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    सिनेमा हॉल में विज्ञापन और शो टाइम को लेकर उठाए गए सवाल, हाई कोर्ट ने सरकार से कही ये बात

    Updated: Sat, 01 Mar 2025 09:10 PM (IST)

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यह मामला नीति-निर्माण का है और सरकार को इस पर उचित विचार करना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि वह इस मामले पर सीधे कोई आदेश जारी नहीं करेगी लेकिन सरकार को हितधारकों के साथ चर्चा कर आवश्यक कदम उठाने चाहिए। यह याचिका ग्वालियर की लॉ स्टूडेंट स्वाति अग्रवाल ने दायर की थी।

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    अदालत के निर्देश से दर्शकों को मिलेगी राहत, सिनेमा हॉल में होगा सुधार।

    जेएनएन, ग्वालियर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने देशभर के सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स में फिल्मों के वास्तविक शो टाइम और विज्ञापनों को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह मामला नीति-निर्माण का है और सरकार को इस पर उचित विचार करना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि वह इस मामले पर सीधे कोई आदेश जारी नहीं करेगी लेकिन सरकार को हितधारकों के साथ चर्चा कर आवश्यक कदम उठाने चाहिए।

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    यह याचिका ग्वालियर की लॉ स्टूडेंट स्वाति अग्रवाल ने दायर की थी। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि देशभर के मल्टीप्लेक्स और सिनेमा हॉल में फिल्मों के शो टाइम को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है। टिकट पर एक समय लिखा होता है लेकिन फिल्म उस वक्त शुरू न होकर काफी देर बाद शुरू होती है। इस दौरान दर्शकों को लंबे विज्ञापन दिखाए जाते हैं, जिससे उनका समय व्यर्थ होता है। याचिकाकर्ता ने इसे अनुचित व्यापार प्रथा बताते हुए तर्क दिया कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 में 'चयन के अधिकार' (Right to Choose) का उल्लंघन करता है।

    याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की थी कि सरकार सभी सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स को यह निर्देश दे कि वे टिकट पर स्पष्ट रूप से फिल्म शुरू होने का समय अंकित करें और दर्शकों को विज्ञापन देखने के लिए मजबूर न किया जाए।

    सरकारी पक्ष ने याचिका का विरोध किया और कहा कि यह मामला नीति-निर्माण और प्रशासनिक निर्णय से जुड़ा हुआ है, जिस पर सरकार को निर्णय लेना चाहिए न कि अदालत को।

    कोर्ट ने सीधे हस्तक्षेप से किया इनकार

    सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि यह विषय सीधे न्यायिक हस्तक्षेप का नहीं है, बल्कि प्रशासनिक और नीति-निर्माण के स्तर पर चर्चा की आवश्यकता है। अदालत ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वे अपनी मांगों से संबंधित विस्तृत ज्ञापन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को दें। साथ ही, अदालत ने सरकार से अपेक्षा की कि वह सभी संबंधित हितधारकों के साथ विचार-विमर्श कर इस विषय पर आवश्यक कदम उठाए।

    Disclaimer इस खबर में कुछ बदलाव किए गए हैं। शुरुआती जानकारी के आधार पर पहले खबर बनाई गई थी, लेकिन पुष्ट सोर्स के बाद हमने कई तथ्यात्मक बदलाव किए हैं। जागरण डॉट कॉम खबरों की सत्यता को लेकर सदैव सजग रहा है। हम अपने पाठकों तक तथ्यात्मक और पुष्ट जानकारी पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस असुविधा के लिए सुधी पाठकों के प्रति खेद प्रकट करते हैं।

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