'कर्मचारी के पास नहीं प्रमोशन का अधिकार, लेकिन...' सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला
सर्वोच्च न्यायालय ने कर्माचिरियों के पदोन्नति से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए एक बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि किसी भी कर्मचारी के पास पदोन्नति का अधिकार नहीं होता है। हालांकि अगर वह योग्य है तो उसके प्रमोशन पर विचार किया जा सकता है।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि एक कर्मचारी के पास पदोन्नति का अधिकार नहीं होता है, लेकिन जब तक वह अयोग्य घोषित नहीं किया जाता पदोन्नति के लिए उस पर विचार किया जा सकता है।
जस्टिस सुधांशू धूलिया और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ तमिलनाडु के एक सिपाही की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जो सब-इंस्पेक्टर के पद पर पदोन्नति के लिए उसके नाम पर विचार न किए जाने से नाराज था।
'कर्मचारियों के पास नहीं होता पदोन्नति का अधिकार'
पीठ ने कहा कि यह आम बात है कि कर्मचारी के पास पदोन्नति का अधिकार नहीं है, लेकिन जब पदोन्नति के लिए चयन किया जा रहा हो और उसे अयोग्य न घोषित किया गया हो, तब उसके पास विचार के लिए नाम भेजे जाने का अधिकार है। उपरोक्त मामले में इस अधिकार का उल्लंघन अन्यायपूर्ण ढंग से किया गया।
अदालत ने देखा कि उसके खिलाफ एक मामले में विभागीय और आपराधिक कार्रवाई की गई थी। उसे गिरफ्तार करने के बाद बरी कर दिया गया और 2009 में सरकार ने उसके खिलाफ विभागीय कार्यवाही के दंड को खत्म कर दिया।
'योग्यता के आधार पर करें पदोन्नति पर विचार'
पीठ ने कहा कि 2019 में उसे विचारयोग्य सूची से अलग नहीं रखना चाहिए। उसकी पदोन्नति के लिए विचार किया जाना चाहिए, भले ही उसकी आयु ज्यादा होने के चलते उसे अयोग्य घोषित न किया जाए। अगर वह पात्र पाया गया तो 2019 से पदोन्नत किया जाए और इससे जुड़े सभी लाभ दिए जाएं क्योंकि उसके प्राधिकारी द्वारा उस सजा के आधार पर पदोन्नति पर विचार से इनकार कर दिया गया, जो पहले ही खारिज हो चुकी है। ऐसे में उसकी गलती नहीं है। अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अक्टूबर 2023 के मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
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