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    इस बार समय से पहले दस्तक देगी ठंड, बार-बार क्यों बदल रहा मौसम का मिजाज? पढ़ें पूरी रिपोर्ट

    Updated: Wed, 03 Sep 2025 10:00 PM (IST)

    उत्तर भारत में मानसून के अंतिम दौर में भारी बारिश और बाढ़ के कारण मौसम में बदलाव दिख रहा है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि सितंबर में सामान्य से अधिक बारिश होने से तापमान तेजी से गिरेगा और ठंड जल्दी दस्तक दे सकती है। नमी से भरी जमीन के कारण मैदानी इलाकों में पाला और कोहरा भी समय से पहले पड़ सकता है।

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    समय से पहले देखने को मिलेगा सर्दी का सितम।

    अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। मानसून के आखिरी दौर में उत्तर भारत में हो रही भारी बारिश और बाढ़ का असर अब अगले मौसम पर भी दिख सकता है।

    मौसम विज्ञानियों का कहना है कि सितंबर में सामान्य से ज्यादा बारिश होने पर तापमान तेजी से गिरने लगता है। अगर मानसून की विदाई के तुरंत बाद पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हो गया तो उसकी नमी जल्दी बर्फ में बदल सकती है। यही वजह है कि इस बार ठंड अपने तय वक्त से पहले दस्तक दे सकती है।

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    असामान्य पैटर्न की ओर इशारा कर रहा मौसम

    अगस्त और सितंबर में पंजाब, हरियाणा और हिमाचल में औसत से सात से आठ गुना ज्यादा बारिश दर्ज हुई है। यह स्थिति मौसम के असामान्य पैटर्न की ओर इशारा कर रही है। नमी से भरी जमीन और लगातार बरसात की वजह से इस साल मैदानी इलाकों में पाला और कोहरा भी समय से पहले पड़ सकता है। इसका असर खेतों की फसलों से लेकर यातायात तक में महसूस होगा।

    सामान्य से ज्यादा बनी रहेगी नमी

    भारत मौसम विभाग (आइएमडी) के मुताबिक आमतौर पर मानसून की वापसी मध्य सितंबर से शुरू होकर महीने के अंत तक पूरी हो जाती है। लेकिन इस बार हालात बताते हैं कि उत्तर भारत के मैदानी हिस्सों में लगभग एक हफ्ता देर तक बारिश जारी रह सकती है। शिमला में सितंबर के शुरुआती दो दिनों में ही औसत से दो सौ प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की जा चुकी है। इसका मतलब है कि मिट्टी और हवा में नमी सामान्य से कहीं ज्यादा बनी रहेगी। जैसे ही तापमान गिरेगा, यह नमी पहाड़ों में बर्फबारी को जन्म दे सकती है और वह भी सामान्य तिथि से पहले।

    समय से पहले शुरू हो सकती बर्फबारी

    मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि 15 सितंबर के बाद भी पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता बनी रहेगी, जिससे पहाड़ों में बर्फबारी 10 से 15 दिन पहले प्रारंभ हो सकती है। यानी दिवाली से पहले ठंड का अहसास होने लगेगा। अगर अक्टूबर के पहले हफ़्ते में पश्चिमी विक्षोभ आ गया तो मैदानों का तापमान सामान्य से तीन से पांच डिग्री तक नीचे जा सकता है।

    सितंबर से नवंबर के बीच सक्रिय हो सकता है ला-नीना

    मौसम पर नजर रखने वाली निजी एजेंसी स्काइमेट के अनुसार इस बार असमान्य वर्षा के लिए महासागरीय स्थितियों को भी बड़ा कारक माना जा रहा है। प्रशांत महासागर क्षेत्र में सितंबर से नवंबर के बीच ला-नीना के सक्रिय होने की संभावना दिख रही है। भारत पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है। तापमान में गिरावट आ सकती है।

    बदल रहा सर्दी का कैलेंडर

    आइएमडी के आंकड़े भी यही संकेत देते हैं कि पहाड़ों में सर्दी का कैलेंडर बदल रहा है। 2021 में अक्टूबर के पहले हफ्ते में ही उत्तराखंड और कश्मीर की ऊंचाइयों पर बर्फ गिर चुकी थी। 2022 में तो 20 सितंबर को ही केदारनाथ और यमुनोत्री बर्फ की चादर से ढक गए थे। आंकड़े बताते हैं कि जब-जब सितंबर में सामान्य से अधिक बारिश हुई है, अक्टूबर की शुरुआत में ही ठंडक महसूस होने लगी है।

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