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    सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार की गुंजाइश नहीं, समझौते को पूरी तरह रद करने का सिर्फ एलान बाकी

    भारत ने 1960 की सिंधु जल संधि को समाप्त करने का निर्णय लिया है जिसके तहत पाकिस्तान को सूचना दिए बिना जल उपयोग बढ़ाने की योजना है। प्रधानमंत्री मोदी ने संकेत दिया कि भारत अब अपना पानी अपने लिए इस्तेमाल करेगा। बांधों की भंडारण क्षमता 20% बढ़ाने और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी बात रखने की तैयारी पूरी है। इससे पाकिस्तान में जल संकट गहरा सकता है।

    By Jagran News Edited By: Chandan Kumar Updated: Thu, 08 May 2025 08:45 PM (IST)
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    पाकिस्तान में जल और कृषि संकट गहराने की आशंका।

    मनीष तिवारी, नई दिल्ली। भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 में की गई सिंधु जल संधि से पूरी तरह किनारा करने का निर्णय कर लिया है और बढ़े तनाव के बीच इस पर पुनर्विचार की संभावना भी समाप्त हो गई है।

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    केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय और सिंधु जल संधि से जुड़े रहे दो अफसरों ने इसकी पुष्टि की है कि इस संधि पर फिर से बातचीत नहीं होने वाली। इसके संकेत पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से एक कार्यक्रम में कही गई इस बात से भी मिला था कि भारत अब अपना पानी अपने लिए इस्तेमाल करेगा। पीएम ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया, लेकिन यह स्पष्ट था कि उनका इशारा सिंधु जल समझौते की तरफ था।

    सिंधु जल संधि पर भारत के एक पूर्व कमिश्नर के मुताबिक औपचारिक रूप से तो भारत ने इस संधि को अपनी ओर से ठंडे बस्ते में डालने की सूचना दी है, लेकिन सच्चाई यह है कि भारत की ओर से यह समझौता सदैव के लिए समाप्त हो चुका है। इसकी औपचचारिक घोषणा किसी भी समय की जा सकती है। इस पूर्व अधिकारी का कहना है कि अब पाकिस्तान को सूचना भी नहीं दी जाएगी।

    भारत की तैयारी पूरी

    अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल का सामना करने से लेकर इस संधि की मध्यस्थता करने वाले विश्व बैंक तक अपनी बात कहने की। इस बीच जलशक्ति मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार भारत ने 2016 में बनी टास्क फोर्स के सुझावों के अनुसार अपने कदम उठाने शुरू कर दिए हैं।

    सिंधु समझौते में शामिल तीन नदियों पर बने बांधों की भंडारण क्षमता अगले एक साल में बीस प्रतिशत तक बढ़ सकती है। बांधों की भंडारण क्षमता बढ़ाने के प्रयास शुरू होने की पुष्टि एनएचपीसी एक अधिकारी ने भी की। इस अधिकारी ने कहा कि बांधों की ऊंचाई बढ़ाने के लिए नई निविदाएं किसी भी समय जारी की जा सकती हैं। एक बार इस दिशा में काम शुरू हो गया तो फिर इस सवाल का महत्व नहीं रख जाएगा कि भारत इन नदियों के पानी को इकट्ठा कैसे रख पाएगा।

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