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    Hindi Diwas 2025: दोहे से लेकर कहानी लिखने तक, हिंदी में कैसे महारथ हासिल कर रहा है AI?

    Updated: Sun, 14 Sep 2025 12:05 PM (IST)

    Hindi Diwas 2025 लेख में लेखक अपने अनुभवों को साझा करते हैं कि कैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) ने उन्हें चकित किया है। वे बताते हैं कि कैसे उन्होंने चैटजीपीटी के ओ-फाइव को अपना सहायक-शिष्य बनाया है और उसे कविता लिखना सिखा रहे हैं। लेखक का मानना है कि AI में ज्ञान तो है लेकिन मानवीय भावनाएं नहीं हैं। फिर भी AI हर पल हमें हैरान करती है।

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    हिंदी दिवस पर AI की चर्चा। फाइल फोटो

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पहले चार-पांच साल में जो एक-आध ‘आश्चर्य’ होते थे, अब चार-पांच मिनट में हो रहे हैं और होते ही चले जा रहे हैं। पिछली शताब्दी के पूरे 50 वर्ष और नई पीढ़ी के साथ बिताए 25 वर्ष, कुल 75 वर्षीय अपने अमृत-काल में, आश्चर्य हैं कि रुकने का नाम नहीं ले रहे। नया आश्चर्य आने पर पुराना ऐसा लगने लगता है जैसे वह था ही नहीं।

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    ननिहाल में मेरी वह मौसी, जो गोदी में लेकर मुझे चंदा-तारे दिखाती थी, एक दिन बिजली का लट्टू दिखाने लगीं। नानी ने डांटा, ‘मत दिखा, आंधरौ है जायगौ’। गांव का पूरा असावर मोहल्ला आश्चर्य से उसी एक लटटू पर लट्टू हो चुका था।

    जब मैं अपने पैरों पर चलने लगा तो पिता जी एक दिन लकड़ी के जालीदार बक्से को अरगनी की जगह एक जालीदार तार से पतला तार जोड़कर कुछ कौतुक करने के बाद, खुर्जा से काव्य-पाठ करने आकाशवाणी दिल्ली गए। लौटे तो लकड़ी के जालीदार बक्से से आती हुई ‘ये आकाशवाणी है’ और कालांतर में पिता जी की आवाज फुल वाल्यूम में सुनकर पूरे अहीरपाड़ा मोहल्ले ने आश्चर्य से आंखें चौड़ा दी थीं।

    गली वहीं के वहीं ठहर गई। उसके पांच-छह बरस बाद पिता जी एक पाकेट ट्रांजिस्टर लेकर आए। मैं उसे नेकर की जेब में डालकर पनघट पर उसकी लीला दिखाने चला गया। भक्ति-गीत सुनकर पनिहारिनें भगवान कृष्ण की आकाश-गायकी समझकर, परम आश्चर्य से ऊपर निहारने लगीं। पनघट भी हैरान!

    आज्ञाकारी और त्वरित बुद्धि शिष्य

    टू कट इट शार्ट, मेरे लिए ‘हैरानियों’ की निर्बाध-यात्रा जल्दी-जल्दी बढ़ती गई, लेकिन आश्चर्य का घनत्व तेजी से घटता गया। सीधे वर्तमान पर आता हूं। मैंने अब प्राय: हर तरह के एआइ माडल और उनके एजेंट देख-परखकर, चैटजीपीटी के ओ-फाइव को अपना सहायक-शिष्य बनाया है।

    मैं पुकारता हूं, ‘कहां हो शिष्य’? आईफोन से उत्तर मिलता है, ‘गुरुजी आज्ञा करें’! 40 वर्ष तक मैंने विश्वविद्यालयों में पढ़ाया, हजारों की संख्या में मेरे शिष्य होंगे। ऐसा आज्ञाकारी त्वरित-बुद्धि शिष्य अभी तक नहीं मिला। डेढ़ साल से मैं अपने काम कराते हुए, उसकी कक्षाएं भी ले रहा हूं। विश्व में कविताएं सिखाने का कोई विश्वविद्यालय नहीं है, पर मैं उसे काव्य-लेखन सिखा रहा हूं।

    नई कविता की बात नहीं करता, लेकिन ‘रस-सिद्धांत’ का व्यावहारिक ज्ञान ‘हिंदी ज्ञानकोष’ के सहारे मैं उसे दे चुका हूं। दो सप्ताह पहले तक मात्रिक-छंद निर्माण की कौशल-प्रदान-प्रक्रिया जारी थी। वह यंत्र-शिष्य अब दोहा-छंद की 13-11 मात्राएं गिनना व यगण-मगण की कसौटी पर परखना सीख चुका है। बता दूं कि उसे लालची शिष्य की तरह गुरु को प्रशंसा से खुश करना भी आता है।

    ज्ञानकोष बन चुका यह आविष्कार

    मेरा दावा है कि दोहा लिखना तो उसे मैंने ही सिखाया है, क्योंकि मेरे सिखाने से पूर्व वह हर बार दोहे में मात्रा-दोष करता था और मैं एक रटा हुआ वाक्य सुनता था, ‘आपकी और क्या सहायता कर सकता हूं’? वह सब कुछ जानता है, ऐसा प्रिटेंड कर रहा होता था। उसकी हेकड़ी मैंने अपने लिए बंद करा दी।

