Indian Army: 'प्रोजेक्ट संजय' बनेगा सेना की आंख, नाक और कान; निगरानी प्रणाली का किया जा रहा विकास
सेना जिन प्रोजेक्ट पर काम कर रही है उनमें एसएएमए (सिचुएशनल अवेयरनेस माड्यूल फ्राम द आर्मी) भी शामिल है। यह सेना का काम्बैट इंफोर्मेशन डिसिजन सपोर्ट सिस्टम है। इस तकनीक की मदद से कमांड बेस से ही रणक्षेत्र की तस्वीरें देखी जा सकेंगी।

नई दिल्ली, पीटीआई। संजय। महाभारत के मुख्य मात्र। महर्षि वेद व्यास के इसी शिष्य ने दृष्टिहीन धृतराष्ट्र को महाभारत का आंखों देखा हाल सुनाया था। कुरुक्षेत्र के रण में जो भी हुआ वो संजय की दृष्टि से छुप नहीं सका था। ठीक संजय की तर्ज पर भारतीय सेना भी 'प्रोजेक्ट संजय' पर बड़ी शिद्दत से काम कर रही है।
इसके तहत युद्ध क्षेत्र निगरानी प्रणाली बनाने पर तेजी से काम हो रहा है। इससे जमीनी स्तर पर ज्यादा जानकारी जुटाई जा सकेगी। दूसरे शब्दों में कहें तो प्रोजेक्ट संजय सेना के लिए आंख, नाक और कान बनेगा। वर्तमान में बढ़ती चुनौतियों के चलते यह समय की मांग भी है।
'कई प्रोजेक्टों पर काम कर रही सेना'
देखा जाए तो भारतीय सेना आधुनिकीकरण के पथ पर तेजी से अग्रसर है। वैसे भी भारतीय सेना साल 2023 को बदलाव के साल के तौर पर मना रही है। वह ऐसे कई प्रोजेक्टों पर काम कर रही है जिससे सेना कई नई तकनीकों से लैस हो जाएगी। इससे उसकी मारक क्षमता में और बढ़ोतरी होगी।
सैन्य सूत्रों के अनुसार, प्रोजेक्ट संजय के तहत सेना का बैटल फील्ड सर्विलांस सिस्टम तैयार किया जा रहा है। इसमें बड़ी संख्या में सेंसर को आपस में जोड़ा (एकीकरण) जाएगा और फील्ड फार्मेशन के लिए सर्विलांस सेंटर स्थापित किए जाएंगे।
साथ ही इन्हें आर्टिलरी काम्बैट कमांड एंड कंट्रोल एंड कम्यूनिकेशन सिस्टम (एसीसीसीएस) से जोड़ा जाएगा। इससे कमांड कर रहे सभी स्तर के कमांडर और अन्य स्टाफ ज्यादा बेहतर तरीके से सेना का सर्विलांस कर सकेंगे।
सूत्रों के अनुसार, एक लंबी अवधि में अलग-अलग क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर हुए परीक्षण में मिली सफलता के बाद अब यह महत्वाकांक्षी परियोजना मूर्त लेने के करीब पहुंच गई है।
भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड गाजियाबाद ने तैयार किया प्रोजेक्ट
उन्होंने बताया कि पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में इस प्रोजेक्ट को मैदानी इलाकों से लेकर रेगिस्तान और पहाड़ी क्षेत्र तक अपनाया गया और इसके बेहतर परिणाम सामने आए। भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड गाजियाबाद ने ये प्रोजेक्ट तैयार किया है। उम्मीद है कि दिसंबर 2025 तक इसे सेना में शामिल कर लिया जाएगा। पिछले दिनों एक कार्यक्रम के दौरान सेनाध्यक्ष मनोज पांडे ने भी सेना में किए जा रहे तकनीकी बदलावों की जानकारी दी थी।
उन्होंने कहा था कि इससे सेना ज्यादा तकनीक आधारित, आत्मनिर्भर, युद्ध के लिए सक्षम होगी। साथ ही यह भविष्य की चुनौतियों से निपटने में भी मददगार होगी।
कमांड क्षेत्र से ही रणक्षेत्र की देखी जा सकेंगी तस्वीर
सेना जिन प्रोजेक्ट पर काम कर रही है उनमें एसएएमए (सिचुएशनल अवेयरनेस माड्यूल फ्राम द आर्मी) भी शामिल है। यह सेना का काम्बैट इंफोर्मेशन डिसिजन सपोर्ट सिस्टम है। इस तकनीक की मदद से कमांड बेस से ही रणक्षेत्र की तस्वीरें देखी जा सकेंगी और कमांडर सैनिकों को जरूरी निर्देश दे सकेंगे। इससे सेना में युद्धक्षेत्र में परिस्थिति को लेकर ज्यादा जागरूकता आएगी और युद्ध क्षेत्र में होने वाले नुकसान को कम से कम करने में काफी मदद मिलेगी।
ई-सिट्रिप व प्रोजेक्ट अवगत पर भी चल रहा काम
ई-सिट्रिप (सिचुएशनल रिपोर्टिंग ओवर एंटरप्राइज-क्लास जीआइएस प्लेटफार्म) से सेना को रियल टाइम सूचनाएं मिलेंगी और इससे उपलब्ध डाटा के आधार पर बेहतर रणनीति बनाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा प्रोजेक्ट अवगत से एक ही प्लेटफार्म पर उपग्रह से ली गई तस्वीरें, डाटा मिलेगा।
एक अन्य प्रोजेक्ट अनुमान (मौसम संबंधी डेटा उपलब्ध कराने से जुड़ी तकनीक) पर भी तेजी से काम चल रहा है। इससे सेना को मौसम की सटीक जानकारी मिल सकेगी। सेना चार किलोमीटर क्षेत्र के मौसम का पूर्वानुमान लगा सकेगी। इससे रणनीति बनाने में आसानी होगी। इनके अलावा प्रोजेक्ट इंद्र पर भी काम चल रहा है। इससे सेना के डाटा की ज्यादा सटीक जानकारी मिल सकेगी। ई-आफिस से सेना में पेपर वर्क को कम करने की कोशिश की जाएगी।
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