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    '...तो फिर वक्फ ट्रिब्यूनल को सुनवाई का अधिकार नहीं', हाईकोर्ट ने किसके पक्ष में सुनाया फैसला?

    आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने वक्फ ट्रिब्युनल के अधिकार क्षेत्र पर महत्वपूर्ण फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि यदि सिविल कोर्ट ने वक्फ कानून 1995 से पहले फैसला सुनाया है कि संपत्ति वक्फ नहीं है तो ट्रिब्युनल को सुनवाई का अधिकार नहीं है। न्यायमूर्ति सुब्बा रेड्डी सत्ती ने यह फैसला कालीमेला किरन कुमार की याचिका पर दिया।

    By Mala Dixit Edited By: Abhinav Tripathi Updated: Sat, 05 Jul 2025 06:52 PM (IST)
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    जब सिविल कोर्ट ने दे दिया फैसला, फिर वक्फ ट्रिब्यूनल को सुनवाई का अधिकार नहीं। (फाइल फोटो)

    माला दीक्षित, नई दिल्ली। वक्फ ट्रिब्युनल के सुनवाई करने के अधिकार क्षेत्र पर आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि जिस मामले में सिविल कोर्ट वक्फ कानून 1995 लागू होने के पहले फैसला सुना चुका है कि संपत्ति वक्फ नहीं है तो उसके बाद वक्फ ट्रिब्युनल को उस मामले में सुनवाई करने का अधिकार नहीं है।

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    यह कहते हुए हाई कोर्ट ने ट्रिब्युनल के समक्ष लंबित मामला बंद कर दिया। फैसले से स्पष्ट है कि जिन मामलों में 1995 का वक्फ एक्ट लागू होने से पहले सिविल कोर्ट द्वारा मालिकाना हक के बारे में निर्णय दिये जा चुके हैं उन मामलों में वक्फ ट्रिब्युनल को सुनवाई का कोई अधिकार नहीं है और न ही वक्फ इसंटीट्यूशन उस संपत्ति को विवाद रजिस्टर में रखने का अनुरोध कर सकता है।

    क्या था पूरा प्रकरण?

    यानी कोई कभी भी वक्फ ट्रिब्युनल जाकर किसी संपत्ति के वक्फ संपत्ति होने का दावा नहीं कर सकता। ये फैसला न्यायमूर्ति सुब्बा रेड्डी सत्ती ने गत 16 जून को कालीमेला किरन कुमार की रिट याचिका स्वीकार करते हुए दिया। कालीमेला की मांग थी कि वक्फ ट्रिब्युनल को उसकी संपत्ति के मालिकाना हक के बारे में सुनवाई से रोका जाए। मामला बंद करने का आदेश दिया जाए क्योंकि सिविल कोर्ट 45 साल पहले फैसला सुना चुकी है जिसमें कहा था कि संपत्ति वक्फ नहीं है।

    कोर्ट में क्यों दाखिल की गई थी रिट?

    कालीमेला को रिट इसलिए दाखिल करनी पड़ी क्योंकि सिविल कोर्ट से फैसला आने के साढ़े चार दशक बाद मजलूम शाह दरवेश तकिया एंड मस्जिद वक्फ के मुतवल्ली ने उसके खिलाफ वक्फ ट्रिब्युनल में वाद दाखिल कर गुंतूपल्ली गांव में स्थित उसकी संपत्ति का मालिकाना हक, वक्फ के हक में घोषित करने की मांग की थी।

    हाई कोर्ट के सामने विचारणीय प्रश्न था कि क्या जिस संपत्ति के बारे में सिविल कोर्ट 1978 में फैसला दे चुका है उसमें वक्फ ट्रिब्युनल को 2024 में दाखिल वाद पर सुनवाई का अधिकार है। क्या वक्फ ट्रिब्युनल उसका मालिकाना हक तय कर सकता है और सेल डीड रद कर संपत्ति पर कब्जा दे सकता हैं।

    वक्फ ट्रिब्युनल को सुनवाई का अधिकार नहीं

    हाई कोर्ट ने वक्फ कानून की धारा 7 उपधारा (5) और धारा 6 की उपधारा (1) की जांच की, जिसमें पाया कि अगर सिविल कोर्ट ने वक्फ कानून 1995 के लागू होने से पहले ही उस संपत्ति से संबंधित किसी मुद्दे पर फैसला दे दिया है, तो वक्फ ट्रिब्युनल को उसी मुद्दे पर फिर से सुनवाई का अधिकार नहीं है।

    हाई कोर्ट ने कहा कि जब सिविल कोर्ट ने पहले के मुकदमे में यह निष्कर्ष दर्ज किया है कि संपत्ति वक्फ संस्था की नहीं है तो वक्फ ट्रिब्युनल स्वामित्व की घोषणा के लिए साढ़े चार दशक बाद दायर किए गए मुकदमे पर सुनवाई नहीं कर सकती। एक बार अधिनियम की धारा 7(5) लागू हो जाने के बाद ट्रिब्यूनल किसी भी तरह से आगे के निर्णय के लिए अपनी फाइल पर मुकदमे को जारी नहीं रख सकती।

    ट्रिब्यूनल के पास इसका क्षेत्राधिकार नहीं

    ट्रिब्यूनल के पास इसका क्षेत्राधिकार नहीं है।इस मामले में हाई कोर्ट ने वल्लूरी शिव प्रसाद बनाम जिला रजिस्ट्रार, रजिस्ट्रेशन स्टैम्प्स, गुंटूर मामले में दिए पूर्व फैसले को उद्धत किया है जिसमें ये माना गया था कि निजी व्यक्ति और वक्फ बोर्ड के बीच किसी मुकदमे में अगर कोई फैसला फाइनल हो गया है तो वह रेस जुडिकाटा के रूप में काम करेगा।

    यानी उसमें फिर केस नहीं दाखिल होता। हाई कोर्ट ने कहा कि इसलिए वक्फ इस्टीट्यूशन रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 22-ए के तहत विवाद रजिस्टर में संपत्ति रखने का अनुरोध नहीं कर सकती।

    हाई कोर्ट ने याचिका पर उठाए सवाल

    कोर्ट ने ये भी कहा कि वक्फ संस्था, राज्य का एक अंग होने के नाते, सिविल कोर्ट द्वारा पारित फैसला रद्द नहीं कर सकती है। इस मामले में मुतवल्ली और वक्फ बोर्ड की दलील थी कि सर्वे कमिश्नर के सर्वे में 7 दिसंबर 1955 को संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित किया गया था और गजट में अधिसूचित थी लेकिन हाई कोर्ट ने ये दलीलें नहीं मानी।

    हाई कोर्ट ने कहा कि सिविल कोर्ट ने 30 सितंबर 1978 को दिए फैसले में कहा है कि संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं है। हाई कोर्ट ने सिविल कोर्ट के फैसले के साढ़े चार दशक बाद ट्रिब्युनल में वाद दाखिल करने पर भी सवाल उठाया।