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    इंडियन एग्रीकल्चर मार्केट में एंट्री चाहता है अमेरिका, भारत क्यों है खिलाफ; बन रही ये रणनीति

    Updated: Sun, 09 Mar 2025 07:24 PM (IST)

    भारत अमेरिका के दबाव के बावजूद कृषि उत्पादों के लिए अपना बाजार खोलने के पक्ष में नहीं है। कृषि उत्पाद भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए संवेदनशील हैं और इन पर शुल्क कटौती से किसानों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। अमेरिका ने कुछ कृषि वस्तुओं पर शुल्क में छूट की मांग की है लेकिन भारत ने स्पष्ट किया है कि कृषि उत्पादों को मुक्त व्यापार समझौते से बाहर रखा जाएगा।

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    भारत की 70 करोड़ से अधिक आबादी अब भी कृषि पर निर्भर करती है। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    राजीव कुमार, नई दिल्ली। ट्रंप प्रशासन के दबाव के बावजूद भारत अमेरिका के लिए कृषि उत्पादों का बाजार खोलने के पक्ष में नहीं दिख रहा है। भारत की 70 करोड़ से अधिक आबादी अब भी कृषि पर निर्भर करती है और किसानों के लिए प्रतिस्पर्धा पैदा करना भारतीय अर्थव्यवस्था के हक में नहीं होगा।

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    अमेरिका के कृषि उत्पादों के लिए भारतीय बाजार को खोलने पर या उन उत्पादों पर शुल्क कम करने पर यूरोपीय यूनियन और ब्रिटेन भी ऐसा करने के लिए कह सकते हैं। इन दिनों यूरोपीय यूनियन और ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए भारत की वार्ता चल रही है। यूरोपीय यूनियन चीज व अन्य दुग्ध उत्पादों पर शुल्क कटौती की मंशा पहले ही जाहिर कर चुका है।

    'कृषि उत्पाद संवेदनशील आइटम'

    अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हावर्ड लुटनिक ने भारत से कहा है कि अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता में कृषि उत्पादों पर शुल्क में कटौती के मुद्दे को शामिल किया जाना चाहिए। वाणिज्य मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक कृषि उत्पाद हमारे लिए संवेदनशील आइटम है। आस्ट्रेलिया के साथ एफटीए किया गया, लेकिन कृषि उत्पादों को शामिल नहीं किया गया। ब्रिटेन के साथ भी वार्ता में यह साफ कर दिया गया है कि कृषि संबंधी आइटम को एफटीए से दूर रखा जाएगा। ऐसे में अमेरिकी कृषि वस्तुओं पर शुल्क में कटौती की गुंजाइश नहीं दिख रही है।

    सूत्रों के मुताबिक बादाम, पिस्ता, सेब और क्रेनबेरी जैसे आइटम पर शुल्क में कटौती की जा सकती है। अमेरिका के सेब पर अभी 50 प्रतिशत का शुल्क लगता है, इसमें भी बहुत कटौती की गुंजाइश कम है क्योंकि इससे हिमाचल और कश्मीर के किसान प्रभावित होंगे। लेकिन दुग्ध आइटम और अन्य खाने-पीने की चीजें जिससे देश के किसानों का हित प्रभावित हो सकता है, पर शुल्क में कटौती की संभावना नहीं दिख रही है। भारत कई कृषि व खाद्य आइटम पर अमेरिका से 100 प्रतिशत तक शुल्क वसूलता है।

    भारत अमेरिका को इन खाद्य पदार्थों का करता है निर्यात

    दूसरी तरफ भारत अमेरिका में अनाज, समुद्री उत्पाद, मांस, फल-सब्जी और कई प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का सालाना छह अरब डॉलर से अधिक का निर्यात करता है। विदेश व्यापार विशेषज्ञों के मुताबिक भारत अमेरिका को कुछ कृषि पदार्थों पर शुल्क में छूट देता है तो कुछ दिनों के बाद अमेरिका अन्य कृषि वस्तुओं के शुल्क में छूट के लिए दबाव बना सकता है। चीन की तरफ से अमेरिकन सोयाबीन व अन्य खाद्य पदार्थों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने के बाद अमेरिका इन पदार्थों के लिए भारत का दरवाजा खुलवाना चाहता है।

    विशेषज्ञों का कहना है कि शुल्क को लेकर अमेरिका के साथ किसी भी समझौते के दौरान ऑटोमोबाइल सेक्टर का भी ध्यान रखना चाहिए। ऑस्ट्रेलिया ने 1980 के दशक में विदेशी पैसेंजर कार पर शुल्क को 45 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया। नतीजा यह हुआ कि आस्ट्रेलिया में घरेलू कार का उद्योग तबाह हो गया। जिन औद्योगिक वस्तुओं पर शुल्क कम करने से हमारे घरेलू उद्योग को फर्क नहीं पड़ता, उन पर शुल्क को खत्म करने या कम करने में भारत को ही फायदा है।

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