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    गुजरात की CM आनंदी बेन पटेल ने मुख्यमंत्री पद से दिया इस्तीफा

    By Gunateet OjhaEdited By:
    Updated: Mon, 01 Aug 2016 10:04 PM (IST)

    गुजरात चुनाव से पहले नेतृत्व परिवर्तन की भाजपा की मंशा को अमलीजामा पहनाते हुए उन्होंने खुद ही इस्तीफे की पेशकश कर दी। उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को इस्तीफा भेज दिया।

    नई दिल्ली/ अहमदाबाद। कुछ दिनों पहले तक खुद को मजबूत और प्रदेश के लिए उपयोगी बताती रहीं गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल को आखिरकार पार्टी लाइन पर आना ही पड़ा। गुजरात चुनाव से पहले नेतृत्व परिवर्तन की भाजपा की मंशा को अमलीजामा पहनाते हुए उन्होंने खुद ही इस्तीफे की पेशकश कर दी। उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को इस्तीफा भेज दिया।

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    उससे पहले ही राज्यपाल से मुलाकात कर भी संभवत: उन्होंने इस्तीफा सौंप दिया था। संभव है कि अगले एक दो दिनों में ही गुजरात चुनाव के लिहाज से किसी युवा चेहरे को मुख्यमंत्री बनाया जाए। गुजरात में मंत्री नितिन पटेल, प्रदेश अध्यक्ष विजय रूपाणी और गणपत भाई बसावा और संगठन महामंत्री भीखू भाई दलसाणिया का नाम आगे माना जा रहा है। आनंदीबेन ने सोमवार को पहले फेसबुक पर पद से मुक्त होने की इच्छा जताई।

    उन्होंने कहा कि 'पार्टी ने 75 साल की उम्र तक सक्रिय राजनीति में रहने की परंपरा शुरू की है। वह नवंबर में 75 की हो रही हैं और अब मुक्त होना चाहती हैं।' तीस साल से ज्यादा वक्त तक पार्टी में अलग अलग पदों पर रहने के लिए उन्होंने पार्टी का शुक्रिया भी अदा किया। इससे पहले उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष विजय रूपाणी से मुलाकात की और फेसबुक पर इस्तीफे की पेशकश के बाद राज्यपाल ओपी कोहली से भी मिलीं। माना जा रहा है कि उससे पहले ही उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व को इस्तीफा भेज दिया था। सैद्धांतिक तौर पर वह स्वीकार भी कर लिया गया है। हालांकि अमित शाह ने कहा कि आनंदी बेन का इस्तीफा संसदीय बोर्ड के समक्ष रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि 'आनंदी बेन ने अच्छी परंपरा रखी है और वह चाहती हैं कि उनके उत्तराधिकारी को अगले चुनाव और वाइब्रेंट गुजरात की तैयारियों के लिए पर्याप्त वक्त मिले।'

    गौरतलब है कि आनंदीबेन को मुख्यमंत्री पद से हटाकर राज्यपाल बनाने की कवायद पहले से चल रही थी। दरअसल गुजरात में अगले साल के अंत में विधानसभा चुनाव है और कुछ मायनों में यह चुनाव उत्तर प्रदेश चुनाव से भी अहम होने वाला है। पिछले महीनों में जिस तरह वहां पटेल आंदोलन ने रंग लिया और फिर स्थानीय चुनाव में भाजपा की शिकस्त हुई उससे नेतृत्व पहले से आशंकित था। यही कारण है कि मुख्यमंत्री बदलाव की मंशा तो पहले से ही थी लेकिन पिछले दिनों में पटेल की पुत्री के खिलाफ कुछ मामलों ने इसे और तेज कर दिया था। सूत्रों के अनुसार जो स्थिति थी उसमें भाजपा के लिए 2017 का चुनाव मुश्किल माना जा रहा था। लिहाजा अब जातिगत समीकरण के साथ साथ ऐसे व्यक्ति को आगे लाने की कोशिश होगी हर किसी को साथ लेकर चलने की क्षमता रखता हो।

