अनदेखा कर दिया। रिलायंस, टाटा पावर, अदाणी, टारेंट पावर जैसी कई कंपनियों की ओर से यह तर्क दिया जाता रहा कि लगभग डेढ़ लाख करोड़ का खर्च आ सकता है और इससे बिजली महंगी होगी।
निजी कंपनियों ने FGD लगाने में लागत का हवाला दिया
कभी कोविड तो कभी भारत के कोयले में सल्फर की कम मात्रा का हवाला देते हुए एफडीजी लगाने की अवधि को बार बार बढ़ाया जाता रहा। वर्ष 2017 और वर्ष 2022 में इसे एक्सटेंशन भी दिया गया।जुलाई 2025 में जब सबकी समय सीमा खत्म हो गई तो ताप विद्दुत संयंत्रों का वर्गीकरण कुछ इस तरह किया गया है कई कंपनियों को इससे राहत ही मिल जाएगी।
जुलाई, 2025 में बदले नियम के अनुसार घनी आबादी या प्रदूषित क्षेत्र से 10 किलोमीटर दूर रहने वाले सभी ताप बिजली संयंत्रों को इससे अलग कर दिया गया। उन्हें सिर्फ स्टैक की उंचाई बढ़ानी होगी। दिल्ली एनसीआर या शहरी आबादी के 10 किलोमीटर के दायरे के संयंत्रों को फिर से वर्ष 2027 तक का समय दिया गया।
इसके अलावा बहुत ही ज्यादा प्रदूषित भौगोलिक क्षेत्र के करीब स्थापित संयंत्रों को केस टू केस आधार पर फैसला करने की बात कही गई। गौरतलब है कि फिलहाल देश की जरूरत को देखते हुए ताप विद्युत कीसंयंत्रों की संख्या बढ ही रही है। कोयले का उत्पादन बढ़ाने की भी तैयारी है। ऐसे में कुछ इसके उपयोग के लिए कुछ मानक भी सख्ती से लागू करने की पड़ेंगे।

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