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    चावल, दूध, गेहूं और सोयाबीन में अग्रणी भारत, फिर भी दुनिया में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे यहां!

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Mon, 12 Mar 2018 11:01 AM (IST)

    उद्योग संगठन एसोचैम और सलाहकार फर्म अन्स्र्ट एंड यंग यानी ईएंडवाइ की एक साझा रिपोर्ट पिछले एक दशक के दौरान यानी 2005-2015 के बीच शिशु मृत्यु दर में कमी की ओर इशारा करती है।

    चावल, दूध, गेहूं और सोयाबीन में अग्रणी भारत, फिर भी दुनिया में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे यहां!

    नई दिल्ली [आशुतोष त्रिपाठी]।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय पोषण मिशन की शुरुआत की जिसका लक्ष्य देश में उचित पोषण की कमी से जूझ रहे बच्चों और माताओं की इससे उबरने में मदद करना है। हैरान करने वाली बात है कि चावल, दूध, गेहूं, सोयाबीन जैसे तमाम पोषक तत्वों के उत्पादन के मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में शुमार भारत कुपोषित बच्चों की संख्या के लिहाज से पूरे विश्व में सबसे आगे है। वर्ष 2017 में आई विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के करीब 38 फीसद बच्चे कुपोषित हैं। जहां 38 फीसद बच्चे छोटे कद की समस्या से पीड़ित हैं तो वहीं पांच वर्ष से कम उम्र के 21 फीसद बच्चे ऐसे हैं जिनका वजन उनके कद के उचित अनुपात में नहीं है। बच्चों के कुपोषण का एक प्रमुख कारण गर्भावस्था के दौरान मां की खराब सेहत भी है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बच्चा पैदा करने की उम्र में 51 फीसद महिलाएं एनीमिया से पीड़ित होती हैं जबकि 22 फीसदी वयस्क महिलाएं अधिक वजन की समस्या से परेशान हैं।

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    शिशु मृत्यु दर में कमी

    हालांकि पुरुषों में अधिक वजन की समस्या का अनुपात कम है और 16 फीसदी वयस्क पुरुष इस रोग से पीड़ित हैं। उद्योग संगठन एसोचैम और सलाहकार फर्म अन्स्र्ट एंड यंग यानी ईएंडवाइ की एक साझा रिपोर्ट पिछले एक दशक के दौरान यानी 2005-2015 के बीच शिशु मृत्यु दर में कमी की ओर इशारा करती है, लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि दुनिया भर के 50 फीसद कुपोषित बच्चे भारत में ही रहते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2015 के आखिर तक 40 फीसद भारतीय बच्चे कुपोषित थे। दूसरी ओर इस रिपोर्ट से पता चलता है कि देश के शहरी इलाकों में मोटापे की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। अमेरिका और चीन के बाद मोटापे के मामले में भारत दुनिया में तीसरे पायदान पर है। इसके अलावा भारत दुनिया की डायबिटीज राजधानी के तौर पर भी कुख्यात होता जा रहा है जिसे काफी हद तक जीवनशैली और पोषण संबंधी रुझानों के साथ मिलाकर देखा जा सकता है।

    भयानक रूप धारण कर चुकी

    हालांकि 2005-06 के मुकाबले 2015-16 में कुपोषण से पीड़ित पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की संख्या में कमी आई है, लेकिन यह नाकाफी है और समस्या काफी भयानक रूप धारण कर चुकी है। समस्या की गंभीरता को समझते हुए कुछ समय पूर्व नीति आयोग ने एक राष्ट्रीय पोषण रणनीति की शुरुआत की थी। यह रणनीति देश के भविष्य को ध्यान में रखकर तैयार की गई है, क्योंकि कुपोषण के कलंक से मुक्ति पाए बिना आर्थिक वृद्धि के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता है। एक व्यापक सलाहकारी प्रक्रिया के माध्यम से पोषण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक प्रभावी रूपरेखा तैयार की गई है जिसके तहत कुपोषण से मुक्ति पाने के साथ ही बच्चों, युवतियों और महिलाओं की सेहत पर विशेष ध्यान दिए जाने का उल्लेख किया गया है। सरकार की इस दूरगामी योजना में विभिन्न प्रकार के कुपोषण से निपटने के अलावा एनीमिया से पीड़ित महिलाओं की संख्या में भी तेजी से कमी लाने का लक्ष्य तय किया गया है।

