उम्मीदें 2025: भारतीय अंतरिक्ष सेक्टर को और मिलेगी नई ऊंचाई, रूस और अमेरिका के साथ मिलकर बनाई ये रणनीति
नए साल में भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में ऊंची छलांग लगाने की तैयारी में है। सोमवार रात को इसरो स्पेडेक्स लांच होने को है जिसके बाद भारत उन देशों में शामिल हो जाएगा जिनके पास अंतरिक्ष में गतिमान दो यानों को आपस में कनेक्ट करने की प्रौद्योगिकी क्षमता होगी। ऐसा माना जा रहा है कि वर्ष 2025 में भारतीय अंतरिक्ष सेक्टर में जो कुछ होने वाला है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अंतरिक्ष सेक्टर में भारत ने जैसी छलांग वर्ष 2024 में लगाई है, उसकी बानगी बहुत कम है। 01 जनवरी, 2024 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक्सपोसैट को लांच किया था। अंतरिक्ष में एक्सरे किरणों का अध्ययन करने के लिए विशेष तौर पर अंतरिक्ष यान भेजने वाला भारत दूसरा देश बना।
अब 30 दिसंबर, 2024 को रात्रि 10 बजे इसरो स्पेडेक्स लांच होने को है। इससे भारत उन गिने चुने देशों में शामिल हो जाएगा जिनके पास अंतरिक्ष में गतिमान दो यानों को आपस में कनेक्ट करने की प्रौद्योगिकी क्षमता होगी। जानकारों का कहना है कि वर्ष 2025 में भारतीय अंतरिक्ष सेक्टर में जो कुछ होने वाला है, उसकी सिर्फ एक ट्रेलर वर्ष 2024 में दिखाई दिया है। इस साल इसरो के जरिए 36 सैटेलाइटों का प्रक्षेपण करने की तैयारी है ही लेकिन सबकी नजर भारत की रूस और अमेरिका के साथ मिल कर अंतरिक्ष यात्री भेजने की रणनीति पर भी होगी।
अंतरिक्ष क्षेत्र में होंगे कई बदलाव
सिर्फ उक्त दो महाशक्ति देश ही नहीं बल्कि ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, जापान जैसे विकसित देशों के अलावा दो दर्जन विकासशील देशों के साथ भी भारत अंतरिक्ष सेक्टर में सहयोग का समझौता कर चुका है। इनमें से अधिकांश देशों को अंतरिक्ष से जुड़े विज्ञान का फायदा उठाने में भारत मदद करेगा।
इंडियन स्पेश एसोसिएशन (इस्पा) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल ए. के. भट्ट (सेवानिवृत्त) का कहना है कि भारत सरकार की अंतरिक्ष क्षेत्र में एफडीआई नीति काफी उदार है जिसमें सैटेलाइट कंपोनेंट और सिस्टम्स के लिए ऑटोमैटिक रूट के तहत 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति, सैटेलाइट विनिर्माण और परिचालन के लिए 74 प्रतिशत तक और प्रक्षेपण यानों एवं स्पेसपोर्ट्स के लिए 49 प्रतिशत एफडीआई का अनुमति है।
साथ ही 1,000 करोड़ रुपये के वीसी फंड की स्थापना ने स्टार्टअप्स और निजी कंपनियों को और ताकत प्रदान की है। कैबिनेट ने निगरानी बढ़ाने के उद्देश्य से 52 उपग्रहों के प्रक्षेपण का लक्ष्य रखते हुए स्पेस आधारित सर्विलांस (एसबीएस-3) परियोजना के तीसरे चरण को मंजूरी प्रदान की जिसमें निजी क्षेत्र द्वारा 31 सैटेलाइट्स का विनिर्माण शामिल है और इससे निजी उद्योग को जबरदस्त अवसर उपलब्ध होंगे।
पिछले दो वर्षों में भारत के अंतरिक्ष सेक्टर में स्टार्ट अप की संख्या एक से बढ़ कर दो सौ हो गई है। कई स्टार्ट अप को सरकार की तरफ से स्थापित कोष से आवश्यक फंड का आवंटन भी होने लगा है।
सैटेलाइट टेक्नोलॉजी में बढ़ रही क्षमता
संस्थानों और निजी कंपनियों की ताकत मिलाकर भारत ना केवल सैटेलाइट टेक्नोलॉजी में अपनी क्षमता बढ़ा सकता है, बल्कि जलवायु निगरानी से लेकर रक्षा क्षेत्र तक में उपयोग के मामले में एक वैश्विक नेता के तौर पर भी उभर सकता है। आधारित डेटा की मांग खास तौर पर उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया में बढ़ने के अनुमान से भारत के लिए अपने स्पेस टेक उद्योग को बढ़ाने के जबरदस्त अवसर पैदा होते हैं।
नए वर्ष में अंतरिक्ष सेक्टर के लिए भारत की तैयारियों के बारे में इस्पा महानिदेशक कहते हैं इसरो ने निजी कंपनियों को प्रक्षेपण यान के लिए टेक्नोलॉजी हस्तांरित करने का निर्णय किया है जिससे भारत में प्रक्षेपण यानों का एक बड़ा बाजार तैयार होने जा रहा है।
इसमें एसएसएलवी एक नई शक्ति के तौर पर स्थापित होगाा। लो अर्थ ऑर्बिट में कुल 36 सैटेलाइट्स लांच होने जा रहे हैं जो देश के कई सेक्टरों को लाभान्वित करेंगे। अर्थ स्टेशन स्थापित करने की अनुमति निजी सेक्टर को मिलेगी। इनका कृषि और ढांचागत क्षेत्र में कई तरह के जबरदस्त अवसर दिखाई पड़ते हैं।
कृषि क्षेत्र में सैटेलाइट डेटा ने बैंकिंग और बीमा सेवाओं को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाया है, इसका और विस्तार देखने को मिलेगाष एक्सप्रेसवे पर टोल भुगतान के लिए मौजूदा फास्टैग प्रणाली के स्थान पर एक सैटेलाइट आधारित टोल संग्रह प्रणाली- फास्टैग जीपीएस की पायलट परियोजना चलाया जा रहा है। यह कदम टोल भुगतान प्रणाली में क्रांति ला सकता है।
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