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    दुर्लभ खनिजों के खनन में आएगी तेजी, जन सुनवाई की बाध्यता खत्म; सरकार ने लिया बड़ा फैसला

    Updated: Mon, 15 Sep 2025 07:04 PM (IST)

    केंद्र सरकार ने रक्षा क्षेत्र और परमाणु ऊर्जा के लिए आवश्यक दुर्लभ खनिजों के खनन की बाधा दूर कर दी है। पर्यावरण मंजूरी से पहले जन सुनवाई की बाध्यता खत्म कर दी गई है। पर्यावरण मंत्रालय ने 8 सितंबर 2025 को इस संबंध में आदेश जारी किया। इस निर्णय से लिथियम कोबाल्ट यूरेनियम और थोरियम जैसे खनिजों का खनन तेजी से हो सकेगा।

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    दुर्लभ खनिजों के खनन में आएगी तेजी (फाइल फोटो)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने पिछले दिनों देश में रक्षा क्षेत्र, परमाणु ऊर्जा और अत्याधुनिक उद्योगों के लिए जरूरी बन चुके दुलर्भ खनिजों के खनन की राह की एक बड़ी अड़चन खत्म कर दी है। इन खनिजों के खदानों को पर्यावरण मंजूरी देने से पहले जन सुनवाई (पब्लिक कंसल्टेशन) की बाध्यता को समाप्त करने का आदेश दिया गया है।

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    आदेश पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने 8 सितंबर 2025 को जारी एक ऑफिस मेमोरेंडम के जरिए दिया है। इससे लिथियम, कोबाल्ट, और रेयर अर्थ एलिमेंट्स के अलावा यूरेनियम और थोरियम जैसे एटॉमिक मिनरल्स के खनन में तेजी आएगी।

    क्यों है जरूरी?

    सरकारी सूत्रों के मुताबिक उक्त आदेश 30 तरह के दुलर्भ धातुओं के खनन में लागू होंगे। इन धातुओं का उत्पादन ना सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बल्कि वर्ष 2047 तक भारत को एक विकसित देश बनाने के लिए भी जरूरी माना जा रहा है। पब्लिक कंसल्टेशन के कारण खनन परियोजनाओं में 3 से 12 महीने तक का औसतन विलंब होता रहा है।

    कुछ खदानों को तो जन सुनवाई के बाद बंद तक करना पड़ा है। लेकिन दुलर्भ धातुओं जैसे रणनीतिक महत्व की परियोजनाओं के लिए हालिया छूट इस विलंब को काफी हद तक कम कर देगी। परंपरागत रूप से भारत में खनन परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआइए) अधिसूचना, 2006 के तहत पब्लिक सुनवाई की जाती है।

    30 दिन का देना पड़ता है नोटिस

    इस प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों, गैर-सरकारी संगठनों व अन्य संबंधित पक्षों को परियोजना के पर्यावरणीय, सामाजिक, और स्वास्थ्य प्रभावों पर अपनी राय और आपत्तियां दर्ज करने का मौका मिलता है। इसके लिए कम से कम 30 दिन का नोटिस देना पड़ता है। नए निर्णय के तहत दुलर्भ धातुओं और परमाणु ऊर्जा के लिए जरूरी धातुओं की खनन परियोजनाओं को अब 'राष्ट्रीय रक्षा, सुरक्षा, और रणनीतिक महत्व' की श्रेणी में रखा गया है।

    इस छूट का प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय और परमाणु ऊर्जा विभाग की सिफारिशों पर आधारित है। सरकार के इस फैसले के लिए चीन का हालिया व्यवहार भी है। अप्रैल, 2025 में चीन ने भारत समेत दूसरे अन्य देशों को रेयर अर्थ धातुओं की आपूर्ति रोक दी है। उन्हीं देशों को इनकी आपूर्ति की अनुमति दी जा रही है जो यह गारंटी देंगे कि उसका इस्तेमाल रक्षा उपकरणों के निर्माण में नहीं किया जाएगा।

    इस मुद्दे को दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में और उसके बाद पीएम नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच हुई बैठक में भी उठाया गया है। चीन ने अभी आश्वासन दिया है कि वह आपूर्ति फिर से शुरू करेगा लेकिन दोनों देशों के बीच रिश्तों को देखते हुए इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

    रक्षा मंत्रालय का विचार

    यह कदम नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (एनसीएमएम) का हिस्सा है, जिसका लक्ष्य आयात निर्भरता (विशेष रूप से चीन से) कम करना और आत्मनिर्भरता बढ़ाना है। रेअर अर्थ मिनिरल्स में भारत आत्मनिर्भरता से काफी दूर है। इसकी आपूर्ति में भारत चीन पर मुख्य तौर पर निर्भर है।

    रक्षा मंत्रालय का विचार है कि यह भारत की रणनीतिक व सुरक्षा तैयारियों के लिए जोखिम पैदा करता है। ये मिनरल्स रडार, मिसाइल गाइडेंस सिस्टम, इलेक्टि्रक वाहन और अपारंपरिक ऊर्जा उपकरणों के लिए आवश्यक हैं। नये नियम से खनन परियोजनाओं की मंजूरी प्रक्रिया में एक-एक साल तक की बचत होगी, क्योंकि अब ये परियोजनाएं सीधे केंद्रीय स्तर पर मंजूर की जाएंगी।

    वैसे पर्यावरण प्रबंधन योजना (ईएमपी) में सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों को संबोधित करना अनिवार्य रहेगा। सनद रहे कि सरकार ने अप्रैल 2023 में 30 क्रिटिकल मिनरल्स की सूची बनाई थी। इसके बाद मार्च 2025 में इनसे जुड़ी परियोजनाओं को 'आउट ऑफ टर्न' प्राथमिकता देने का फैसला किया गया था।

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