गोल्ड लीजिंग का नया ट्रेंड, अब सोने से भी होगी कमाई; ब्याज दर देखकर फटी रह जाएंगी आंखें
सोने की कीमतों में उछाल के साथ, गोल्ड लीजिंग निवेशकों के बीच एक लोकप्रिय विकल्प बन रहा है। अमीर निवेशक अब अपने सोने को ज्वैलर्स को किराए पर देकर ब्याज कमा रहे हैं, जिससे सोना एक इनकम देने वाला एसेट बन गया है। भारत में त्योहारों और सप्लाई की कमी के कारण लीज रेट बढ़ गए हैं, और डिजिटल गोल्ड ऐप्स ने भी निवेशकों को यह अवसर प्रदान किया है।
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सोने से कमाई का नया तरीका गोल्ड लीजिंग का ट्रेंड (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सोने की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के बीच निवेशकों में एक नया ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है गोल्ड लीजिंग या सोना किराए पर देना। पहले लोग सोना खरीदकर बस लॉकर्स में रख देते थे, लेकिन अब कई अमीर निवेशक इसे ज्वैलर्स, रिफाइनर्स और मैन्युफैक्चरर्स को किराए पर देकर ब्याज कमा रहे हैं। इससे सोना जिसे हमेशा 'नॉन-यील्डिंग' यानी बिना ब्याज वाला माना जाता था, अब इनकम देने वाला एसेट बन रहा है।
Monetary Metals के सीईओ कीथ वीनर के मुताबिक, "लोग अब सोना खरीदकर बस उसके 5 हजार डॉलर तक पहुंचने का इंतजार नहीं कर रहे, बल्कि उससे कमाई कर रहे हैं।" भारत में भी इस ट्रेंड की मांग तेजी से बढ़ रही है।
भारत में भी फैल रहा यह बिजनेस
भारत में त्योहारों, शादी सीजन और सप्लाई की कमी की वजह से लीज रेट 2-3% बढ़कर 6-7% तक पहुंच गए हैं। डिजिटल गोल्ड ऐप्स और सरकारी गोल्ड मॉनेटाइजेशन स्कीम ने आम निवेशकों को भी यह मौका देना शुरू कर दिया है।
कुछ कंपनियों के मुताबिक, 2025 में लीजिंग वॉल्यूम 2 मिलियन से बढ़कर 40 मिलियन तक पहुंच गया है। कई हाई-नेटवर्थ निवेशक लाखों डॉलर के गोल्ड बार्स को लीज पर देन में दिलचस्पी ले रहे हैं।
कैसे काम करता है गोल्ड लीजिंग?
- निवेशक अपना सोना किसी लीजिंग प्लेटफॉर्म या फाइनेंशियल संस्था को देते हैं।
- प्लेटफॉर्म वह सोना ज्वैलर्स, रिफाइनर्स या मैन्युफैक्चरर्स को उधार देता है।
- ये कंपनियां उस सोने से आभूषण या प्रोडक्ट नातीहैं और बेचकर भुगतान करती हैं।
- निवेशक को ब्याज सोने में मिलता है, जो 2-7% सालाना तक हो सकता है।
लीज खत्म होने पर निवेशक को उतना ही सोना और उस पर मिला अतिरिक्त सोना (ब्याज) वापस उनके डिजिटल अकाउंट में मिल जाता है। यही वजह है कि इसे पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन और महंगाई से बचाव का अच्छा तरीका माना जा रहा है।
गोल्ड लीजिंग के जोखिम
- डिफॉल्ट का जोखिम:- अगर ज्वैलर या रिफाइनर दिवालिया हो जाए को सोना वापस नहीं मिलता।
- कीमतें बढ़ने का जोखिम:- लीज के दौरान सोने की कीमत बढ़ जाए तो निवेशक उसे बेचने का मौका गंवा देता है।
- लिक्विडिटी का जोखिम:- सोना तुरंत वापस न मिल पाने की संभावना रहती है।
- ऑपरेशनल और सुरक्षा जोखिम:- सोना ट्रांसपोर्ट या इस्तेमाल में खोने, चोरी होने का जोखिम।
- इंटरेस्ट रेट रिस्क:- ब्याज महंगाई या दूसरे निवेश विकल्पों से कम पड़ सकता है।
छोटे निवेशकों के लिए क्या ये सही है?
- कंपनियां आमतौर पर बड़ी मात्रा में सोना स्वीकार करती हैं।
- जरूरत पड़ने पर सोना तुरंत वापस नहीं मिलता।
- यह विकल्प मुख्यत: बड़े निवेशकों व संस्थाओं के लिए होता है।
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