Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    42 साल पहले का वो खौफनाक मंजर... जब बिहार की बागमती नदी में समा गई थी ट्रेन; सैकड़ों लोगों की हुई थी मौत

    By Preeti GuptaEdited By: Preeti Gupta
    Updated: Sat, 03 Jun 2023 02:40 PM (IST)

    Odisha Train Accident ओडिशा रेल हादसे की तरह ही आज से 42 साल पहले इसी महीने में 6 जून1981 को बिहार में देश का सबसे बड़ा रेल हादसा हुआ था। यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेन बागमती नदी में जा गिरी थी। जिसमें सैकड़ो लोगों की मौत हो गई थी।(जागरण ग्राफिक्स)

    Hero Image
    Odisha Train Accident: 42 साल पहले का वो खौफनाक मंजर

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Odisha Train Accident: ओडिशा के बालासोर जिले में शाम 7:20 पर दर्दनाक रेल हादसा हुआ, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। कोरोमंडल एक्सप्रेस (12841-अप) शुक्रवार शाम बाहानगा स्टेशन से दो किमी दूर पनपना के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस हादसे में 238 की मौत हो गई है, जबकि सैकड़ों लोग बुरी तरह से घायल हैं। यह ट्रेन हादसा इतना भयानक था कि हादसे की आवाज पांच किमी तक सुनाई दी। लोग सहम उठे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ट्रेन में सवार लोगों के शव यहां-वहां बिखरे मिले। कहीं किसी का कटा हुआ हाथ पड़ा था तो कहीं पर किसी का पैर। ट्रेन के नीचे सैकड़ों लोग फंसे थे। इस रेल हादसे ने आज से 42 साल पहले बिहार में हुए रेल हादसे की याद दिला दी। यह हादसा आज भी बिहार के लोगों के जेहन में है और वह जब-जब इसे याद करते हैं तो सिहर उठते हैं।

    1981 में हुआ भारत का सबसे बड़ा रेल हादसा

    बिहार में हुआ रेल हादसा इतना भयानक था कि इतिहास के पन्नों में उसे भारत के लिए काला दिन कहा जाता है। भारतीय रेल के 170 साल पुराने इतिहास में ये रेल हादसे काले धब्बे की तरह हैं, जिसे चाहें भी तो भुलाया नहीं जा सकता है। बिहार में 6 जून, साल 1981 के हुए हादसे को पूरी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल हादसा कहा जाता है।

    ऐसा कहा जाता है कि इस हादसे में 800 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि कई लोगों के तो शव भी बरामद नहीं हो पाए थे। भारतीय रेलवे हमेशा अपने यात्रियों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम रखती है, लेकिन कभी-कभी ऐसे भीषण रेल हादसे हो जाते हैं, जिससे विभाग पर कई सवाल खड़े हो जाते हैं।

    मानसी से सहरसा की ओर जा रही थी ट्रेन

    बरसात का मौसम चल रहा था, शाम का समय था और दिन था 6 जून 1981। अपनों से मिलने की आस लिए हुए सभी यात्री खचाखच भरी हुई ट्रेन में सफर कर रहे थे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनके साथ इतना भीषण हादसा हो जाएगा। 6 जून 1981 में शाम के समय 9 बोगियों वाली गाड़ी संख्या 416dn पैसेंजर ट्रेन, मानसी से सहरसा की ओर जा रही थी।

    खिड़कियों और छतों पर लद कर सफर करने को मजबूर थे यात्री

    1981 में 416dn पैसेंजर ट्रेन केवल एकमात्र ऐसी ट्रेन थी, जो  खगड़िया से सहरसा तक का सफर तय करती थी।  एकमात्र ट्रेन होने के चलते इसमें बड़ी संख्या में यात्री सफर करते थे। उस दिन भी ट्रेन लोगों से भरी हुई थी। अंदर से लेकर बाहर तक लोग लदे हुए थे। जिन यात्रियों को सीट नहीं मिली थी वे ट्रेन के दरवाजों, खिड़कियों पर लटक कर सफर करने के लिए मजबूर थे। यात्री इंजन पर, ट्रेन की छत पर सफर कर रहे थे।

