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    शराब पीने वाले ध्यान दें! अगर की यह गलती, तो नहीं मिलेगा मेडिकल इंश्योरेंस का क्लेम

    Updated: Thu, 27 Mar 2025 11:24 PM (IST)

    एलआईसी ने जीवन आरोग्य योजना के तहत स्वास्थ्य बीमा लेने वाले पॉलिसीधारक द्वारा शराब पीने की आदत छुपाए जाने और इस संबंध में गलत जानकारी दिए जाने के आधार पर दावा खारिज कर दिया था। इस संबंध में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एलआईसी के तर्क को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि मृतक की शराब पीने की आदत लंबे समय से चली आ रही थी।

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    राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का आदेश खारिज (फोटो: कैनवा)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कोई स्वास्थ्य बीमा लेता है और उसमें साफ-साफ शर्त में पूछा गया होता है कि क्या बीमा लेने वाला व्यक्ति शराब, सिगरेट, बीड़ी या किसी भी रूप में तम्बाकू का सेवन करता है और अगर बीमा लेने वाला व्यक्ति शराब पीने की आदत छुपाते हुए उस सवाल का नहीं में जवाब देता है तो बीमा कर्ता कंपनी बाद में उसका स्वास्थ्य बीमा का दावा खारिज कर सकती है।

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    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिए अपने एक फैसले में कहा है कि शराब पीने की आदत छिपाना और शराब पीने के कारण हुई बीमारी पर अस्पताल में भर्ती होने वाले का स्वास्थ्य बीमा में चिकित्सा खर्च का दावा खारिज किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) का आदेश खारिज कर दिया है, जिसमें एनसीडीआरसी ने उपभोक्ता फोरम के एलआईसी को स्वास्थ्य बीमा मुआवजा देने के आदेश को सही ठहराया था।

    एलआईसी ने खारिज किया था दावा

    सुप्रीम कोर्ट ने एलआईसी के दावा खारिज करने के निर्णय को उचित माना है। एलआईसी ने जीवन आरोग्य योजना के तहत स्वास्थ्य बीमा लेने वाले पॉलिसीधारक द्वारा शराब पीने की आदत छुपाए जाने और इस संबंध में गलत जानकारी दिए जाने के आधार पर दावा खारिज कर दिया था।

    यह फैसला जस्टिस विक्रमनाथ और संदीप मेहता की खंडपीठ ने गत तीन मार्च को एनसीडीआरसी के आदेश के खिलाफ दाखिल एलआईसी की अपील स्वीकार करते हुए सुनाया। शीर्ष अदालत ने एनसीडीआरसी का 12 मार्च 2020 का आदेश खारिज कर दिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि मामले के तथ्यों को देखते हुए बीमाकर्ता की मृत्यु के बाद जो पैसा उसकी पत्नी को दिया जा चुका है, उसकी रिकवरी नहीं की जाएगी।

    जीवन आरोग्य पॉलिसी ली थी

    • इस मामले में दावा दाखिल करने वाली पत्नी के पति महिपाल ने 2013 में एलआईसी की जीवन आरोग्य पॉलिसी ली थी। इस पॉलिसी में अस्पताल में भर्ती होने पर नकद लाभ दिया जाता था। इसके तहत बीमाधारक के गैर आईसीयू अस्पताल में भर्ती होने पर एक हजार रुपये और आईसीयू अस्पताल में भर्ती होने पर 2000 रुपये रोजाना भुगतान का प्रविधान था।
    • पॉलिसी लेने के लगभग एक साल बाद पॉलिसीधारक के पेट में तेज दर्द होने पर उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। एक महीने अस्पताल में भर्ती रहने के बाद उसकी मृत्यु हो गई। पॉलिसीधारक की मृत्यु होने के बाद उसकी पत्नी ने एलआईसी में दावा दाखिल किया, लेकिन एलआईसी ने दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पॉलिसीधारक ने शराब पीने की पुरानी लत के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी बीमा लेते समय छिपाई थी।
    • एलआईसी ने जीवन आरोग्य योजना में लाभ देने से मना करने के खंड सात (11) का हवाला दिया, जिसमें साफ तौर पर स्वपीड़ित चोटों या आत्महत्या का प्रयास अथवा किसी दवा या शराब के उपयोग या दुरुपयोग से उत्पन्न जटिलताओं को कवरेज से बाहर रखा गया था। एलआईसी द्वारा दावा खारिज करने के बाद दावेदार ने उपभोक्ता फोरम में याचिका दाखिल की जिस पर उपभोक्ता फोरम ने एलआईसी को चिकित्सा पर आए खर्च की प्रतिपूर्ति करने का आदेश दिया।

    शराब के सेवन करने का रहा था इतिहास

    सुप्रीम कोर्ट ने फोरम के आदेश को सही ठहराने वाले एनसीडीआरसी के फैसले को गलत बताते हुए अपने निर्णय में कहा कि मेडिकल रिकॉर्ड में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि रोगी का लगातार शराब का सेवन करने का इतिहास रहा है। कोर्ट ने कहा कि पॉलिसी के प्रस्ताव फॉर्म में विशेष रूप से एक प्रश्न था कि क्या बीमित व्यक्ति शराब, सिगरेट, बीड़ी या किसी भी रूप में तंबाकू का सेवन करता है। पॉलिसीधारक द्वारा इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया गया।

    कोर्ट ने कहा कि मृतक की शराब पीने की आदत लंबे समय से चली आ रही थी जिसे उसने पॉलिसी लेते वक्त जानबूझकर छिपाया था। तथ्यों को छिपाने के कारण एलआईसी द्वारा दावे को अस्वीकार करना उचित था।

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