India Pak Relations: अभी जमी रहेगी पाक के साथ रिश्तों पर बर्फ, शहबाज शरीफ बने प्रधानमंत्री; पीएम मोदी ने नहीं दी बधाई
तकरीबन 22 महीने बाद पीएमएल-एन के नेता शहबाज शरीफ ने एक बार फिर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) का यह गठबंधन अप्रैल 2022 से अगस्त 2023 तक सत्ता में रहा था और इस दौरान भारत के साथ रिश्ते कुछ खास नहीं रहे थे। यह स्थिति आगे भी बने रहने की संभावना है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। तकरीबन 22 महीने बाद पीएमएल-एन के नेता शहबाज शरीफ ने एक बार फिर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) का यह गठबंधन अप्रैल, 2022 से अगस्त, 2023 तक सत्ता में रहा था और इस दौरान भारत के साथ रिश्ते कुछ खास नहीं रहे थे। यह स्थिति आगे भी बने रहने की संभावना है।
जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिरता, आतंकवाद को लेकर शहबाज सरकार का रवैया और चीन के साथ उसके रणनीतिक संबंधों की स्थिति को देख कर भारत आगे फैसला करेगा। कुछ लोग यह भी मान रहे हैं कि हाल के महीनों में पाकिस्तान एक बार फिर अमेरिका के करीब आया है। यह स्थिति भी भारत व पाकिस्तान के रिश्तों पर असर दिखा सकती है।
विदेश मंत्रालय ने कोई प्रतिक्रिया जारी नहीं की
भारतीय विदेश मंत्रालय ने देर शाम खबर लिखे जाने तक पाकिस्तान की नई सरकार को लेकर प्रतिक्रिया जारी नहीं की है। पड़ोसी देश में नई सरकार के गठन पर तुरंत इंटरनेट मीडिया पर बधाई देने वाले पीएम नरेन्द्र मोदी की तरफ से भी कोई संदेश जारी नहीं किया गया है।
पीएम मोदी ने शरीफ को बधाई दी थी
अप्रैल, 2022 में जब शहबाज शरीफ पहली बार प्रधानमंत्री बने थे, तब पीएम मोदी ने इंटरनेट मीडिया साइट एक्स (तत्कालीन ट्विटर) पर उन्हें बधाई दी थी। तब मोदी ने कहा था कि भारत इस पूरे क्षेत्र में शांति व आतंकवाद मुक्त स्थिरता चाहता है, ताकि हम विकास की चुनौतियों पर ध्यान दे सकें और जनता की भलाई सुनिश्चित करें।
शहबाज ने रविवार को कश्मीर का मुद्दा उठाया
पीएम पद के लिए निर्वाचित होने पर शहबाज ने रविवार को कश्मीर का मुद्दा उठाया था और पाकिस्तान की संसद में कश्मीर और फलस्तीन की आजादी पर प्रस्ताव पारित कराने की बात कही थी। भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारी बताते हैं कि विगत नौ वर्षों से भारत के रिश्ते पाकिस्तान से तनावग्रस्त हैं। लेकिन इसका असर ना तो वैश्विक कूटनीति में भारत की साख पर पड़ा है और ना ही भारत की आर्थिक प्रगति पर।
भारत के लिए द्विपक्षीय रिश्तों पर आगे बढ़ना मुश्किल
ऐसे में भारत के लिए पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारने का कोई दबाव नहीं है। कश्मीर और आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान के रवैये में बदलाव आए बिना भारत के लिए द्विपक्षीय रिश्तों पर आगे बढ़ना मुश्किल है। इसके अलावा मौजूदा परिप्रेक्ष्य में दोनों तरफ की सरकारों की प्राथमिकताएं अलग होंगी।
देश की आर्थिक बदहाली को दूर करने की चुनौती
पाकिस्तान की नई सरकार के लिए जहां देश की आर्थिक बदहाली को दूर करने और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 3.5 अरब डालर की मदद लेना प्राथमिकता होगी, वहीं भारत मई, 2024 तक आम चुनाव में व्यस्त रहेगा। मोदी सरकार के कार्यकाल की शुरुआत के डेढ़ वर्षों को छोड़ दिया जाए तो पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते लगातार तनावपूर्ण ही रहे हैं।
नवाज सरकार के साथ रिश्तों को सुधारने की कोशिश
पीएम मोदी ने शुरुआत में नवाज शरीफ की सरकार के साथ रिश्तों को सुधारने की कोशिश की थी। उन्होंने बगैर औपचारिक आमंत्रण के पीएम नवाज शरीफ के परिवार में हुई एक शादी में शिरकत करने के लिए पाकिस्तान की यात्रा भी की थी। तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इस्लामाबाद के दौरे पर भी गईं और दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठकें भी हुईं। लेकिन 31 दिसंबर, 2015 को पठानकोट में पाक परस्त आतंकियों के हमले के बाद मोदी सरकार का रवैया पूरी तरह से बदल गया।
भारत ने पाकिस्तान में बने आतंकी ठिकानों पर हमले किए
बाद में भारत ने पाकिस्तान में बने आतंकी ठिकानों पर दो बार हमले किए। इससे रिश्ते काफी खराब हो गए। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 समाप्त करने के भारत के फैसले के बाद पाकिस्तान ने तीखी प्रतिक्रिया जताई थी और भारत से कूटनीतिक संबंधों को सीमित कर लिया था। यह स्थिति अभी तक है।
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