लैटिन अमेरिकी देशों के साथ कारोबार बढ़ा रहा भारत, फ्री ट्रेड डील की हो रही शुरुआत; जानिए क्या है इसकी अहमियत
भारत को वर्ष 2047 तक विकसित देश बनाने के लिए जिस तरह से सौर ऊर्जा सेमीकंडक्टर इलेक्ट्रिक वाहनों आदि की जरूरत होगी उसका उत्पादन क्रिटिकल खनिजों के बगैर नहीं किया जा सकता। लैटिन अमेरिकी देशों में इसके भंडार हैं। पेरू के साथ तो जल्द ही मुक्त व्यापार समझौता की शुरुआत होने जा रही है। निजी क्षेत्र की कंपनियां भी भारत सरकार के साथ हैं।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सात समुंदर पार लैटिन अमेरिकी देशों के साथ कारोबार बढ़ाने को लेकर भारत सरकार पहले भी कोशिश करती रही है, लेकिन अब जो तैयारी व संजीदगी दिख रही है, वैसी पहले नहीं थी। चीन की विस्तारवादी मंसूबे से सशंकित लैटिन अमेरिकी देशों का आकर्षण भी भारत की तरफ से ज्यादा गंभीर दिख रहा है।
ब्राजील, अर्जेंटीना जैसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं ही नहीं बल्कि पेरू, बोलिविया, सेंट कीट्स जैसे कम विकसित व छोटे देश भी भारत के साथ कूटनीतिक व द्विपक्षीय कारोबार को बढ़ाने की मंशा जता चुका हैं। पेरू के साथ तो जल्द ही मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) करने की शुरुआत होने जा रही है।
100 अरब डॉलर तक पहुंचेगा कारोबार
ऐसे में भारत सरकार ने अगले तीन वर्षों में लैटिन अमेरिकी देशों के साथ अपने द्विपक्षीय कारोबार के लक्ष्य को मौजूदा 50 अरब डॉलर से बढ़ा कर 100 अरब डॉलर कर दिया है। वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और विदेश राज्य मंत्री पबित्रा मार्गेरीटा तो यह मानते हैं कि द्विपक्षीय कारोबार की संभावनाएं सौ अरब डॉलर से भी काफी ज्यादा हैं।
पिछले हफ्ते सीआईआई की तरफ से भारत और लैटिन अमेरिकी व कैरिबियन देशों (एलएएसी) के बीच आयोजित कारोबारी सम्मेलन में वाणिज्य व उद्योग मंत्री ने कहा कि, 'भारत एलएसी क्षेत्र के देशों के साथ जल्द से जल्द कारोबारी समझौता करना चाहता है। सिर्फ कारोबार व प्रौद्योगिकी क्षेत्र में ही नहीं बल्कि रक्षा क्षेत्र में भी दोनों देशों के बीच संभावनाओं को मजूबत किया जाएगा।'
निजी क्षेत्र की कंपनियां भी साथ
- जबकि विदेश राज्य मंत्री मार्गेरीटा ने बताया कि 'विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हमें द्विपक्षीय कारोबार को 100 अरब डॉलर वर्ष 2027-28 तक करने का लक्ष्य दिया है। जिस तरह से हर देश में राष्ट्रवादी नीतियां बनाई जा रही हैं और बाजार में अस्थिरता है, उसे देखते हुए इस लक्ष्य के लिए काफी कोशिश करनी होगी। भारत सरकार इस चुनौती को स्वीकार कर रही है। दक्षिण अमेरिका के पास प्राकृतिक संसाधन है और भारत के पास बड़ा बाजार है।'
- अच्छी बात यह है कि निजी क्षेत्र की कंपनियां भी भारत सरकार के साथ हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय कंपनियों ने लैटिन अमेरिकी देशों में कुल 15 अरब डॉलर का निवेश किया है। सिर्फ सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारतीय कंपनियों ने वहां 4,000 स्थानीय निवासियों को नौकरियां दी है।
- वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारी स्वीकार करते हैं कि भारत को अभी जितनी लैटिन अमेरिकी देशों की जरूरत है, उतनी पहले कभी नहीं रही। इसके पीछे एक बड़ी वजह इस क्षेत्र में उपलब्ध क्रिटिकल खनिजों के अकूत भंडार हैं। भारत को वर्ष 2047 तक विकसित देश बनाने के लिए जिस तरह से सौर ऊर्जा, सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रिक वाहनों आदि की जरूरत होगी, उसका उत्पादन क्रिटिकल खनिजों के बगैर नहीं किया जा सकता।
अर्जेंटीना में खनन का लाइसेंस मिला
बोलिविया, पेरू, अर्जेंटीना जैसे देशों के पास लिथियम के बहुत ही अच्छे भंडार है, जिसमें भारतीय कंपनियां निवेश कर सकती हैं। पिछले वर्ष भारत की सरकारी कंपनी खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड (काबिल) ने अर्जेंटीना में तीन नये लिथियम ब्लॉक में खनन का लाइसेंस हासिल किया है। चीन की कंपनियों से प्रतिस्पद्र्धा के बावजूद भारतीय कंपनी को मिली यह सफलता बेहद उल्लेखनीय है।
इसी तरह से भारत की मंशा पेरू के साथ इस साल के अंत तक एफटीए को अंतिम रूप देने की है। भारत की कोशिश होगी कि इसमें खनिज क्षेत्रों में तकनीकी सहयोग व निवेश को लेकर दोनों देशों के बीच कोई बाधा नही हो। पिछले साल भारत और इस क्षेत्र के एक अन्य देश चिली के बीच समग्र आर्थिक साझेदारी समझौते (सीपा) पर वार्ता की शुरुआत हुई है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।