नोटबंदी को चूना लगाने में जुटे बैंकों की खैर नहीं, जांच एजेंसियों की है इन पर नजर
जांच एजेंसियों की माने तो कम से कम छह अन्य बैंकों में भी किसी न किसी तरह से नोटबंदी के तहत तय नियमों का उल्लंघन किया गया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पहले एक्सिस बैंक और अब कोटक महिंद्रा बैंक। नोटबंदी की पहल को चूना लगाने में इन दोनों बैंकों के अधिकारियों को पकड़ा जा चुका है। लेकिन नोटबंदी लागू होने के बाद काले धन को सफेद करने में असामाजिक तत्वों की मदद में सिर्फ ये बैंक ही शामिल नहीं है। बल्कि ऐसे बैंकों व उनके अधिकारियों की सूची काफी लंबी है। जांच एजेंसियों की पकड़ से अन्य बैंक व उनके अधिकारी फिलहाल भले ही बचे हुए हो लेकिन वे ज्यादा दिनों तक बच कर नहीं रह सकेंगे। जांच एजेंसियों की माने तो कम से कम छह अन्य बैंकों में भी किसी न किसी तरह से नोटबंदी के तहत तय नियमों का उल्लंघन किया गया है।
दरअसल, सरकार की तरफ से नोटबंदी के बाद ही बैंकों की भूमिका की निगरानी की व्यवस्था की गई है। इसमें सीबीआइ, प्रवर्तन निदेशालय, आय कर विभाग के प्रतिनिधियों के अलावा कुछ राज्यों की जांच एजेंसियों को भी शामिल किया गया है। इससे जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक अभी उन बैंकों के अधिकारियों पर हाथ डाला जा रहा है जिनके खिलाफ पूरे सबूत हैं। लेकिन हमें भरोसा है कि बड़े पैमाने पर जहां-जहां बैंक अधिकारियों की भूमिका है उन्हें धीरे-धीरे जांच एजेंसियों के सामने आना पड़ेगा। हालांकि अधिकारी मानते हैं कि अभी तक संगठन के तौर पर किसी बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान के शामिल होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं। अधिकांश मामले में बैंक अधिकारियों की स्थानीय तौर पर मिली भगत सामने आई है।
08 नवंबर, 2016 को नोटबंदी के लागू होने के बाद अभी तक देश के विभिन्न हिस्सों से जांच एजेंसियों ने जितने बैंककर्मियों को पकड़ा है उससे यह भी स्पष्ट है कि बाजार में उपलब्ध काले धन को सफेद बनाने या उसे सिस्टम में लाने में इनकी भूमिका बेहद अहम रही है। नोटबंदी लागू होने के कुछ ही दिन बाद सरकार को इस बात की सूचना मिलने लगी थी कि किस तरह से देश भर में जन धन खातों के जरिए काले धन को सफेद किया जा रहा है।
इनकी जैसे ही निगरानी शुरु की गई तो कालेधन के कारोबारियों ने दूसरा रास्ता निकाल लिया। एक्सिस व कोटक महिंद्रा बैंक का मामला बताता है कि बैंकों ने खाता खोलने के मामूली नियमों को भी ताक पर डाल रखा था। ग्राहकों की पहचान संबंधी केवाइसी नियमों तक का पालन नहीं किया गया। सूत्रों के मुताबिक अगर बैंकों के स्तर पर काले धन को सफेद करने का काम नहीं किया गया होता तो प्रतिबंधित 500 व 1000 के नोटों में से 92 फीसद वापस नहीं लौट आए होते। सरकार को पहले उम्मीद थी कि प्रतिबंधित नोटों (14.95 लाख करोड़ रुपये) में से 3-4 लाख करोड़ रुपये नहीं आएंगे। यह सरकार के लिए फायदे का सौदा होता।
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