Move to Jagran APP

चीन में शी चिनफिंग को आजीवन सत्ता मिलने से एक युग का हुआ अंत, भारत के लिए खतरा

राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन की राजनीति में एक प्रभावशाली चेहरा बन चुके हैं। उनके साथ पार्टी के धड़ों की वफादारी के साथ सेना और व्यापारी वर्ग भी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sat, 10 Mar 2018 04:35 PM (IST)Updated: Mon, 12 Mar 2018 12:54 PM (IST)
चीन में शी चिनफिंग को आजीवन सत्ता मिलने से एक युग का हुआ अंत, भारत के लिए खतरा
चीन में शी चिनफिंग को आजीवन सत्ता मिलने से एक युग का हुआ अंत, भारत के लिए खतरा

नई दिल्ली [शिवांग माथुर]। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग पांच साल पहले सत्ता में आये और उन्होंने कम समय में ही सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता हैं कि शी चिनफिंग ने चीन के संविधान में बड़े बदलाव को अंजाम दिया है। जिसके बाद राष्ट्रपति शी चिनफिंग दो कार्यकाल से ज्यादा समय तक पद पर बने रह सकते हैं। खास बात यह है कि इस बड़े फैसले के पीछे गोपनीय रूप से वार्ता कई महीने पहले से जारी थी। पूरी दुनिया इस बात से हैरान है कि कैसे शी ने बड़ी चतुराई से संविधान को फिर से लिखने की पटकथा तैयार कर दी। जानकारों की मानें तो सीपीसी की केंद्रीय समिति ने देश के संविधान से इस उपबंध को हटाने का प्रस्ताव रखा है, जिसमें राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कार्यकाल दो बार से ज्यादा नहीं होने का प्रावधान है। इससे यह बात साफतौर पर जाहिर होती है कि शी चिनफिंग को दो से अधिक बार के कार्यकाल का मौका मिलना तय है। चीन की राजनीति में इसे एक निर्णायक घड़ी के तौर पर देखा जा रहा है। शी चिनफिंग 2012 में पार्टी के प्रमुख बने और चीन के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे।

loksabha election banner

चीन की राजनीति में एक प्रभावशाली चेहरा

राष्ट्रपति शी चिनफिंग चीन की राजनीति में एक प्रभावशाली चेहरा बन चुके हैं। उनके साथ पार्टी के धड़ों की वफादारी के साथ सेना और व्यापारी वर्ग भी है। इनकी वजह से वो चीन के क्रांतिकारी संस्थापक माओत्से तुंग के बाद सबसे शक्तिशाली नेता माने जाने लगे हैं। शी चिनफिंग की तस्वीरों के होर्डिंग पूरे चीन में देखे जा रहे हैं और सरकारी गानों में उनके आधिकारिक छोटे नाम, 'पापा शी' का इस्तेमाल होना भी अब आम बात हो गई है।

शी के आगे भी राष्‍ट्रपति बने रहने का रास्‍ता साफ

चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ने संविधान से राष्ट्रपति के दो कार्यकाल की सीमा हटाने का जो प्रस्ताव रखा है इससे संभवत शी चिनफिंग के दूसरे कार्यकाल के बाद भी सत्ता में बने रहने का रास्ता खुल जाएगा। यानी चिनफिंग का कार्यकाल 2023 तक होना तय हैं। इससे चीन के सबसे शक्तिशाली शासक समझे जाने वाले 64 वर्षीय शी को असीमित कार्यकाल मिल जाने की संभावना है। शी सीपीसी और सेना के भी प्रमुख भी हैं। पिछले साल 7 सदस्यीय का जो नेतृत्व सामने आया था, उसमें कोई भी उनका भावी उत्तराधिकारी नहीं है। ऐसे में इस संभावना को बल मिलता है कि शी का अपने दूसरे कार्यकाल के बाद भी शासन करने का इरादा है। पार्टी के सभी अंगो ने पिछले तीन दशक से चले आ रहे सामूहिक नेतृत्व के सिद्धांत को दरकिनार कर उन्हें पार्टी का शीर्षतम नेता घोषित कर दिया है।

शी को प्रमुख नेता का खिताब

बता दे कि वर्ष 2016 में सीपीसी ने आधिकारिक रुप से उन्हें प्रमुख नेता का खिताब से नवाजा था। आपको बता दें कि पांच साल में एक बार होने वाली सीपीसी की कांग्रेस पिछले साल शी की विचारधारा को संविधान में जगह देने पर राजी भी हो गयी थी। यह सम्मान चीन के संस्थापक माओत्से तुंग और उनके उत्तराधिकारी देंग शियोपिंग के लिए ही आरक्षित था।

चीन कैसे चुनता है अपना राष्ट्रपति?

