लावारिस शवों की पहचान होगी आसान, बन रहा डीएनए प्रोफाइलिंग डाटाबेस
एम्स लावारिस शवों का डीएनए प्रोफाइलिंग डाटाबेस बना रहा है। इसकी मदद से खराब व क्षत-विक्षत हो चुके शवों की पहचान भी आसान हो जाएगी। इस व्यवस्था को देश भ ...और पढ़ें

नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। देश में हर साल तीन लाख लोग लापता होते हैं, जिसमें से हजारों लोगों की मौत हो जाती है और स्वजन उनकी तलाश में भटकते रहते हैं। इसके मद्देनजर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) का फोरेंसिक विभाग देश में पहली बार लावारिस शवों की डीएनए प्रोफाइलिंग कर डाटाबेस तैयार कर रहा है। पायलट परियोजना के तौर पर एम्स के डाक्टरों ने दक्षिण व दक्षिण पूर्वी दिल्ली के 412 लावारिस शवों की डीएनए प्रोफाइलिंग कर इसे एक खास आनलाइन पोर्टल पर दर्ज कर दिया है। इसकी मदद से खराब व क्षत-विक्षत हो चुके शवों की पहचान भी आसान हो जाएगी। इस व्यवस्था को देश भर में लागू करने की तैयारी चल रही है।
एम्स ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आइसीएमआर) की मदद से यह परियोजना शुरू की थी। इसके तहत एक पोर्टल विकसित किया गया है। इस परियोजना के दूसरे चरण में आइसीएमआर से मंजूरी मिलने पर देश भर के मोर्चरी को इस पोर्टल से जोड़ा जाएगा। ताकि देश भर के सभी मोर्चरी में पहुंचने वाले लावारिस शवों के पोस्टमार्टम के साथ डीएनए प्रोफाइलिंग का डाटाबेस तैयार किया जा सके। पोर्टल पर मृतक का फोटो, कपड़े, शरीर पर मौजूद निशान, टैटू इत्यादि की जानकारी मौजूद रहेगी। जिसे देखकर शव पर दावा करने वाले का भी डीएनए प्रोफाइ¨लग कर मृतक के डीएनए से मिलान कराकर शव की पहचान की जा सकती है।
कभी भी हो सकती है शव की पहचान
इस परियोजना के प्रमुख इन्वेस्टिगेटर डा. चित्तरंजन बेहेरा ने कहा कि हर साल देश में तीन लाख लोगों के गुमशुदा होने की रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है और करीब 40 हजार लावारिस शव बरामद होते हैं। पुलिस सामान्य तौर पर आपराधिक मामलों की जांच करती है। अन्यथा लोग जीवनभर अपने स्वजन की तलाश करते रहते हैं। यह संवेदना व मानवीय मूल्यों से जुड़ा विषय है। जेनेटिक डेटाबेस मौजूद होने पर शव की कभी भी पहचान हो सकती है।
मौजूदा समय में पहचान की पुख्ता व्यवस्था नहीं
मौजूदा प्रविधान के अनुसार किसी सार्वजनिक स्थान पर किसी की मौत होने पर यदि 48 घंटे के अंदर कोई व्यक्ति शव पर दावा नहीं करता है तो उसे लावारिस घोषित कर दिया जाता है। 72 घंटे में भी यदि कोई परिजन शव लेने नहीं पहुंचे तो पुलिस के पास उसका अंतिम संस्कार कराने का अधिकार होता है। पुलिस अखबार में विज्ञापन देकर व अन्य माध्यमों से शवों की पहचान कराने की कोशिश करती है। फिर भी 80 से 90 प्रतिशत लावारिस शवों पर दावा करने कोई नहीं आता। कई लावारिस शव काफी गल चुके होते हैं। बम धमाकों व कई तरह के हादसों में मृतकों के शव क्षत-विक्षत हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में उसकी पहचान आसान नहीं होती। इस वजह से कुछ आपराधिक मामले भी अनसुलझे रह जाते हैं।
पोर्टल की मदद से अभी तक दो शवों की पहचान
आइसीएमआर की मदद से एम्स के फोरेंसिक विभाग द्वारा तैयार पोर्टल की मदद से अभी तक दो शवों की पहचान की गई है। डा. चित्तरंजन बेहरा ने कहा कि अभी लोगों को इसके बारे में जानकारी नहीं है। इसे जारी करने के बाद मीडिया व इंटरनेट मीडिया के माध्यम से लोगों के बीच प्रचारित किया जाएगा। एम्स द्वारा तैयार दिशा-निर्देश के अनुसार लोग शवों की पहचान के लिए दावा कर सकते हैं। दावा करने वाले व्यक्ति के ब्लड या लार का सैंपल लेकर डीएनए प्रोफाइलिंग की जाएगी। जिसका मिलान मृतक के डीएनए से किया जाएगा।

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