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बलूच नेता बरहमदाग बुगती को शरण देने का मुद्दा फिर पकड़ेगा जोर

बलूच नेता ब्रह्मदत्त बुगती को राजनैतिक शरण देने का मुद्दा आगामी संसद सत्र के दौरान जोर-शोर से उठ सकता है।

By kishor joshiEdited By: Published: Sun, 06 Nov 2016 07:57 PM (IST)Updated: Mon, 07 Nov 2016 02:21 AM (IST)
बलूच नेता बरहमदाग बुगती को शरण देने का मुद्दा फिर पकड़ेगा जोर

संजय मिश्र, नई दिल्ली।उड़ी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक समेत हर मोर्चे पर सख्ती दिखा रही केन्द्र सरकार को बलूच नेता बरहमदाग बुगती को राजनीतिक शरण देने के लिए सियासी दबाव से रूबरू होना पड़ सकता है। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राजनीतिक शरण देने के लिए कानून बनाने संबंधी पूर्व विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर के निजी विधेयक को लोकसभा में पेश करने की मंजूरी दे दी है।

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निजी बिल पेश करने की इस मंजूरी केमद्देनजर संसद के शीत सत्र के दौरान बुगती के राजनीतिक शरण पर सियासी बहस एक बार फिर तेज होना तय माना जा रहा है।

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दिलचस्प बात यह है कि पाक की कमजोर नस दबाने को बलूचिस्तान के मुद्दे को जोर से उठा चुकी सरकार पर बुगती को शरण देने का दबाव बढ़ाने की पहल इस बार विपक्षी खेमे की ओर से है। कांग्रेस सांसद थरूर ने शरणार्थियों के लिए कानून बनाने की जरूरत के मद्देनजर पिछले साल ही अपने निजी विधेयक का प्रस्ताव लोकसभा सचिवालय को दिया था। प्रक्रिया के तहत इस प्रस्ताव को सचिवालय ने गृह मंत्रालय को वैधानिकता की कसौटी पर परखने के लिए भेज दिया था।

गृह मंत्रालय ने भी इस निजी विधेयक को पेश करने में किसी तरह का एतराज नहीं जताते हुए इसे राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेज दिया था। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही सांसद को सदन में निजी विधेयक पेश करने की इजाजत मिलती है। लोकसभा सचिवालय से मिली जानकारी के मुताबिक थरूर के बाद इसी विषय पर बीजेडी सांसद रविंद्र कुमार जेना के निजी विधेयक को भी राष्ट्रपति ने अपनी मंजूरी दे दी है।

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जाहिर तौर पर लोकसभा में जब इन निजी विधेयकों को पेश किया जाएगा तो भारत में राजनीतिक शरण मांगने के बुगती के लंबित आवेदन पर सरकार से सवाल-जवाब होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लालकिले से बलूचिस्तान का मुद्दा उठाने के बाद से ही दुनिया भर में निर्वासित बलूच नेताओं और लोगों की सक्रियता बढ़ गई है। बुगती ने सितंबर महीने में उड़ी की घटना के बाद भारत में शरण लेने के लिए दुबारा अपना आवेदन जेनेवा में भारतीय मिशन को सौंप दिया था।

गृह मंत्रालय ने बुगती के आवेदन पर विचार करने की बात भी कही थी। लेकिन भारत-पाक संबंधों की जटिलताओं तो दूसरी ओर राजनीतिक शरण देने पर कोई कानून नहीं होने की दुविधा सरकार के लिए चुनौती है। इसीलिए बुगती के आवेदन पर सरकार जल्दबाजी में कोई फैसला लेना नहीं चाहती।

स्विटजरलैंड में निर्वासित जीवन बिता रहे बुगती ने 2010 में भी भारत में शरण के लिए आवेदन किया था। वैसे1959 में तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के चीन से निर्वासित होने पर उन्हें बतौर भारत के मेहमान के रुप में रहने की इजाजत दी गई। उन्हें वोट देने के अलावा नागरिकों के सारे अधिकार भी हासिल हैं। मगर तकनीकी रुप से गृह मंत्रालय की फाइलों में यह राजनीतिक शरण नहीं है। इसीलिए सरकार पर इस बारे में स्पष्ट कानून बनाने का दबाव निजी विधेयकों के जरिए डालने की कोशिश होगी।

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