Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सड़कों के घटिया निर्माण की क्या है वजह? DPR कंसल्टेंट ने बताई अंदर की बात; अफसर भी हैरान

    Updated: Tue, 15 Apr 2025 07:04 PM (IST)

    पिछले कुछ वर्षों में भारत में नई सड़कों का जाल बिछा है। हलांकि कई बार सड़क निर्माण की क्वालिटी को लेकर सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। इस बीच हाईवे अफसरों के सामने डीपीआर कंसल्टेंट ने कहा कि सड़क निर्माण की खराब गुणवत्ता का असली कारण सभी अफसर इंजीनियर और ठेकेदार जानते हैं लेकिन इस को दूर नहीं किया जा सकता है।

    Hero Image
    हाईवे अफसरों के सामने डीपीआर कंसलटेंट ने बताई घटिया निर्माण की वजह। (प्रतीकात्मत तस्वीर)

    मनीष तिवारी, नई दिल्ली। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय तथा एनएचएआई के अफसरों की मौजूदगी में एक डीपीआर कंसल्टेंट ने कहा कि सड़क निर्माण की खराब गुणवत्ता का असली कारण सभी (अफसर, इंजीनियर, ठेकेदार) जानते हैं, लेकिन इसे दूर नहीं किया जा रहा है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    तीन दशक से डीपीआर कंसल्टेंसी करने के साथ ही नोएडा स्थित हाईवे इंजीनियर एकेडमी में इंजीनियरों को पढ़ाने वाले एमएस रावत के तेवर इतने तीखे थे कि उन्हें अपना प्रजेंटेशन जल्दी खत्म करना पड़ा। उनका प्रजेंटेशन 14 स्लाइड का था, लेकिन वह दसवीं स्लाइड से आगे नहीं बढ़ पाए। हाईवे निर्माण में उत्कृष्टता प्रदर्शित करने वालों को सम्मानित करने के लिए आयोजित समारोह में चर्चा के दौरान रावत की बातों का समर्थन दूसरे डीपीआर विशेषज्ञों ने भी किया।

    दुनिया की सबसे खराब डीपीआर भारत में बनती है

    केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी पिछले कई वर्षों से यह कहते रहे हैं कि दुनिया में सबसे खराब क्वालिटी की डीपीआर भारत में बनती हैं और इसके कारण समय और लागत दोनों काफी बढ़ जाते हैं। रावत ने इसी का हवाला देते हुए कहा कि एक समूह के रूप में डीपीआर कंसल्टेंट पूरी तरह फेल करार दिए गए हैं। इसलिए उनकी रेटिंग की जरूरत ही नहीं है। मंत्री का कोई भी सेमिनार डीपीआर को दोष दिए बिना नहीं बीतता है। लेकिन इसकी कोई बात नहीं करता कि निर्धारित एक साल में बनने वाली डीपीआर पांच साल तक क्यों चलती रहती है। 2017 वाली डीपीआर में 2025 तक काम हो रहा है।

    भारतमाला परियोजना के डीपीआर में भी लगे सात साल

    उन्होंने केंद्र सरकार की सबसे महत्वपूर्ण भारतमाला परियोजना का उदाहरण देते हुए कहा कि इसमें भी सात साल से डीपीआर के मामले में कुछ नहीं बदला। जिस डीपीआर को सड़क निर्माण की रीढ़ की हड्डी और इंजीनियरों के लिए पवित्र पुस्तक माना जाता है, उस पर दस साल में खर्च 75 प्रतिशत कम हो गया है। डीपीआर को लेकर कामचलाऊ रवैये की यह वजह है। उस पर भी कंसल्टेंटों को पूरा पैसा नहीं मिलता है। 50 प्रतिशत राशि हासिल करने में पांच से छह साल तक लग जाते हैं।

    रावत ने कहा कि इन सब हालात से अगस्त, 2021 में नितिन गडकरी को अवगत करा दिया गया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ। एक अन्य डीपीआर कंसलटेंट रत्नाकर रेड्डी ने कहा कि डीपीआर में सबसे कम निविदा वाले नियम ने पूरी व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है। बेंगलुरु में एक ऐसे कंसल्टेंट ने अविश्वसनीय कीमत पर टेंडर ले लिया जिसे उस क्षेत्र की कोई जानकारी नहीं थी। प्रतिस्पर्धात्मक निविदा के नाम पर प्रोजेक्टों की डीपीआर को लेकर सबसे अधिक गड़बड़ी हो रही है और यह डीपीआर की खराब क्वालिटी से लेकर निर्माण के घटिया स्तर की सबसे बड़ी वजह है।

    यह भी पढ़ें: New Toll Policy: टोल पर आम आदमी को राहत, 3 हजार का वार्षिक पास; FASTag को लेकर होगी ये शर्त

    यह भी पढ़ें: New Toll Policy: पूरे नेटवर्क में लगेंगे नए कैमरे, सेंसर पकड़ेगी स्पीड; नई टोल पॉलिसी में क्या है खास?