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    उमर खालिद की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज, दिल्ली दंगा भड़काने के आरोप में जेल में हैं बंद

    By Agency Edited By: Jeet Kumar
    Updated: Fri, 12 Sep 2025 06:54 AM (IST)

    दिल्ली दंगों में आरोपित उमर खालिद शरजील इमाम और गुलफिशा फातिमा की जमानत याचिकाओं पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ आरोपितों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर सकती है जिन्होंने दो सितंबर के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। इससे पहल हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी।

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    उमर खालिद की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज (सांकेतिक तस्वीर)

     पीटीआई, नई दिल्ली। दिल्ली दंगों में आरोपित उमर खालिद, शरजील इमाम और गुलफिशा फातिमा की जमानत याचिकाओं पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।

    दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती

    जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ आरोपितों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर सकती है, जिन्होंने दो सितंबर के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है।

    हाई कोर्ट ने इस मामले में खालिद और शरजील इमाम समेत नौ लोगों को जमानत देने से इनकार कर दिया और कहा कि नागरिकों द्वारा विरोध प्रदर्शनों की आड़ में षड्यंत्रकारी हिंसा की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    इन लोगों की जमानत याचिका खारिज की गई

    जिन लोगों की जमानत याचिका खारिज की गई उनमें खालिद, इमाम, फातिमा, मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, अतहर खान, मीरान हैदर, अब्दुल खालिद सैफ़ी और शादाब अहमद शामिल हैं। एक अन्य आरोपित तस्लीम अहमद की जमानत याचिका दो सितंबर को हाई कोर्ट की एक अलग पीठ ने खारिज कर दी थी।

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    एडीजे की नियुक्ति मामले में सुप्रीम कोर्ट आज करेगा सुनवाई

    एक पांच सदस्यीय संविधान पीठ शुक्रवार को इस मामले पर सुनवाई करेगी कि क्या कोई न्यायिक अधिकारी जोकि नियुक्ति से पहले बार में सात वर्ष पूरे कर चुका हैं, रिक्त पद के मद्देनजर अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (एडीजे) बनने का हकदार है।

    चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस अरविंद कुमार, जस्टिस एससी शर्मा और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ इस मामले को देखेगी। 12 अगस्त को सीजेआइ गवई, जस्टिस विनोद चंद्रन और जस्टिस अंजारिया की पीठ ने यह स्पष्ट किया था कि इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 233(2) की व्याख्या से संबंधित महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न शामिल हैं। अनुच्छेद 233 जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है।

    पीठ ने कहा था- ''हम उपरोक्त मुद्दों को इस न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष विचारार्थ भेजते हैं।''

    मामला केरल हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील से जुड़ा है, जिसमें एक जिला न्यायाधीश की नियुक्ति को इस आधार पर रद कर दिया गया था कि नियुक्ति के समय वह अधिवक्ता नहीं थे और न्यायिक सेवा में थे। याचिकाकर्ता एक वकील हैं, जिन्होंने जिला न्यायाधीश के पद के लिए आवेदन करते समय बार में सात वर्ष का अनुभव प्राप्त किया था।

    हाई कोर्टों में लंबित केसों की संख्या बहुत ज्यादा, जल्द सुनाई की संभावना भी नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने छह दोषियों की तीन साल की सजा को यह देखते हुए निलंबित कर दिया कि हाई कोर्ट में लंबित आपराधिक अपीलों की संख्या काफी अधिक है तथा उन पर सुनवाई जल्द होने की संभावना नहीं है। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस विजय बिश्नोई की पीठ ने कहा कि इन छह दोषियों ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में अपनी सजा के खिलाफ अपील दायर की थी, जो अभी लंबित है।

    पीठ ने अपने 10 सितंबर के आदेश में कहा- ''अपील का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है। अपीलकर्ता हिरासत में हैं। प्रत्येक हाई कोर्ट में आपराधिक अपीलों की संख्या काफी अधिक है। अपील की सुनवाई निकट भविष्य में होती नहीं दिखती।''

    सजा पर विचार करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि यदि अपीलकर्ताओं को अपील की सुनवाई के बिना ऐसी सजा काटने के लिए मजबूर किया गया तो यह घोर अन्याय हो सकता है। शायद हाई कोर्ट ने इस पहलू पर विचार नहीं किया।

    इसलिए, पीठ ने सजा निलंबित करने और अपीलकर्ताओं को हिरासत से रिहा करने का निर्णय लिया। पीठ का आदेश हाई कोर्ट के मार्च 2025 के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर आया, जिसमें उनकी सजा को निलंबित करने से इन्कार कर दिया गया था।

    इस मामले में अपीलकर्ताओं पर जुर्माना भी लगाया गया था। छह में से दो दोषियों को बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम (पाक्सो) के तहत भी दोषी ठहराया गया था। पीठ ने हाई कोर्ट को अपील को शीघ्रता से निपटाने का निर्देश दिया।

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