Article 370 Hearing: अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण एकीकरण की प्रक्रिया का तार्किक कदम!
अटार्नी जनरल ने कहा कि संविधान सभा की सिफारिश राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं है वह सिर्फ सिफारिश है। लेकिन पीठ ने कहा कि संवैधानिक प्राविधान में उस सिफारिश का अलग मतलब निकलता है इस पर सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राष्ट्रपति का भारत के संविधान से बाहर की संस्था से बंधा होना शायद हमारे संविधान की सही व्याख्या नहीं हो सकती।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त किये जाने पर चल रही सुनवाई के दौरान मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आयी पूर्ण स्वायत्तता और पांच अगस्त 2019 को लाए गए पूर्ण एकीकरण के बीच की व्यापक खाई, इस बीच 69 वर्षों में जो कुछ हुआ उससे काफी हद तक पट गई थी। उस अर्थ में यह पूर्ण स्वायत्तता से पूर्ण एकीकरण की ओर पूर्ण स्थानांतरण नहीं था।
ये प्रत्यक्ष है कि 1950 से 2019 के बीच 69 वर्षों में काफी हद तक एकीकरण पहले ही हो चुका था और इसलिए 2019 में जो किया गया क्या वह वास्तव में उस एकीकरण को हासिल करने के लिए एक तार्किक कदम था। मामले की सुनवाई कर रही पांच सदस्यीय संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने ये टिप्पणी सुनवाई के बारहवें दिन सबसे अंत में सुनवाई खत्म होने के बाद पीठ के उठते समय यह कहते हुए की कि बस एक आखिरी शब्द।
लोकतंत्र की बहाली महत्वपूर्ण
जब सालिसिटर जनरल तुषार मेहता जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त करने की अपनाई गई संवैधानिक और कानूनी प्रक्रिया कोर्ट को बता रहे थे और जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू कश्मीर बनाए जाने का हवाला दे रहे थे तभी प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि लोकतंत्र की बहाली महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि आप परिस्थितियों का हवाला देकर कह रहे हैं कि इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया और संसद को ऐसा करने का अधिकार है। लेकिन जैसा कि आप बता रहे हैं कि पहले उत्तर पूर्वी राज्य पहले केंद्र शासित प्रदेश थे बाद में राज्य बनाए गए। केंद्र शासित प्रदेश स्थाई नहीं रह सकते जब प्रगति हो जाती है तो उन्हें स्टेट बना दिया जाता है।
पीठ ने जम्मू कश्मीर के बारे में निर्देश लेकर रोडमैप बताने को कहा। हालांकि प्रधान न्यायाधीश ने राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं से सहमति जताई और यह भी कहा कि राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोपरि है क्योंकि कोई केंद्र शासित प्रदेश रहेगा या राज्य रहेगा ये सब तभी रहेगा जब राष्ट्र रहेगा। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आप बिना किसी बाध्यता के क्या ऊपर से निर्देश लेकर कोर्ट को बता सकते हैं कि इसकी क्या समय सीमा है क्या रोडमैप है क्योंकि लोकतंत्र की बहाली भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
हालात सामान्य होते ही राज्य का दर्जा होगा बहाल
सालिसिटर जनरल तुषार मेंहता ने भोजनावकाश के बाद हुई सुनवाई में कोर्ट को बताया कि उन्होंने निर्देश लिए हैं और वह बताना चाहते हैं कि जम्मू कश्मीर का केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा स्थाई नहीं है जैसे ही हालात सामान्य होंगे उसे राज्य बना दिया जाएगा। मेहता ने कहा कि इस बारे में वे विस्तार से बयान गुरुवार को कोर्ट में रखेंगे लेकिन उन्होंने इस संबंध में गृहमंत्री द्वारा पहले ही संसद में की जा चुकी घोषणा का हवाला भी दिया। कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा कि कश्मीर में चुनाव कब कराए जाएंगे। सरकार ने लद्दाख में हिल काउंसिल के चुनाव के बारे में तो बताया लेकिन जम्मू कश्मीर के बारे में विस्तार से 31 सितंबर को जानकारी देने की बात कही।
जम्मू कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिश, राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं
अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी जब अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया को संवैधानिक और सही ठहरा रहे थे तभी पीठ ने सवाल किया कि संवैधानिक प्राविधान के मुताबिक जम्मू कश्मीर की संविधानसभा जिसे आप लोग कह रहे हैं कि संविधान सभा न होने पर राज्य की विधानसभा की पूर्व सिफारिश जरूरी बताई गई है।
अटार्नी जनरल ने कहा कि संविधान सभा की सिफारिश राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं है वह सिर्फ सिफारिश है। लेकिन पीठ ने कहा कि संवैधानिक प्राविधान में उस सिफारिश का अलग मतलब निकलता है इस पर सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राष्ट्रपति का भारत के संविधान से बाहर की संस्था से बंधा होना शायद हमारे संविधान की सही व्याख्या नहीं हो सकती। जम्मू कश्मीर का संविधान हमारे संविधान से परे और बाहर है।
अनुच्छेद 370 बनाते समय संवैधानिक अखंडता ही एकमात्र मंत्र
अटार्नी जनरल वेंकटरमणी ने कहा कि अनुच्छेद 370 बनाते समय संवैधानिक अखंडता ही एकमात्र मंत्र था, बाकी सबकुछ इसके इर्द गिर्द घूमता है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि आप सही कह रहे हैं कि यह संवैधानिक एकीकरण की मदद के लिए था। नि:संदेह एक क्रमिक एकीकरण था। लेकिन इसे देखने के दो तरीके हैं। यदि 370 (3) का प्राविधान लागू नहीं हो सकता है तो क्या इसका मतलब यह है कि 370 के तहत मूल शक्ति समाप्त हो गई है या खत्म हो गई है।
अटार्नी जनरल ने कहा कि उसका उत्तर न में है। चीफ जस्टिस ने फिर कहा कि अगर यह शक्ति समाप्त नहीं हुई है तो क्या एकतरफा शक्ति है जिसका प्रयोग राष्ट्रपति द्वारा किया जा सकता है। इस मामले में अनुच्छेद 367 का पालन किया गया क्योंकि संविधान सभा नहीं थी और विधानसभा भी नहीं थी, लेकिन इस प्रक्रिया में एक कमी है, जो कि अनुच्छेद 370 (3) में निर्धारित है।
कोर्ट में शुक्रवार को होगी आगे की बहस
पीठ ने सरकार से कहा कि आपका कहना है कि वह भूमिका केवल अनुशंसासनात्मक है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इसे खत्म किया जा सकता है। इससे पहले सालिसिटर जनरल ने यह भी कहा था कि अगर जम्मू कश्मीर की संविधान सभा ने खत्म होने से पहले इस बारे में कोई संस्तुति नहीं की थी तो इसका मतलब है कि उसने ये राष्ट्रपति के विवेक पर छोड़ा था।
बहस के दौरान सालिसिटर जनरल की ओर से जम्मू कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्र होने की दलील को कोर्ट ने अन्य सीमावर्ती राज्यों के उदाहरण पेश किये तो सालिसिटर जनरल ने कहा कि जम्मू कश्मीर की विशेष स्थिति है और उसके एक भाग पर पाकिस्तान का अनधिकृत कब्जा है। शुक्रवार को आगे बहस होगी।
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