'सरकारी क्वार्टर परिवार के लिए, पालतू जानवरों के लिए नहीं', हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि सरकारी क्वार्टर परिवार के रहने के लिए हैं पालतू जानवरों के लिए नहीं। न्यायमूर्ति विवेक जैन ने व्हीकल फैक्ट्री के एक कर्मचारी की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की जिसने पड़ोसियों की शिकायत के बाद क्वार्टर खाली करने के आदेश को चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को अन्य निवासियों की सुविधा के लिए नियमों का पालन करना होगा।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक जैन की एकलपीठ ने अपनी टिप्पणी में कहा कि सरकारी क्वार्टर परिवार के रहने के लिए हैं, न कि पालतू जानवरों के लिए। परिसर में रहने वाले को अन्य निवासियों की सुविधा के लिए निर्धारित अनुशासन का पालन करना जरूरी है। पड़ोसियों की शिकायत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यदि याचिकाकर्ता श्वान पालना चाहते हैं, तो वह किराए का मकान लेकर अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं।
ऐसा भी नहीं है कि उसे इतने बड़े शहर में किराए पर मकान नहीं मिल रहा है। इस मत के साथ कोर्ट ने वह याचिका निरस्त कर दी, जो व्हीकल फैक्ट्री के आवासीय क्वार्टर को खाली कराने के आदेश के विरुद्ध दायर की गई थी।
बता दें, व्हीकल फैक्ट्री जबलपुर (वीएफजे) भारतीय सेना के लिए परिवहन वाहनों का निर्माण करने वाली आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) के तहत एक उत्पादन इकाई है।
याचिकाकर्ता की दलील
व्हीकल फैक्ट्री के जूनियर वर्क्स मैनेजर सैफ उल हक सिद्दीकी की ओर से यह याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया कि व्हीकल फैक्ट्री के सेक्टर-टू में उन्हें सरकारी आवास आवंटित किया गया था, लेकिन पड़ोसियों की शिकायत पर फैक्टरी प्रशासन ने क्वार्टर खाली करने के आदेश इसलिए दिए थे कि उन्होंने अपने घर में कई श्वानों को पाल रखा है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया गया कि पशु क्रूरता अधिनियम के तहत पालतू पशुओं की देखरेख करना उसका दायित्व है।
कोर्ट का फैसला
सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा पाले गए श्वानों से पड़ोसियों को परेशानी हो रही थी। ऐसे में फैक्ट्री प्रशासन द्वारा क्वार्टर से बेदखली का आदेश सही है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि याचिकाकर्ता आवास का मालिक नहीं है, बल्कि उसे क्वार्टर परिवार के साथ रहने के लिए आवंटित किया गया है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।