एमसीआई से एनएमसी तक, भ्रष्टाचार से निपटने की चुनौती बरकरार; CBI की एफआईआर ने उठाए कई गंभीर सवाल
मेडिकल शिक्षा में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए एमसीआई को भंग करके एनएमसी की स्थापना की गई थी। सीबीआई की एफआईआर ने एनएमसी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। 2010 में एमसीआई के तत्कालीन अध्यक्ष की गिरफ्तारी हुई थी। सीबीआई की जांच में स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के शामिल होने के आरोप लगे हैं।

नीलू रंजन, जागरण। नई दिल्ली। एमसीआई से लेकर एनएमसी तक मेडिकल कॉलेजों को मान्यता देने और सीटें बढ़ाने में भ्रष्टाचार से निपटने की चुनौती बरकरार है।
मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) को भंग कर नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) की स्थापना की मुख्य वजह मेडिकल शिक्षा के पूरे तंत्र में घुन की तरह से घुस चुके भ्रष्टाचार को खत्म कर एक पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त प्रणाली लाने की कोशिश थी।
एनएमसी की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल
लेकिन सीबीआई की एफआईआर में जिस तरह से सुव्यवस्थित तरीके से भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है, उसने एनएमसी की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है। इसी तरह से सीबीआई ने फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया में कालेजों को मान्यता देने में इसी तरह से बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का खुलासा किया है।
2010 में एमसीआई के तत्कालीन अध्यक्ष की हुई थी गिरफ्तारी
ध्यान देने की बात है कि 2010 में एमसीआई के तत्कालीन अध्यक्ष केतन देसाई को दो करोड़ रुपये की रिश्वत लेने के साथ ही भ्रष्टाचार के कई आरोपों में सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। भ्रष्टाचार में आकंठ डुबे होने के आरोपों में घिरे एनसीआई के बोर्ड को भंग कर उसका काम बोर्ड ऑफ गवनर्स (बीओजी) को दिया गया था।
एमसीआई के संगठनात्मक ढांचे में अंतर्निहित भ्रष्टाचार को देखते हुए मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में 2019 में एनएमसी के गठन का फैसला किया और संसद से इसकी मंजूरी भी ली। लेकिन सीबीआई की एफआईआर में स्वास्थ्य मंत्रालय के आठ अधिकारियों के साथ-साथ एनएमसी के एक अधिकारी के शामिल होने के आरोपों से साफ है कि पिछले पांच सालों में मेडिकल शिक्षा से जुड़े माफिया पूरी प्रणाली में सेंध लगाने में सफल रहे हैं।
CBI ने सामने रखे कई सबूत
2010 और 2025 की सीबीआई की एफआईआर भ्रष्टाचार के समान तरीके की पुष्टि कर रहे हैं। जिनमें संबंधित कालेजों के निरीक्षण की तारीख की जानकारी पहले बता देना सबसे अहम है। इसके कारण मेडिकल कॉलेज निगरानी के दिन भाड़े के प्रोफेसरों और फर्जी मरीजों का बंदोवस्त करने में सफल होते थे। सीबीआई ने छापे में इसके पुख्ता सबूत मिलने का दावा किया है। इसके साथ ही निरीक्षण करने वाली टीम की ओर से रिश्वत लेने और उसके हवाला के जरिये पहुंचाने के भी सबूत मिले हैं।
जांच में स्वास्थ्य मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी का नाम नहीं आया सामने
मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता की जिम्मेदारी संभालने वाले एनएमसी और स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी खुद ही उसमें पलीता लगाने का काम कर रहे थे। गनीमत है कि अभी तक सीबीआई की जांच में एनएमसी और स्वास्थ्य मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी का नाम सामने नहीं आया है, जैसा कि 2010 में एमसीआई के प्रमुख केतन देसाई की गिरफ्तारी के साथ हुआ था।
मेडिकल शिक्षा में भ्रष्टाचार के दीमक को जड़ से उखाड़ने के लिए अभी काफी कुछ करना होगा, सिर्फ एमसीआई की जगह एनएमसी बनाने भर से काम नहीं चलेगा।
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