पिछले पांच वर्षों में राज्यों के पेंशन बोझ में 48 फीसद की हुई है वृद्धि, हिमाचल का अपना राजस्व 9282 करोड़
आरबीआइ के आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में समग्र तौर पर राज्यों का पेंशन बोझ 48 पीसद की वृद्धि के साथ वर्ष 2021-22 में 406867 करोड़ रुपये का हो गया है। इस दौरान सभी राज्यों का समग्र तौर पर अपना राजस्व 1594665 करोड़ रुपये रहा है।
नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत का एक बड़ा कारण पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने के वादे को भी जाता है। इस स्कीम को लागू करने का बोझ नई सरकार पर नहीं पड़ेगा क्योंकि इसका प्रभाव अगले दस वर्षों में दिखेगा। लेकिन अभी राज्य के खजाने की जो स्थिति है उसे देखते हुए मौजूदा पेंशन के बोझ को पूरा करने के लिए भी नए वित्त मंत्री को काफी मशक्कत करनी होगी।
क्या कहता है आरबीआइ का ताजा डाटा
आरबीआइ का ताजा डाटा बताता है कि वर्ष 2021-22 के बजटीय अनुमान में हिमाचल प्रदेश का अपना राजस्व संग्रह 9,282 करोड़ रुपये का था लेकिन इस साल इसके पेंशन खर्चे का दायित्व 7082 करोड़ रुपये का रहा था। कांग्रेस ने जिस तरह से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और अब हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन स्कीम को अपना प्रमुख चनावी नारा बनाते हुए सफलता हासिल की है उससे इस बात के संकेत है कि वर्ष 2023 में जिन नौ राज्यों में विधान सभा चुनाव हैं वहां भी यह एक बड़ा मुद्दा होगा।
आरबीआइ के आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में समग्र तौर पर राज्यों का पेंशन बोझ 48 पीसद की वृद्धि के साथ वर्ष 2021-22 में 4,06,867 करोड़ रुपये का हो गया है। इस दौरान सभी राज्यों का समग्र तौर पर अपना राजस्व 41 फीसद के इजाफे के साथ 15,94,665 करोड़ रुपये रहा है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ जहां ओपीएस लागू हो चुकी है वहां सरकार के अपने राजस्व का क्रमश: 28 फीसद और 26 फीसद खर्च अभी पेंशन मद में कर रही हैं।
त्रिपुरा और नागालैंड की सरकारें
वर्ष 2023 में त्रिपुरा और नागालैंड में भी चुनाव होने वाले हैं और वहां की सरकारें अभी अपने कुल राजस्व से दोगुनी राशि पेंशन दायित्व के निर्वहण में खर्च कर ही हैं। अगर बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे दूसरे बड़े राज्यों की बातें करें तो ओपीएस के तहत इन पर बोझ लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2017-18 में उत्तर प्रदेश पर यह बोझ 38,476 करोड़ रुपये का था जो वर्ष 2021-22 में 68,697 करोड़ रुपये का हो गया है। बिहार सरकार पर यह दायित्व इस अवधि में 14,293 करोड़ रुपये से बढ़ कर 21,817 करोड़ रुपये का हो गया है।
देश में कर्ज से ग्रस्त दस सबसे बड़े राज्य
आरबीआइ ने कुछ महीने पहले एक प्रपत्र जारी कर देश में पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने को लेकर हो रही राजनीति पर परोक्ष तौर पर अपनी चिंता व्यक्त की थी। इसमें कहा गया है कि देश में कर्ज से ग्रस्त दस सबसे बड़े राज्यों के कुल राजस्व का 12.5 फीसद पेंशन के मद में खर्च हो रहा है। इसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, केरल, पंजाब, पश्चिम बंगाल और राजस्थान शामिल हैं।
इसमें यह भी कहा गया था कि अभी जिन राज्यों में नई पेंशन स्कीम की जगह पुरानी पेंशन स्कीम को लागू कर रहे हैं वहां की सरकारों पर अभी इसका बोझ नहीं पड़ेगा बल्कि यह बोझ वर्ष 2034 के बाद पड़ना शुरु होगा। वजह यह है कि राज्यों में नई पेंशन स्कीम वर्ष 2004 में लागू किया गया था और इसे स्वीकार करने वाले कर्मचारी वर्ष 2034 या उसके बाद सेवानिवृत्त होंगे। इस प्रपत्र में यह भी कहा गया था कि नई पेंशन स्कीम को खत्म कर ओपीएस लागू करना भावी पीढि़यों पर बोझ डालने जैसा होगा।
राज्य—पेंशन खर्च—पेंशन खर्च- राज्यों का अपना राजस्व-------(2019-20)---(2021-22)---(2021-22)हिमाचल—5490- 7082-----9282राजस्थान—20761—25473---90050मध्य प्रदेश-12053---16913----64914छत्तीसगढ—6638---6609------25750कर्नाटक----18404---23413---111494तेलंगाना---11833---10831-----92910यूपी----49603-----68697-----186345बिहार---17110----21817-------35050नागालैंड---1811---2334—--1272मेघालय----1132---1304-------2579(वर्ष 2021-22 के दोनो आंकड़े बजटीय अनुमान, सारे आंकड़े करोड़ रुपये में)
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