Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'दोबारा पारित बिलों को राष्ट्रपति को कैसे भेज सकते हैं', सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु राज्यपाल की चुप्पी पर उठाया सवाल

    राज्यपाल के खिलाफ तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सभी पक्षों की बहस के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल पर बिलों को रोकने का आरोप लगाया है। याचिका में कहा गया कि राज्यपाल ने अभी तक 12 विधेयकों को मंजूरी नहीं दी है। कुछ विधेयक 2020 से लंबित हैं।

    By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Tue, 11 Feb 2025 12:10 AM (IST)
    Hero Image
    बहस पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबे समय तक दबाए रखने और लंबी चुप्पी साधने पर सोमवार को सवाल उठाया। कोर्ट ने राज्यपाल की ओर से पक्ष रख रहे अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से कहा कि आप इतने लंबे समय तक चुप्पी क्यों साधे रहे, अगर आपको विधेयकों पर कोई आपत्ति थी तो राज्य सरकार को क्यों नहीं बताया? हो सकता है कि वह आपसे सहमत होती।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    राज्यपाल पर विधेयकों को दबाए रखने का आरोप

    कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल दोबारा पारित बिलों को राष्ट्रपति को कैसे भेज सकते हैं? सोमवार को भी कोर्ट ने दोनों पक्षों से कई सवाल पूछे। सभी पक्षों की बहस पूरी होने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। जस्टिस जेबी पार्डीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले पर सुनवाई की। तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर राज्यपाल आरएन रवि पर लंबे समय तक विधेयकों को दबाए रखने का आरोप लगाया है।

    12 विधेयकों को नहीं दी मंजूरी

    याचिका के मुताबिक कुछ विधेयक 2020 से लंबित हैं। तमिलनाडु सरकार के मुताबिक राज्यपाल ने 12 विधेयकों पर पहले लंबे समय तक मंजूरी नहीं दी और उन्हें रोके रखा। उसके बाद विधानसभा ने विशेष सत्र बुलाकर विधेयकों को दोबारा पारित किया। फिर राज्यपाल ने 10 विधेयक राष्ट्रपति को विचार के लिए भेज दिए।

    अटार्नी जनरल ने कहा- विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजना जायज

    राज्यपाल की ओर से अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने पक्ष रखा और संविधान में प्राप्त राज्यपाल की शक्तियों का जिक्र करते हुए राज्यपाल के विधेयकों पर मंजूरी रोके रखने और बाद में उन्हें राष्ट्रपति को भेजने को जायज ठहराया। उन्होंने कहा कि राज्यपाल को ऐसा करने का अधिकार है।

    राज्य सरकार को क्यों नहीं बताई आपत्ति?

    पीठ ने वेंकटरमणी से कई सवाल पूछे। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल ने जब विधेयकों पर मंजूरी रोकी तो ऐसा करने के पीछे निश्चित रूप से उनके मन में कुछ रहा होगा तब फिर उन्होंने सरकार को क्यों नहीं बताया कि उन्हें किस चीज पर आपत्ति है। वो एक-दो साल तक चुप्पी साधे रहे और मंजूरी रोके रहे। उसके बाद उन्होंने विधेयकों को राष्ट्रपति को भेज दिया। दोबारा पारित बिलों को वह राष्ट्रपति को कैसे भेज सकते हैं।

    संविधान में मनाही नहीं: अटार्नी जनरल

    वेंकटरमणी ने कहा कि संविधान में इसकी मनाही नहीं है। राज्य सरकार को बताने पर अटार्नी जनरल ने कहा कि राज्यपाल ने पहले राज्य सरकार को बताया था कि उन्हें विधेयक में राज्य विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति के लिए चयन समिति के गठन को लेकर आपत्ति है। राज्यपाल जो कि राज्य में विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होते हैं, चाहते थे कि उस समिति में यूजीसी चेयरमैन द्वारा नामित व्यक्ति शामिल किया जाए।

    क्या आपत्ति है... विधानसभा को मालूम होना चाहिए

    वेंकटरमणी ने कहा कि इसके बाद राज्य विधानसभा ने विधेयक पारित किया जिसमें राज्यपाल जो विश्वविद्यालय का पदेन कुलाधिपति होता है, उसे कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया से हटा दिया। इस पर पीठ ने कहा कि तब आप विधेयक पर चुप क्यों रहे अगर आपको विधेयक केंद्रीय कानून के विपरीत लग रहा था और आपत्ति थी तो राज्य सरकार को क्यों नहीं बताया।

    विधानसभा को मालूम होना चाहिए कि उन्हें क्या आपत्ति है। राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी और अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल बताएं कि क्या कारण है जिसकी वजह से उन्होंने विधेयकों पर मंजूरी रोकी है। दोनों पक्षों की बहस पूरी होने पर पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट कई कानूनी सवालों पर भी विचार करेगा जिसमें राज्यपाल के मंजूरी रोके रखने का विशेषाधिकार भी शामिल है।

    यह भी पढ़ें: बेंगलुरु में एयरो इंडिया शुरू, राजनाथ सिंह बोले- मजबूत होकर ही शांति हासिल की जा सकती

    यह भी पढ़ें: दिल्ली चुनाव के बाद अचानक अमित शाह से क्यों मिले उमर अब्दुल्ला? विपक्षी गठबंधन पर उठा चुके सवाल