बांग्ला मूल और भोजपुरी परिवेश, लेकिन हिंदी से दिया एकात्म राष्ट्र संदेश; 77 साल में भी लेखिका को साहित्य सेवा की धुन
अनुराधा बनर्जी ने रवींद्रनाथ टैगोर के अंतिम वर्षों में लिखे ग्रंथों का हिंदी अनुवाद किया है जो रोगशय्या पर आरोग्य जन्मदिन पर व अंतिम सत्य के रूप में संवेदना की गहराइयों को छूता है। उन्होंने बांग्ला संस्कृत और उर्दू के साहित्यिक ग्रंथों का भी भावानुवाद किया है। नागरी प्रचारिणी सभा की सभापति के रूप में उनका लक्ष्य उत्कृष्ट साहित्य को भावी पीढ़ी तक पहुंचाना है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा जीवन के अंतिम वर्षों में लिखे चार ग्रंथों रोगशज्जाये, आरोग्य, जन्मदिने और शेष लेखा का हिंदी अनुवाद ‘रोगशय्या पर’, ‘आरोग्य’, ‘जन्मदिन पर’ व ‘अंतिम सत्य’ में पढ़ते हुए आप संवेदना की गहराइयों में पहुंच जाएंगे। इनका प्रवाहमयी हिंदी अनुवाद कवींद्र के भावों को जीवंत करता है। यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह भावानुवाद करने वाली लेखिका डा. अनुराधा बनर्जी की न तो मातृभाषा हिंदी है, न परिवेश।
मौलिक सर्जना, भावानुवाद भी
बीएचयू से संबद्ध वसंत कन्या महाविद्यालय से बतौर अंग्रेजी विभागाध्यक्ष सेवानिवृत्त होने के बाद 10 वर्षों से वह एकनिष्ठ होकर साहित्य सर्जना में जुटी हैं। कोरोना काल ने इसे और गति प्रदान की। अपनी तीन मौलिक रचनाओं ‘हवा ने करवट ली’ (2004, काव्य संग्रह) ‘दिशाओं की खोज में’ (2024, काव्य संग्रह) व ‘मशाल वो सुभाष की’ (नाटक संग्रह) के प्रकाशन के साथ ही बांग्ला, संस्कृत व उर्दू के उत्कृष्ट साहित्यिक ग्रंथों के भावानुवाद में लगी हैं। उनकी भाषा का लालित्य, कल-कल, छल-छल जैसा प्रवाह, उत्कृष्टता पाठक को एक मोहपाश में बांध लेती है।
सतत साहित्य सेवा की लगी धुन
डा. बनर्जी के लिए भाषा के बंधन मायने नहीं रखते। 77 वर्ष की आयु में भी बस एक ही धुन है, सतत साहित्य सेवा। बतौर नागरी प्रचारिणी सभा की सभापति उनका लक्ष्य बस उत्कृष्ट साहित्य को भावी पीढ़ी व सुधी पाठकों तक उनकी भाषा में पहुंचाना। संपूर्ण रवींद्र साहित्य के हिंदी अनुवाद को संकल्पित डा. अनुराधा बनर्जी ने अब तक रवींद्रनाथ टैगोर के चार ग्रंथों व तीन नाटकों ‘अचलायतन’ ‘मुक्तधारा’ व ‘चंडालिका’ का अनुवाद कार्य पूर्ण कर उसे प्रकाशित भी करा दिया है।
गुरुदेव के दो कालजयी नाटकों ‘चित्रांगदा’ व ‘नटी की पूजा’ का अनुवाद कार्य पूर्ण हो चुका है और प्रकाशन के पूर्व प्रूफ रीडिंग जारी है। डा. बनर्जी ने चीनी उपनिषद ‘ताओ तेन चिंग’ के अंग्रेजी अनुवाद से उसे हिंदी में इस तरह अनुदित किया है कि उसे पढ़ते हुए लगता है जैसे हम कोई वैदिक साहित्य पढ़ रहे हों। साथ में शिक्षिका रहीं डा. कमला पांडेय के संस्कृत ग्रंथ ‘रक्षत गंगाम’ तथा हशम तुराबी के तीन गजल संग्रहों और डा. राम अवतार पांडेय के काव्य संग्रह का अंग्रेजी में भावानुवाद कर चुकी हैं।
गुरुदेव के दो कालजयी नाटकों का हिंदी अनुवाद प्रकाशन को तैयार
मौलिक कृतियां: ‘हवा ने करवट ली’ (2004, काव्य संग्रह) ‘दिशाओं की खोज में’ (2024, काव्य संग्रह) व ‘मशाल वो सुभाष की’ (नाटक संग्रह)
भावानुवाद: ‘अंतिम सत्य’ (गुरुदेव टैगाेर के जीवन के अंतिम चार ग्रंथों का समन्वित हिंदी), ‘रवींद्रनाथ ठाकुर के तीन नाटक’ (बांग्ला से हिंदी) ‘ताओ ते चिंग’ (चीनी उपनिषद का अंग्रेजी से हिंदी), ‘रक्षत गंगाम’ (डा. कमला पांडेय के संस्कृत ग्रंथ का हिंदी), सच और संवेदना (डा. रामअवतार पांडेय के काव्य संग्रह का हिंदी से अंग्रेजी)।
शीघ्र प्रकाश्य: रवींद्रनाथ ठाकुर के दो कालजयी नाटकों (चित्रांगदा व नटी पूजा) का हिंदी अनुवाद व अनेक मौलिक कविता, नाटक व एकांकी संग्रह।
सर्जना के गठन के साथ आरंभ हुई लेखन यात्रा
लेखन से कैसे जुड़ीं, प्रश्न पर डा. अनुराधा कहती हैं कि बस पढ़ाते समय मन में आया कि हम दूसरों के विचारों का ही संप्रेषण करते रहेंगे या अपने विचारों को भी अभिव्यक्ति देंगे। इस विचार को साथी शिक्षिकाओं से साझा किया और फिर ‘सर्जना’ का गठन हो गया। ‘सर्जना’ ने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू की अनेक रचनाकारों को जन्म दिया।
(वाराणसी से शैलेश अस्थाना)
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