    कुपोषण की समस्या

    उम्मीद की जा रही है कि इस योजना के बल पर कुपोषण की समस्या से निपटने में काफी आसानी होगी। इसके अंतर्गत पोषण के चार सबसे महत्वपूर्ण तत्वों-स्वास्थ्य सेवाएं, भोजन, पेयजल, सफाई और आय एवं आजीविका पर जोर देने की बात कही गई है। ये सभी उपाय भारत में अल्प-पोषण की गिरती दर को थामने में निश्चित रूप से मददगार साबित होंगे। जाहिर है इससे सबसे अधिक फायदा बच्चों को होगा। पिछले तीन वर्षों में स्वास्थ्य के मोर्चे पर काफी काम किया गया है। स्वच्छ भारत मिशन समुदायों को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने की दिशा में केंद्रित है और इसका सीधा असर बच्चों को होने वाली डायरिया जैसी बीमारियों पर भी पड़ना तय है। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं की मदद करता है। इसके साथ ही सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना स्वास्थ्य संबंधी उचित व्यवहार और टीकाकरण को भी बढ़ावा देती है।

    मिशन इंद्रधनुष

    मिशन इंद्रधनुष काफी तेज गति से महिलाओं और बच्चों के संपूर्ण टीकाकरण की दर को बढ़ावा दे रहा है। विशेष स्तनपान योजना छह महीने के तक के बच्चों के बीच संक्रमण कम करने के लिए विशेष स्तनपान को बढ़ावा देने की ओर केंद्रित है। सितंबर 2017 में ही गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं, बच्चों और युवतियों को आंगनवाड़ी के माध्यम से पूरक पोषण मुहैया कराने के लागत संबंधी नियमों में भी बदलाव किए गए हैं और इसे खाद्य मूल्य सूचकांक से जोड़ दिया गया है। ऐसे में राष्ट्रीय पोषण मिशन उपरोक्त सभी प्रमुख योजनाओं को कुपोषण से जूझ रहे जिलों की ओर केंद्रित कर एकीकृत करने का काम करेगा। इस मिशन में टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर योजना के क्रियान्वयन संबंधी पहलुओं पर तात्कालिक आधार पर नजर बनाए रखने की सुविधा दी गई है जिसके अंतर्गत आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आठ किलोग्राम के रजिस्टर के बजाय 150 ग्राम के मोबाइल फोन पर काम कर सकेंगी।

    सरकारी नीतियों के मत्थे समाधान का सारा बोझ

    बहरहाल समस्या का दायरा इतना बड़ा है कि उसके समाधान का सारा बोझ सरकारी नीतियों के मत्थे मढ़कर हम अपने कर्तव्यों की इतिश्री नहीं कर सकते। ऐसे में ‘न्यू इंडिया’ को ‘सुपोषित भारत’ के रूप में दुनिया में पहचान दिलाने के लिए एक जन आंदोलन की आवश्यकता है और इस दिशा में राष्ट्रीय पोषण मिशन एक महत्वपूर्ण प्रयास साबित हो सकता है। आज युवाओं की आबादी के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे है जिसे डेमोग्राफिक डिविडेंड यानी जननांकीय लाभांश का नाम दिया जाता है, लेकिन काम करने में सक्षम इस आबादी की क्षमता का लाभ हम तभी उठा सकते हैं जब हमारे देश के युवा सबल, सक्षम और पोषणयुक्त हों। ऐसे में पोषण के तमाम पहलुओं पर गौर करते हुए, सख्त निगरानी की व्यवस्था के साथ, प्रौद्योगिकी की मदद से लागू किए जाने वाला सरकार का यह प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है, लेकिन आखिरकार सारा दारोमदार योजना के क्रियान्वयन पर निर्भर है ।

    (लेखक न्यूज एप इनशॉट्र्स में एसोसिएट एडीटर हैं)

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