हर पांच साल पर दुनिया की नजर चीन में होने वाली सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस पर होती है। इसी कांग्रेस में तय किया जाता है कि कम्युनिस्ट पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा। जिसके हाथ में कम्युनिस्ट पार्टी की कमान होती है, वो चीन के एक अरब 30 करोड़ लोगों पर शासन करता है। इसके साथ ही वो शख्स दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का संचालन करता है। बंद दरवाज़े के भीतर सीपीसी शक्तिशाली सेंट्रल कमेटी का चुनाव करती है। सेंट्रल कमेटी में करीब 200 सदस्य होते हैं। यही कमेटी पोलित ब्यूरो का चयन करती है और पोलित ब्यूरो के जरिए स्थायी समिति का चयन किया जाता है। ये दोनों कमेटियां चीन में निर्णय लेने वाले असली निकाय हैं। पोलित ब्यूरो में अभी 24 सदस्य हैं जबकि स्टैंडिंग कमेटी के सात सदस्य हैं।

ओबीओआर : चीन की योजना

दरअसल, चीन ने चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर को 'वन बेल्ट वन रोड' के तहत एक मॉडल परियोजना के रुप में पेश किया है। ग्वादर बंदरगाह परियोजना को चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर का नाम दिया है। इसके तहत चीन को इस बंदरगाह से जोड़ने की योजना है। इस समझौते पर 2015 में हस्ताक्षर हुआ था और इसमें सड़कें, रेलवे और बिजली परियोजनाओं के अलावा कई विकास परियोजनाएं शामिल हैं। चीन पहले ही इस कार्यक्रम के लिए पाकिस्तान को अपना सहयोगी बता चुका है। वहीं दूसरी ओर भारत के पडोसी मुल्क श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह बनाने के लिए चीन सहयोग कर रहा है। चीन मालदीव में ढांचागत सुविधाओं के विकास के लिए निवेश कर रहा है। वहीं चीन तिब्बत रेलवे को नेपाल सीमा तक बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। बता दें की नेपाल ने कहा है कि वो इसका हिस्सा बनने के लिए तैयार है और अब चीन उसके लिए एक बड़े मौके की तरह उभर रहा है।

सीपैक से भारत की नाराजगी

चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर भारत के पड़ोसी देशों के नजदीक से और साथ ही पाकिस्‍तान प्रशासित कश्मीर से गुजर रहा है। यही कारण है कि भारत ने इसका विरोध किया है। इसी के चलते भारत ने पिछले साल मई के महीने में हुए 'वन बेल्ट वन रोड' फोरम का भी बहिष्कार किया था। भारत के लिए ये चुनौती है कि अब जब चीन और शक्तिशाली बन रहा है तो क्या वो चीन के नेतृत्व में होनेवाले इस विकास का हिस्सा बनेगा या आसियान, जापान और अमेरिका के साथ मिल कर एक विकल्प बनाने की कोशिश करेगा। भारत पर 'बेल्ट एंड रोड' का हिस्सा बनने का दबाव भी रहेगा और अगर वो इसका हिस्सा नहीं बनता है तो दक्षिण एशिया में उसके अलग-थलग पड़ने की काफी गुंजाइश है। वही दूसरी ओर चीन ने एनएसजी में भारत की सदस्यता का विरोध कर चुका हैं। इसके जबाव में भारत ने चीन को ये साफ कहा है की द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए चीन को भारत के हितों का ध्यान रखना होगा।

चीन की बढ़ती ताकत बड़ा खतरा

अब इन सभी के बीच एक बड़ा सवाल ये है कि शी चिनफिंग के ताकतवर होने के भारत ले लिए क्या मायने हैं। इसके साथ ही भारत इससे कितना प्रभावित होगा? चीन मामलो के जानकार संजय भारद्वाज के मुताबिक "शी चिनफिंग का ताकतवर होना किसी भी लोकतान्त्रिक देश के लिए सबसे बड़ा खतरा हो सकता है। ऐसा होने पर संस्थागत निर्णय के बजाय व्यक्ति केन्द्रित निर्णय को बढ़ावा मिलेगा। वहीं एक तरफ भारत को डोकलाम में पहले से ही चीन की वजह से परेशान है ऐसे में भारत को भी अपने स्तर पर ये तय करना होगा की चीन से भारत दोस्ती चाहता है या दुश्मनी।

शी की ये है मंशा

शी चिनफिंग चीन को राजनीति शक्ति के रूप में विकसित करने के अलावा साल 2021 तक इसे उदारवादी संपन्न देश बनाना चाहते हैं। इसका मतलब है कि 2010 तक चीन का जो सकल घरेलू उत्पाद था उसे 2021 तक वो दोगुना करना चाहते हैं। सरल शब्दों में कह सकते हैं कि शी चीन को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना चाहते हैं। 2021 में कम्युनिस्ट पार्टी के सौ साल पूरे होने जा रहे हैं। इसके बाद दूसरे स्तर पर 2035 तक चीन को इसी स्तर पर यानी इस विकास को बनाए रखने की चुनोती है। इसके बाद वो साल 2049 तक एडवान्स्ड सोशलिस्ट देश यानी सैन्य ताकत, अर्थव्यवस्था, संस्कृति में सबसे बड़ी शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता हैं ।

भारत और पाकिस्‍तान के बीच वार्ता में बड़ी रुकावट बना है आतंकी हाफिज सईद 

चीन सबसे बड़ा एक्‍सपोर्टर

चीन ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ा स्थान हासिल कर लिया है। चीन आज 13 प्रतिशत के साथ सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है। दुनिया की 100 सबसे अमीर कंपनियों में से 12 वहां है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि चीन ने अभूतपूर्व समृद्धि खुद के लिए भी निर्मित की और उनके लिए भी जिन्होंने उसके साथ व्यापार किया।

अमेरिका के करने तक सब ठीक था, लेकिन जब हमने किया तो ट्रंप को हो रहा दर्द 
बिना विवाद सुलझे आखिर कैसे 1 और 1 ग्‍यारह हो सकते हैं भारत और चीन
यदि सच हो गई उत्तर कोरिया के तानाशाह किम की सोच तो उनकी हो जाएगी पौ-बारह 
सोवियत रूस का हिस्सा रहा यूक्रेन पहले ही गिरा चुका है लेनिन की हजारों प्रतिमाएं 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.