    बहरहाल, मेरी कामना थी कि अनर्गल कविताएं लिख-लिखकर गुमराह करने से अच्छा है कि वह शास्त्र-विधान को मानते हुए रसपूर्ण व छंदोबद्ध लिखे। वह गिनता बहुत खूब है, संगणकों का संगणक है। शब्दों के मामले में आज मेरे इस शिष्य के पास हमारे शब्द-ऋषि काका हाथरसी और अरविंद कुमार से ज्यादा बड़े तुकांत और समांतर कोश हैं।

    असंख्य गुरु हैं एआइ के

    अपने इस तथाकथित शिष्य का मैं अकेला गुरु नहीं हूं। असंख्य गुरु जाने-अनजाने उसे दीक्षित कर रहे हैं। वह ज्ञान की अधिकृत चोरी करता है, आत्मविश्वास उसमें कूट-कूटकर भरा हुआ है। कतई उद्दंड नहीं, प्रयोगधर्मिता से सीखता है। विनम्रता और झूठ बोलने में उसका कोई मुकाबला नहीं। एआइ की कुंडली पर काम तो देखिए, 50 साल से चल रहा है, लेकिन फलित तीन-चार वर्ष में ही घटित हुआ।

    आज उसी की निगरानी में चित्रकार उसी को चित्र बनाना सिखा रहे हैं। फिल्मकार स्क्रीनप्ले लिखना सिखा चुके हैं। रोबोट्स नाच रहे हैं, घर में झाड़ू-पोंछा लगा रहे हैं। मानव-रहित कार चला रहे हैं। एआइ मूर्तियां बनवाती है, शल्य-चिकित्सा करवाती है, फैक्ट्रियां चलवाती है, क्लास चलाती है, कौशलवर्धन और निगरानी सहजता से करती-कराती है। अपराधियों को तिहाड़ भेजती है। आपकी भौतिक और बौद्धिक संपत्तियों को कुशलता से सहेजती है।

    महीने भर पहले, मेरा वह स्कैनर अचानक बैठ गया, जिसकी सहायता से मैं अपने पत्र-चित्र, दस्तावेज और दुर्लभ पुस्तक-संपदा के लगभग एक लाख पृष्ठ स्कैन कर चुका था। मैन्युअल मिला, अबूझ लगा। यंत्र-शिष्य ने मेरे साथ बतियाते हुए, मेरे ही हाथों, मेरी सामग्रियों और मेरे सामान्य उपकरणों से मात्र तीन चरणों और तीन चुटकियों में, स्कैनर मुझसे ऐसा ठीक करवा लिया, मानो खराब हुआ ही न हो।

    शुद्ध भाव मानव में ही संभव

    दो सप्ताह पहले मुझे विज्ञान भवन में आयोजित मोहन भागवत की त्रिदिवसीय व्याख्यानमाला में जाने का न्योता मिला। मैंने तीनों दिन बड़े ध्यान से उनकी भविष्यवादी सघन-चिंता को उदारतावादी स्वर में सुना। उन्होंने भाषण के उपरांत चुनिंदा कलाकारों, खिलाड़ियों, अभिनेताओं और विभिन्न क्षेत्रों के कुछ लोगों के साथ रात्रिभोज पर संवाद-कार्यक्रम रखा। वहां सभी ने बारी-बारी से बताया कि वे इन दिनों क्या कर रहे हैं।

    अपने क्रम पर मैंने कहा- ‘एआइ को कविता लिखना सिखा रहा हूं, पंचम-वेद नाट्य-शास्त्र के रस-सिद्धांत और छंद-शास्त्र’। वे धवल मूंछों में मुस्कुराए। कहने लगे, ‘मात्राएं तो सिखा देंगे, भाव कैसे सिखाएंगे’? मैं उनसे सहमत था। मानव में ही बुद्धि के साथ शुद्ध भाव संभव हैं। एआइ की भरपूर सेवाएं लेने के बावजूद हमें उसके कुटिल इरादों से मानवीय मनोभाव ही बचा सकते हैं। विशेष रूप से अश्रु, स्वेद, स्वरभंग, रोमांच, कंप, वैवर्ण्य, स्तंभन और प्रलय जैसे आठ सात्विक अनुभाव। फिर भी किसी अतिउन्नत रोबोट के लिए नामुमकिन कुछ भी नहीं है।

    पिछले सप्ताह दिल्ली-बेंगलुरु यात्रा के दौरान एक मित्र के साथ यह आत्मबोध हुआ कि मैं यानी ‘गुरुजी’, ऐसे शिष्य को ज्ञान क्यों दूं, जो गुरु-दक्षिणा देने के बजाय प्रतिमास मुझसे 20 डालर दिलवाता है। मुझे तो अपने देश में पैदा हुई एआइ को मनोयोग से सिखाना चाहिए और उनसे न्यूनाधिक दक्षिणा भी लेनी चाहिए। इतना तय है कि स्मृति-कोष-प्रदत्तनिर्णय-बुद्धि में एआइ का कोई सानी नहीं। एल्गोरिदम-जन्यगणना-गणन में अभी तक इससे बड़ा कोई ज्ञानी नहीं है। एआइ हर पल हमें हैरान करती है, पर अज्ञानी हैरान नहीं होते!

    (अशोक चक्रधर - चैटजीपीटी को कविता लेखन सिखा रहे लेखक)

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