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यदि इस ईधन से चलाया जाए न्यूक्लियर पावर प्लांट तो भारत के पास होगी 600 साल की बिजली

वर्तमान में भारत के पास न्यूक्लियर प्लांट यूरेनियम आधारित हैं। यूरेनियम के लिए हम पूरी तरह विदेशों पर निर्भर हैं। हमारे पास विश्व का 30 फीसद थोरियम मौजूद है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Tue, 20 Aug 2019 08:53 PM (IST)Updated: Tue, 20 Aug 2019 09:28 PM (IST)
यदि इस ईधन से चलाया जाए न्यूक्लियर पावर प्लांट तो भारत के पास होगी 600 साल की बिजली
यदि इस ईधन से चलाया जाए न्यूक्लियर पावर प्लांट तो भारत के पास होगी 600 साल की बिजली

इंदौर, जेएनएन। भविष्य में हमारे न्यूक्लियर पावर प्लांट थोरियम से चलेंगे। ऐसा हुआ तो हमारे पास आने वाले 600 साल के लिए बिजली का इंतजाम हो जाएगा। विश्व का 30 फीसद थोरियम भारत में मौजूद है। हमारे प्रयास लगातार सफल हो रहे हैं। दो चरण हम पार कर चुके हैं। एक दशक से भी कम समय में बाकी के दो चरण भी पार कर लेंगे। इसके बाद बिजली को लेकर भारत पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो जाएगा।

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ये बातें पोखरण परमाणु परीक्षण में अहम भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक और भाभा परमाणु अनुसंधान के पूर्व निदेशक पद्मश्री चंद्रकांत पिथावा ने कहीं। वह मंगलवार को मध्य प्रदेश के इंदौर में श्री वैष्णव विद्यापीठ विश्वविद्यालय में आयोजित विक्रम साराभाई मेमोरियल सेंटेनरी ओरेशन कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे।

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पिथावा ने कहा कि वर्तमान में हमारे न्यूक्लियर प्लांट यूरेनियम आधारित हैं। यूरेनियम के लिए हम पूरी तरह विदेशों पर निर्भर हैं। हमारे पास विश्व का 30 फीसद थोरियम मौजूद है, लेकिन दिक्कत यह है कि अब तक न्यूक्लियर पावर प्लांट में इसका इस्तेमाल नहीं होता है। हम न्यूक्लियर पावर प्लांट में थोरियम के इस्तेमाल का प्रयास कर रहे हैं। चार चरण में से दो चरण हम सफलतापूर्वक पार कर चुके हैं।

13 मई को मनाया था जश्न
पिथावा पोखरण परमाणु परीक्षण की कोर टीम के सदस्य रहे हैं। उन्होंने बताया कि भले ही परीक्षण 1998 में किया गया, लेकिन तैयारियां 1995 से ही शुरू हो गई थीं। पोखरण में सेना का बेस कैंप था। कोर टीम का हर सदस्य सेना की वर्दी में रहता था। जिस जगह तैयारियां चल रही थीं, वह जंगल में पांच किमी अंदर था। वहां तक सिर्फ कोर टीम के सदस्यों को जाने की अनुमति होती थी।

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टीम के हर सदस्य को असली नाम की जगह दूसरे नाम से पुकारा जाता था। पिथावा को कैप्टन भीष्म नाम से पहचाना जाता था। इसी नाम से उन्होंने यात्राएं भी की थीं। 13 मई को परीक्षण पूरा होने के बाद देर रात पूरी टीम ने प्रोफेसर एपीजे अब्दुल कलाम के साथ विजयी जश्न मनाया था।


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