IT Rules को लेकर सरकार सख्त, अब ऑनलाइन कंटेंट हटाना होगा आसान; कंपनियां नहीं कर सकेंगी मनमानी
सरकार आईटी नियमों को लेकर सख्त हो गई है। अब ऑनलाइन गलत कंटेंट को हटाना आसान होगा, क्योंकि सरकार के पास इसे हटाने का अधिकार होगा। सोशल मीडिया कंपनियों को सरकार के आदेशों का पालन करना होगा और वे मनमानी नहीं कर पाएंगी। इन नियमों का उद्देश्य ऑनलाइन गलत सूचना और भ्रामक कंटेंट को रोकना है, जिससे उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा होगी।

अश्वनी वैष्णव। (फाइल)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सोशल मीडिया गाइडलाइंस को लेकर एलन मस्क की कंपनी 'एक्स' के साथ कानूनी लड़ाई के बाद केंद्र सरकार ने पारदर्शिता, जावाबदेही और सुरक्षा उपायों को बढ़ाने के लिए सूचना प्रौद्यौगिरी कानून में महत्वपूर्ण संशोधन किए हैं।
इन संशोधनों में एक, अवैध जानकारी को हटाने के आदेश जारी करने वाले अधिकारियों की संख्या को सीमित करता है। अन्य प्रमुख बदलाव यह है कि अधिकारियों को ऐसे निर्देश जारी करते समय कानूनी आधार और वैधानिक प्रावधान और अवैध कृत्य को स्पष्ट रूप से बताना होगा।
सरकार की ओर ये कानून में यह बदलाव कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा X कॉर्प की उस याचिका को खारिज करने के एक महीने बाद आया है जिसमें सरकारी अधिकारियों के इंफॉर्मेशमन ब्लॉकिंग ऑर्डर जारी करने के अधिकार को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "सोशल मीडिया को रेगूलेट करने की आवश्यकता है, और इसका रेगूलेशन अनिवार्य है, खासकर महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में, ऐसा न करने पर संविधान में प्रदत्त नागरिक के सम्मान के अधिकार का हनन होता है।"
कानून में क्यों हुआ बदलाव?
बुधवार देर रात, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 में संशोधनों को नोटिफाई किया। मंत्रालय ने कहा, "ये संशोधन सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत मध्यस्थों के उचित परिश्रम संबंधी दायित्वों के ढांचे को मजबूत करते हैं।"
मंत्रालय ने कहा कि समीक्षा में "सीनियर लेवल की जवाबदेही सुनिश्चित करने, गैरकानूनी सामग्री की सटीक पहचान करने और हायर लेवल पर सरकारी निर्देशों की समीक्षा के लिए अतिरिक्त सुरक्षा उपायों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।"
कानून में क्या हैं प्रमुख बदलाव?
एक प्रमुख संशोधन यह है कि गैरकानूनी जानकारी को हटाने की कोई भी सूचना अब केवल "संयुक्त सचिव या समकक्ष पद से नीचे का न हो, या जहां ऐसा पद नियुक्त न हो, वहां निदेशक या समकक्ष पद का अधिकारी और जहां ऐसा अधिकृत हो, वहां अपनी अधिकृत एजेंसी में एक संबंधित अधिकारी के माध्यम से कार्य करते हुए ही जारी की जा सकेगी, जहां ऐसी एजेंसी नियुक्त की गई हो।"
इसमें आगे कहा गया है कि पुलिस अधिकारियों के मामले में, "केवल पुलिस उप महानिरीक्षक (DIG) के पद से नीचे का कोई अधिकारी, जिसे विशेष रूप से अधिकृत किया गया हो, ही ऐसी सूचना जारी कर सकता है"। पहले, पुलिस निरीक्षकों को भी ऐसे निर्देश जारी करने का अधिकार था।
तर्कसंगत सूचना की आवश्यकता को शामिल करना
एक अन्य महत्वपूर्ण संशोधन विशिष्ट विवरण के साथ तर्कसंगत सूचना की आवश्यकता को शामिल करना है। "सूचना में कानूनी आधार और वैधानिक प्रावधान, गैरकानूनी कृत्य की प्रकृति और हटाए जाने वाली सूचना, डेटा या संचार लिंक का विशिष्ट URL/पहचानकर्ता या अन्य इलेक्ट्रॉनिक स्थान स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट होना चाहिए।"
मंत्रालय ने यह भी कहा कि इन सभी सूचनाओं की मासिक समीक्षा की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि "ऐसी कार्रवाइयां आवश्यक, आनुपातिक और कानून के अनुरूप बनी रहें"।
इसमें कहा गया है, "संशोधन नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों और राज्य की वैध नियामक शक्तियों के बीच संतुलन बनाते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रवर्तन कार्रवाई पारदर्शी हो और मनमाने प्रतिबंधों का कारण न बने।"
कौन जारी कर सकता है निर्देश?
मंत्रालय के बयान के एक भाग को "अपेक्षित प्रभाव" नाम दिया गया है और इसमें स्पष्ट दिशानिर्देश दिए गए हैं कि "कौन निर्देश जारी कर सकता है और कैसे, समय-समय पर समीक्षा के साथ, जांच और संतुलन सुनिश्चित किया जा सकता है"।
"विस्तृत और तर्कसंगत सूचनाओं को अनिवार्य करके, मध्यस्थों को कानून के अनुपालन में कार्य करने के लिए बेहतर मार्गदर्शन मिलेगा। सुरक्षा उपाय और आनुपातिकता: ये सुधार आनुपातिकता सुनिश्चित करते हैं और आईटी अधिनियम, 2000 के तहत वैध प्रतिबंधों को सुदृढ़ करते हुए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखते हैं।"
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