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    ट्रंप ने H1 B वीजा पर फैसला लेकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी तो नहीं मार ली? पढ़ें कितना बढ़ जाएगा US कंपनियों पर बोझ

    Updated: Sat, 20 Sep 2025 06:14 PM (IST)

    डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा कार्यक्रम में बदलाव करते हुए कंपनियों को प्रत्येक एच-1बी आवेदन के लिए 100000 डॉलर का अतिरिक्त भुगतान करने की घोषणा की है। यह शुल्क अमेरिकी सरकार वसूलेगी। यह फैसला सबसे ज्यादा भारत को प्रभावित करेगा जिससे भारतीय सॉफ्टवेयर निर्यात पर असर पड़ सकता है। इस फैसले से आईटी सेक्टर में रोजगार की तलाश करने वाले भारतीय पेशेवरों के विकल्पों को सीमित कर सकता है।

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    डोनाल्ड ट्रंप के इस फैसले से भारत में मची खलबली।

    जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। अमेरिका और भारत के बीच शुल्कों को लेकर चल रही तनातनी के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा कार्यक्रम को बदलने को लेकर नई घोषणा कर दी है। इसके मुताबिक कंपनियों को प्रत्येक एच-1बी आवेदन के लिए 1,00,000 डॉलर (करीब 86 लाख रुपये) का अतिरिक्त भुगतान करना होगा।

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    यह शुल्क अमेरिकी सरकार वसूलेगी जो वीजा को मंजूरी देने के लिए अनिवार्य होगा। यह फीस वर्तमान में एच-1बी फीस (460 डॉलर से 2,805 डॉलर तक) से 35 गुणा से भी ज्यादा है। इस बारे में राष्ट्रपति ट्रंप की तरफ से शुक्रवार को 'नॉन-इमिग्रेंट वर्कर्स के प्रवेश पर प्रतिबंध' नामक आदेश जारी किया जो 21 सितंबर सुबह 12:01 बजे (अमेरिकी समय) पर लागू होगा। इसके बाद एच-1बी वीजा रखने वाले पेशेवर अगर अमेरिका से बाहर हैं तो उन्हें इस फीस का भुगतान के बाद ही प्रवेश की इजाजत दी जाएगी।

    ट्रंप के इस फैसले पर भारत पर पड़ेगा बड़ा प्रभाव

    अमेरिका में पहले से मौजूद श्रमिकों पर तत्काल असर नहीं पड़ेगा, लेकिन नवीनीकरण के लिए भी यही शुल्क लागू होगा। ट्रंप प्रशासन का यह फैसला सबसे ज्यादा भारत को प्रभावित करने जा रहा है। ट्रंप प्रशासन की तरफ से 50 फीसद का शुल्क लगाने से भारतीय निर्यात के पहले से ही प्रभावित होने के संकेत हैं, ऐसे में एच-1बी वीजा को लेकर लागू नया नियम तकरीबन 200 अरब डॉलर के भारतीय सॉफ्टवेयर निर्यात पर भी उल्टा असर डाल सकता है।

    इन कंपनियों के लिए पैदा हुई अनिश्चतता

    एच-1बी वीजा ले कर अमेरिकी कंपनियों (मेटा, गूगल, अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट आदि) में सीधे तौर पर काम करने वाले भारतीयों या भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों (इंफोसिस, एचसीएल, विप्रो आदि) में कार्यरत भारतीय आईटी इंजीनियरों (संख्या करीब 50 हजार) के लिए भी अनिश्चतता पैदा हो गई है। इसके अलावा दर्जनों छोटी-बड़ी आईटी कंपनियां हैं जो अमेरिकी क्लाइंट को अपनी सेवाएं देती हैं, उन पर भी परोक्ष तौर पर असर होगा। यह आईटी सेक्टर में रोजगार की तलाश करने वाले भारतीय पेशेवरों के विकल्पों को सीमित कर सकता है।

    वैसे नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत और इंफोसिस के निदेशक बोर्ड के सदस्य मोहनदास पई जैसे कई विशेषज्ञों का कहना है कि अब बेहद प्रतिभाशाली भारतीयों को स्वदेश लौटना पड़ सकता है जिसका फायदा भारत को दीर्घकालिक तौर पर होगा। स्वदेश लौटी प्रतिभाएं भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में मदद कर सकती हैं।

    ट्रंप के फैसले से भारत में मचा हड़कंप

    बहरहाल, ट्रंप प्रशासन के उक्त फैसले से भारत में हड़कंप मचा हुआ है। नेता प्रतिपक्ष (लोकसभा) राहुल गांधी और कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मोदी सरकार पर तीखा हमला किया है। आईटी कंपनियों के संगठन नासकॉम ने भारतीय आइटी सेक्टर पर गहरे असर पड़ने की बात कही है। अमेरिका ने अभी तक जितना एच-1बी वीजा दिया हुआ है उसका 72 फीसद से ज्यादा भारतीयों को मिला है। सिर्फ वर्ष 2025 में माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, मेटा जैसी दिग्गज अमेरिकी कंपनियां और नासा जैसी प्रख्या एजेंसी को 20 हजार एच-1बी वीजा की मंजूरी दी गई है और इसका अधिकांश भारतीयों को मिला है। अब इन कंपनियों की लागत काफी बढ़ जाएगी।

    इन लोगों पर पड़ेगा फैसले का असर

    विदेशी मीडिया के मुताबिक सिर्फ अमेजन पर 3.6 अरब डॉलर का बोझ बढ़ जाएगा जहां 11 हजार से ज्यादा भारतीय काम करते हैं। उक्त फैसले का सबसे पहला असर उन भारतीयों पेशेवरों पर होने जा रहा है जिसके पास एच-1बी वीजा है लेकिन वह अमेरिका में नहीं है। इन्हें 21 सितंबर यानी 24 घंटे के भीतर अमेरिका लौटना होगा। एच-1बी वीजा हासिल कई भारतीय नागरिक छुट्टियां या घरेलू कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए अभी भारत आए हैं। माइक्रोसॉफ्ट ने एच-1बी श्रेणी के वीजा लेने वाले सभी कर्मचारियों को 21 सितंबर तक अमेरिका लौटने को कहा है।

    'नॉन-इमिग्रेंट वर्कर्स के प्रवेश पर प्रतिबंध' आदेश पर हस्ताक्षर करने के बाद ट्रंप ने कहा कि, 'अब बड़ी प्रौद्योगिकी अन्य कंपनियों को विदेशी कामगारों को लाने की इजाजत नहीं होगी। उन्हें अमेरिकी सरकार को एक लाख डॉलर और श्रमिकों को वेतन भी देना होगा, यह फायदेमंद नहीं रहेगा।'

    जबकि वाणिज्य सचिव हावर्ड लुटनिक ने कहा कि, “अगर कंपनियों को प्रशिक्षित करना है तो उन्हें अमेरिकी विश्वविद्यालयों से पास अमेरिकी युवाओं को प्रशिक्षित करना होग। उन्हें बाहर से लोगों को ला कर हमारे नागरिकों की नौकरी को छिनना बंदन करना होगा।''

    भारत सरकार की तरफ से खबर लिखे जाने तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। अगले हफ्ते लुटनिक से कारोबारी वार्ता करने अमेरिका जा रहे भारत के वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने पीएम नरेन्द्र मोदी की तरफ से शनिवार को दिए गए एक भाषण को सोशल मीडिया साइट पर पोस्ट करते हए लिखा है कि, “चिप हो या शिप, हमें भारत में ही बनानी होगी।''

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