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    Monetary policy: दिसंबर के पहले सप्ताह में होगी मौद्रिक नीति की समीक्षा, रेपो रेट में 0.25 फीसद कटौती संभव

    Updated: Fri, 28 Nov 2025 08:25 PM (IST)

    भारतीय अर्थव्यवस्था ने दूसरी तिमाही में 8.2% की अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की है, जिससे पूरे वित्त वर्ष 2025-26 में 8% से अधिक विकास दर की उम्मीद है। विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट में 0.25% की कटौती हो सकती है। यह कदम उद्योग जगत को प्रोत्साहित करेगा और अर्थव्यवस्था को गति देगा। आरबीआई विकास दर के अनुमान को संशोधित कर सकता है।

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    रेपो रेट में कटौती संभव।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पहली तिमाही के बाद दूसरी तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था के आंकड़ों ने एक बार फिर अर्थविदों व शोध एजेंसियों को आश्चर्यचकित कर दिया है।

    अप्रैल से जून में 7.8 फीसद की विकास दर के बाद क्रिसिल, इक्रा जैसी एजेंसियों ने जुलाई से सितंबर, 2025 की तिमाही में विकास दर के अधिकतम 7.5 फीसद रहने की बात कही थी लेकिन सरकार की तरफ से शुक्रवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक जीडीपी में 8.2 फीसद की वृद्धि दर हासिल हुई है। इस आधार पर विशेषज्ञ मान रहे हैं कि अब समूचे वित्त वर्ष 2025-26 में भारत की आर्थिक विकास दर के 8 फीसद से ज्यादा रहने के पूरे आसार है।

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    मौद्रिक नीति समीक्षा समिती की बैठक

    अगले हफ्ते (3-5 दिसंबर, 2025) के दौरान मौद्रिक नीति समीक्षा समिति (एमपीसी) की बैठक में भी रेपो रेट में कम से कम 25 आधार अंकों (0.25 फीसद) की एक और कटौती संभावित है जो अंतिम तिमाही (जनवरी से मार्च) के दौरान विकास दर की रफ्तार को तेजी देगी।

    आनंद राठी समूह के चीफ अर्थविद व एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर सुजन हाजरा का कहना है कि, “महंगाई की दर के लगातार चार फीसद से कम करने के बाद ना सिर्फ अगली एमपीसी की बैठक में 25 आधार अंकों की रेपो रेट में कमी की उम्मीद है बल्कि इससे आगे भी आरबीआइ का रुख केंद्र सरकार की तरफ लिये गये नीतिगत फैसलों को मजबूत देने की होगी यानी बाजार में तरलता प्रवाह को पर्याप्त स्तर पर बनाये रखा जाएगा।"

    अधिकांश एजेंसियों ने भारत की विकास दर के सात फीसद रहने की उम्मीद जताई है लेकिन यह भारतीय इकोनॉमी की मौजूदा क्षमता को देखते हुए कम है।'

    कई दूसरे अर्थविदों ने वैश्विक अनिश्चितता और अमेरिका की तरफ से भारतीय आयात पर दुनिया में सबसे ज्यादा शुल्क लगाये जाने के बावजूद जीडीपी वृद्धि दर के आठ फीसद पार कर जाने को देश की इकोनॉमी में लंबे समय तक तेजी बने रहने के संकेत के तौर पर देखा है। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में नौ फीसद की ग्रोथ रेट और सेवा सेक्टर की विकास दर के दहाई अंक में पहुंचने को इकोनॉमी के हर सेक्टर में तेजी के संकेत माने जा रहे हैं।

    रेपो रेट में कमी ज्यादा कर्ज लेने को करेगी प्रेरित

    ऐसे हालात में रेपो रेट में एक और कटौती उद्योग जगत को ज्यादा कर्ज लेकर विस्तार करने को प्रेरित करेगा। यह भी संभव है कि 5 दिसंबर को आरबीआइ गवर्नर एक बार फिर सालाना आर्थिक विकास दर के अनुमान को संशोधित करें। वर्ष की शुरुआत में वर्ष 2025-26 के लिए जीडीपी विकास दर के 6.5 फीसद रहने की बात कही गई थी। पहली तिमाही के बाद इसे बढ़ा कर 6.8 फीसद कर दिया गया है। इस गणना के लिए दूसरी तिमाही की विकास दर के 7 फीसद रहने को आधार बनाया गया था।

    अब जबकि यह 8.2 फीसद रही है तो पूरे वर्ष के लिए आरबीआइ को फिर से नया लक्ष्य रखना होगा। रेटिंग एजेंसी इक्रा की प्रमुक अर्थशास्त्री अदिति नायर का कहना है कि, “महंगाई की दर कम होने के बावजूद विकास दर के इस तरह से बढ़ने से पता चलता है कि भारत की अर्थव्यवस्था के भीतर काफी शक्ति है। हमें वृद्धि दर को लेकर अपने सालाना अनुमान (7 फीसद) में संशोधन करना होगा।''

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