    पुल पर चढ़ते ही ड्राइवर ने लगाया इमरजेंसी ब्रेक

    ट्रेन अपने गंतव्य स्थान पर जा ही रही थी कि अचानक से मौसम का मिजाज बदल गया। तेज आंधी और बारिश होने लगी थी। बदला स्टेशन पार करने के बाद आगे बागमती नदी थी। ट्रेन को बागमती नदी पर बने पुल संख्या 51 से होकर गुजरना था, लेकिन जैसे ही ट्रेन के ड्राइवर ने पुल पर ट्रेन चढ़ाई। उसने कुछ ही मिनट के बाद इमरजेंसी ब्रेक लगा दिया।

    चीख-पुकार से दहल उठा था घटनास्थल

    ब्रेक लगाने के तुरंत बाद ही ट्रेन की 9 बोगियां में से सात डिब्बे अलग हो कर उफनती नदी बागमती में जा गिरी थी और देखते ही देखते पूरा मंजर बदला गया। चारों और चीख पुकार मच गई। लोग बचाओ-बचाओ चिल्लाने लगे। भारी बारिश होने के कारण नदी में डूबे लोगों को तुरंत सहायता नहीं मिल सकी। घटनास्थल पर पहुंचने के लिए राहत-बचाव की टीम को घंटों की देरी हो गई। इसी वजह से सैकड़ों की संख्या में लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।

    800 से 1000 लोगों ने गंवाई जान

    बिहार में हुए इस भीषण हादसे में लगभग हजार के आसपास  लोगों की मौत हो गई थी। हादसा इतना दर्दनाक हुआ था कि कई यात्रियों के तो शव भी बरामद नहीं हुए थे।

    सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस हादसे में करीब 300 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन स्थानीय लोगों के मुताबिक इस हादसे में 800 से 1000 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।  मरने वालों की सही संख्या आज तक पता नहीं है।

    800 से ज्यादा मौत..पर बरामद हुए 286 शव

    कुछ लोग दबकर मर गए तो कुछ लोग डूबकर। जिन्हें तैरना आता था वे ट्रेन से बाहर ही नहीं आ पाए और जो बाहर आ पाए वो नदी के बहाव में बह गए। यानी मौत से बचने का कोई रास्ता ही नहीं था।आमतौर पर राहत-बचाव का कार्य 24 से 48  घंटों तक चलता है, लेकिन यह हादसा इतना दर्दनाक था कि लोगों की लाशों को निकालने में कई हफ्तों का वक्त लग गया।

    राहत-बचाव की टीमें और गोताखोर किसी भी तरह से लोगों को बचाने में जुटे हुए थे। उन्हें केवल 286 ही शव बरामद हुए, कईयों का तो पता नहीं चल सका। ये रेल हादसा भारत का अब तक का सबसे बड़ा ट्रेन हादसा हुआ है, जिसे आज भी याद कर लोगों की आखें नम हो जाती हैं।

    कैसे नदी में समा गए  थे ट्रेन के डिब्बे?

    • बागमती नदी पर हुए इस भीषण हादसे की आजतक असल वजह का पता नहीं चल पाया है। अभी भी यह केवल सवाल बनकर रह गया है कि आखिरकार ट्रेन के ड्राइवर ने अचानक इमरजेंसी ब्रेक क्यों लगाया था। यह गुत्थी आज तक नहीं सुलझ पाई है। इस ट्रेन के हादसे की वजह के पीछे अलग-अलग थ्योरियां बताई जाती है।
    • पहली ये कि ट्रेन के सामने गाय या भैंस आ गई थी, जिसे बचाने के लिए ड्राइवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगाए थे। स्पीड में एकदम लगाए गए ब्रेक की वजह से डिब्बों का संतुलन बिगड़ा और 9 में से 7 डिब्बे नदी में गिर गए।
    • दूसरी वजह ये बताई जाती है कि ट्रेन के खिड़की-दरवाजे सब बंद थे, इसलिए तेज आंधी- तूफान का पूरा दबाव ट्रेन पर पड़ा और ट्रेन नदी में गिर गई। हालांकि, आज तक सटीक कारणों का पता नहीं चल पाया है।