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    अमेरिकी टैरिफ की काट के लिए भारत का 'ट्रंप कार्ड', सरकार ने बना ली योजना; जानें क्या है पूरा प्लान

    भारतीय वस्त्र उत्पादों पर अमेरिका द्वारा 50 प्रतिशत सीमा शुल्क लगाने के बाद सरकार ने वस्त्र निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 40 देशों में विशेष संपर्क कार्यक्रम चलाने की योजना बनाई है। इस पहल में ब्रिटेन जापान और यूएई जैसे प्रमुख देश शामिल हैं। GTRI के अनुसार भारत घरेलू खपत बढ़ाकर नुकसान की भरपाई कर सकता है।

    By Digital Desk Edited By: Prince Gourh Updated: Wed, 27 Aug 2025 10:15 PM (IST)
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    वस्त्र निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार की नई योजना (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय वस्त्र उत्पादों पर अमेरिका द्वारा 50 प्रतिशत सीमा शुल्क लगाए जाने के बीच सरकार ने वस्त्र निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 40 देशों में विशेष संपर्क कार्यक्रम चलाने की योजना बनाई है।

    इस पहल के तहत ब्रिटेन, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन, नीदरलैंड, पोलैंड, कनाडा, मेक्सिको, रूस, बेल्जियम, तुर्किये, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और आस्ट्रेलिया जैसे प्रमुख देशों को शामिल किया गया है।

    बता दें कि भारत पहले से ही 220 से अधिक देशों को वस्त्र निर्यात करता है, लेकिन ये 40 देश मिलकर करीब 590 अरब डालर का वैश्विक वस्त्र एवं परिधान आयात करते हैं। इस आयात में भारत की हिस्सेदारी फिलहाल महज पांच-छह प्रतिशत है।

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    एक अधिकारी ने कहा, "मौजूदा परि²श्य में इन देशों के साथ विशेष संपर्क की यह पहल बाजार विविधीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होने जा रही है। इसमें भारतीय मिशन और निर्यात प्रोत्साहन परिषदों (ईपीसी) की अहम भूमिका होगी।"

    परिधान निर्यात संवर्धन परिषद (एईपीसी) के महासचिव मिथिलेश्वर ठाकुर ने कहा, '25 प्रतिशत शुल्क दर को तो उद्योग ने पहले ही स्वीकार कर लिया था, लेकिन अब अतिरिक्त 25 प्रतिशत शुल्क लगने से भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता बांग्लादेश, वियतनाम, श्रीलंका, कंबोडिया और इंडोनेशिया जैसे देशों की तुलना में 30-31 प्रतिशत तक घट गई है।

    इससे भारतीय वस्त्र उद्योग अमेरिकी बाजार से लगभग बाहर हो गया है।' उन्होंने सरकार से तत्काल वित्तीय राहत की मांग की ताकि उद्योग संकट से उबर सके। साथ ही उन्होंने कहा कि वस्त्र उद्योग अब ब्रिटेन और ईएफटीए देशों के साथ व्यापार समझौतों के माध्यम से नुकसान की भरपाई की संभावनाओं की तलाश कर रहा है।

    घरेलू खपत बढ़ाकर हो सकती है निर्यात में कमी की भरपाई

    आर्थिक थिंक टैंक जीटीआरआइ का कहना है कि भारत घरेलू खपत बढ़ाकर कुछ हद तक अमेरिकी व्यापार में हुए नुकसान की भरपाई कर सकता है। भारत पर ट्रंप द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ गुरुवार से लागू हो गए हैं और इससे देश के निर्यात आधारित उद्योगों के सामने चुनौतियां खड़ी हो गई हैं।

    हीरे, रत्न, आभूषण, वस्त्र, परिधान और झींगा जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्र अमेरिकी बाजार पर अपनी अत्यधिक निर्भरता के कारण काफी प्रभावित होंगे। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआइ) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि अमेरिका की कुछ चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत के पास मोटे तौर पर दो विकल्प हैं।

    उन्होंने कहा, 'पहला, बड़ा विकल्प स्थानीय बाजार हैं। हमारा निर्यात भारतीय अर्थव्यवस्था का केवल 20 प्रतिशत है और भारतीय बाजार बहुत बड़ा है। यह भारतीय उत्पादन के 80 प्रतिशत की खपत स्वयं करता है और इसमें और अधिक खपत करने की गुंजाइश है, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था सालाना छह से सात प्रतिशत की दर से बढ़ रही है।'

    उन्होंने कहा, ''घरेलू खपत कुछ झटकों को 'खुशी से सहन' कर सकती है। दूसरा बेहतरीन विकल्प यह है कि भारत जो निर्यात अमेरिका को नहीं कर सकता, उसके लिए नए बाजारों की तलाश करे। उन्होंने कहा, ''इसके लिए, सरकार यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) में तेजी लाने का प्रयास कर रही है। हमने ब्रिटेन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर भी कर लिए हैं। पेरू और अन्य देशों के साथ कुछ और मुक्त व्यापार समझौते होने वाले हैं।''

    अमेरिकी परिधान बाजार में भारत के निकटतम प्रतिस्पर्धी चीन, बांग्लादेश और वियतनाम हैं। इन सभी देशों पर भारत की तुलना में अपेक्षाकृत कम टैरिफ हैं।

    अमेरिका भी नहीं रहेगा अछूता

    भारतीय वस्तुओं पर अमेरिका द्वारा भारी टैरिफ लगाने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने की आशंका जाहिर की गई है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इससे न केवल मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ेगा बल्कि विकास भी प्रभावित होगा।

    रिपोर्ट में कहा गया है कि नए टैरिफ से अमेरिकी जीडीपी 40 से 50 आधार अंकों तक प्रभावित हो सकती है। रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि अमेरिका में नए मुद्रास्फीति दबाव के संकेत पहले ही उभरने लगे हैं, जिसका मुख्य कारण हालिया टैरिफ और कमजोर डालर का प्रभाव है।

    रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इलेक्ट्रानिक्स और टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं जैसे आयात-संवेदनशील क्षेत्रों पर इसका सबसे अधिक असर होगा। रिपोर्ट के मुताबिक, उच्च टैरिफ और विनिमय दर में उतार-चढ़ाव से पैदा हुए सप्लाई चेन से जुड़े कारकों के चलते अमेरिका में मुद्रास्फीति अब 2026 तक दो प्रतिशत के लक्ष्य से ऊपर रहने की उम्मीद है।

    अमेरिका ने लगभग 45 अरब डालर मूल्य के भारतीय निर्यात पर टैरिफ लगाया है। इससे कपड़ा, रत्न एवं आभूषण जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों पर दबाव पड़ने की उम्मीद है। हालांकि, अमेरिका में छूट, मौजूदा टैरिफ संरचनाओं और स्थिर घरेलू मांग के कारण फार्मास्यूटिकल्स, स्मार्टफोन और स्टील का निर्यात अपेक्षाकृत सुरक्षित है।

    रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि सभी 45 अरब डालर मूल्य के निर्यात पर नए 50 प्रतिशत टैरिफ का असर पड़ता है, तो सबसे खराब स्थिति में अमेरिका के साथ भारत का ट्रेड सरप्लस घाटे में बदल सकता है। रिपोर्ट में इस बात पर उम्मीद जताई गई है कि व्यापार वार्ता से विश्वास बहाल होगा और अमेरिका को किए जाने वाले निर्यात में सुधार होगा।

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    (समाचार एजेंसी PTI के इनुपट के साथ)