    नितिन पटेल शुरू से शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नजदीकी माने जाते हैं। वह कड़वा पटेल समुदाय से आते हैं। वहीं युवा रूपाणी की पकड़ संगठन पर मजबूत है। वणिक समुदाय से होने के नाते भी उनकी दावेदारी मजबूत हो सकती है। इनके बीच गणपत भाई वसावा और भीखू भाई दलसाणिया हर किसी को हैरत में डालते हुए आगे भी निकल सकते हैं। आदिवासी समुदाय से आने वाले वसावा सभी दावेदारों में सबसे ज्यादा युवा है। गुजरात में लगभग 20 फीसद आदिवासी हैं और लगभग दो दर्जन सीटों पर उनका प्रभाव है। जबकि संघ से आने वाले दलसाणिया संगठन के आदमी हैं।

    आनंदीबेन पटेल पर पहले से लटक रही है उम्र की तलवार

    पंचायत चुनाव में भाजपा की हार व पाटीदार आरक्षण आंदोलन का सख्ती से सामना करने वाली मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल पर उम्र की तलवार पहले से ही लटक रही है। पटेल नवंबर 2016 में 75 की हो जाएंगी, भाजपा अब ऐसे नेताओं को पदमुक्त कर रही है।

    लोकसभा चुनाव में जीत के साथ ही भाजपा में उम्रदराज नेताओं को सलाहकार की भूमिका में रखा गया है। हाल ही में केन्द्रीय मंत्रिमंडल से नजमा हेपतुल्ला की छुटटी व मध्यप्रदेश में बाबूलाल गौर व सरताज सिंह जैसे नेताओं की छुटटी के बाद से गुजरात के राजनीतिक गलियारों में मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल की ही चर्चा चल रही है। आनंदीबेन पटेल का जन्म 21 नवंबर 1941 को हुआ है, वे नवंबर 2016 में 75 वर्ष पूरे कर लेंगी, पाटीदार आंदोलन के बाद दलित उत्पीड़न की घटनाओं के चलते गुजरात की राजनीति फिर गरमा गई है।

    पंचायत चुनाव में भाजपा की करारी हार व पाटीदार आरक्षण आंदोलन

    गुजरात के पंचायत चुनाव में भाजपा की करारी हार व पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान भी आनंदीबेन पटेल को हटाए जाने की अटकलें तेज हो गई थी। उनका विरोधी खेमा जोरदार उत्साहित था। लेकिन आनंदीबेन इन चुनौतियों से सफलता पूर्वक उभर गईं, अब उन पर उम्र की तलवार लटक रही है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि राज्य में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने के कारण आनंदीबेन को अपवाद के रूप में रखा जा सकता है। आनंदीबेन खुद पार्टी व सरकार के लिए दिन रात दौड़ भाग कर रही हैं ऐसे में उनके प्रयासों को हलके में लेना पार्टी को भी भारी पड़ सकता है।

    दलित लडकों के साथ अमानवीय व्यवहार

    गौरतलब है कि गत दिनों गीर सोमनाथ में चार दलित लडकों के साथ अमानवीय व्यवहार के बाद से राज्य का दलित समुदाय भड़क गया है तथा सडकों पर उतर आया है। विपक्षी दल कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर मंगलवार को राज्यपाल ओ पी कोहली से मिलकर सरकार की शिकायत भी कर आया है। ऐसे में दलित आक्रोष व उम्र का गठजोड़ कहीं आनंदीबेन की कुर्सी नहीं छीन ले जाए। हालांकि अटकलों को विराम देते हुए खुद आनंदीबेन कह चुकी हैं कि वे 2017 में सीएम की उम्मीदवार नहीं होंगी तथा उनकी पुत्री अनार पटेल भी समाज सेवा से जुड़ी हैं उन्हें राजनीति में आना पसंद नहीं है।

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