गोलीबारी, हवाई विस्फोट और फिदायीन हमले... PAK ने भुगता आतंकवाद को पनाह देने का खामियाजा, साल 2025 में क्या-क्या हुआ?
2025 पाकिस्तान के लिए रक्तपात भरा साल रहा, जिसमें आतंकवाद से 3,967 मौतें हुईं, जो 2015 के बाद सर्वाधिक हैं। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को हिंस ...और पढ़ें
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साउथ एशियन टेररिज्म पोर्टल के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, इस साल हिंसा में 3,967 लोग मारे गए।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। साल 2025 पाकिस्तान के लिए खून से लथपथ साल साबित हुआ। बंदूक की गोलीबारी, हवाई हमले और आत्मघाती विस्फोटों ने पूरे देश को दहला दिया।
साउथ एशियन टेररिज्म पोर्टल के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, इस साल हिंसा में 3,967 लोग मारे गए, जो 2015 के बाद सबसे ज्यादा मौतें हैं। 27 दिसंबर तक 1,070 ऐसी घटनाएं हुईं, जिनमें आम नागरिकों से लेकर सैनिकों और आतंकवादियों तक सब शामिल थे।
इस बढ़ती हिंसा के पीछे मुख्य वजह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को माना जा रहा है, जो अफगानिस्तान के तालिबान से जुड़ा हुआ है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते इस साल और बिगड़ गए, क्योंकि पाकिस्तान का आरोप है कि काबुल टीटीपी को शरण दे रहा है।
टीटीपी की वजह से बिगड़े पाक-अफगान के रिश्ते?
पाकिस्तान ने कई बड़े हमलों के लिए टीटीपी को जिम्मेदार ठहराया है। मिसाल के तौर पर, इस साल की शुरुआत में उत्तर वजीरिस्तान में एक सैन्य परिसर पर आत्मघाती हमले में सात पाकिस्तानी सैनिक मारे गए।
इसके कुछ दिनों बाद काबुल ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि उसने अफगानिस्तान के उत्तर-पूर्वी इलाके में हवाई हमले किए, जिसमें कई नागरिक मारे गए। पाकिस्तान ने इस आरोप से इनकार किया।
अफगान तालिबान ने पाकिस्तान के दावों को खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि वे टीटीपी के नेताओं को शरण नहीं दे रहे और अफगानों को दूसरे देशों में लड़ने की इजाजत नहीं देते। नवंबर की शुरुआत में उनके प्रवक्ता ने कहा कि टीटीपी पाकिस्तानी सेना के अमेरिकी युद्ध में समर्थन और 2002 से आदिवासी इलाकों में ड्रोन हमलों के जवाब में उभरा।
दिसंबर में भी रिश्तों पर जमीं बर्फ नहीं पिघली
तुर्की और कतर ने नवंबर के अंत में दोनों पक्षों के बीच बातचीत कराने की कोशिश की, लेकिन ये प्रयास हफ्तों में ही धराशायी हो गए। दिसंबर में सीमा पर झड़पें जारी रहीं। 2021 में अमेरिकी सेनाओं की वापसी के बाद तालिबान की अफगानिस्तान में सत्ता में वापसी से पाकिस्तान-अफगानिस्तान के रिश्ते बिगड़ने लगे।
पाकिस्तान को उम्मीद थी कि काबुल में दोस्ताना सरकार टीटीपी को काबू में करेगी, लेकिन उल्टा टीटीपी और मजबूत हो गया और आदिवासी इलाकों में विद्रोह तेज कर दिया।
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