'सरकारी कर्मचारी की मानसिक रूप से अक्षम संतान परिवार पेंशन का अधिकारी', मद्रास हाई कोर्ट का फैसला; जानें पूरा मामला
मद्रास उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि सरकारी कर्मचारी की मानसिक रूप से अक्षम संतान परिवार पेंशन की हकदार है आय प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है। मेडिकल प्रमाण पत्र पर्याप्त है जो आजीविका कमाने में अक्षमता दर्शाता है। पेंशन एक अधिकार है खैरात नहीं। अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के पहलू के रूप में देखा जाना चाहिए।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। परिवार पेंशन के अधिकार पर मद्रास हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए कहा है कि सरकारी कर्मचारी की मानसिक रूप से अक्षम संतान परिवार पेंशन पाने की अधिकारी है और उसे आय का प्रमाणपत्र नहीं दिखाना होगा।
हाई कोर्ट ने कहा कि उसके लिए मेडिकल सार्टिफिकेट दिखाना पर्याप्त होगा, जिसमें उसे शारीरिक अक्षमता के चलते आजीविका कमाने में असमर्थ बताया गया हो। हाई कोर्ट ने ये भी कहा कि पेंशन को एक अधिकार माना गया है ये कोई खैरात या उपहार नहीं है। जब इसका लाभ मानसिक रूप से असमर्थ को देने की बात आए तो अथॉरिटी को तत्परता दिखानी चाहिए।
ऐसा दृष्टिकोण ही उस परोपकारी उद्देश्य को पूरा करेगा और उसे प्रभावी बनाएगा जिसके लिए विधायी नियम बनाए गए हैं। उन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकारी) के एक पहलू के रूप में देखा जाना चाहिए।
जानिए हाईकोर्ट ने क्या कहा?
मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच के न्यायाधीश जीआर स्वामीनाथन और जस्टिस के. राजशेखर की पीठ ने 19 जून 2025 दिए फैसले में सेंट्रल सिविल सर्विस रूल (सीसीएस पेंशन रूल 54(6) का जिक्र किया जिसमें कहा गया है कि अगर सरकारी कर्मचारी का बेटा या बेटी किसी विकलांगता या मानसिक रूप से अक्षम है जिसमें मेंटली रिटायर्ड होना शामिल है, और उसके कारण वह 25 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद भी जीवकोपार्जन यानी आजीविका कमाने में असमर्थ है तो उस बेटे या बेटी को जीवनभर परिवार पेंशन मिलेगी।
आय का प्रमाणपत्र पेश करने की जरूरत नहीं
कोर्ट ने कहा कि जब विधायी नियम सिर्फ डॉक्टर या मेडिकल बोर्ड के सार्टिफिकेट की बात करते हैं, जिसमें मृतक कर्मचारी के उस बेटे या बेटी के मानसिक या शारीरिक विकलांगता के कारण जीवकोपार्जन में असमर्थ बताया गया हो, तो अथॉरिटी इसके अलावा और कुछ नहीं मांग सकतीं। इसके लिए सभी स्त्रोतों से होने वाली आय का प्रमाणपत्र पेश करने की जरूरत नहीं है।
हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा ही नियम तमिलनाडु पेंशन रूल्स में भी है। फैसले में सुप्रीम कोर्ट के 1995 के भगवंती ममतानी बनाम भारत सरकार के फैसले का भी हवाला दिया है जिसमें सीसीएस (पेंशन) रूल 1972 की धारा 54 (6) का जिक्र करते हुए मानसिक रूप से अक्षम बेटी को परिवार पेंशन पाने का अधिकारी बताया था। जिस मामले में खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है उसमें प्रिंसपल एकाउंटेंट जनरल ने रिट अपील दाखिल की थी जिसमें एकल पीठ के आदेश में की गई कड़ी टिप्पणियों को हटाने की मांग थी। यह मामला मानसिक रूप से अक्षम बच्चे को परिवार पेंशन से जुड़ा था।
जानिए क्या था पूरा मामला
इस केस में प्रतिवादी एवी जेराल्ड के पिता सरकारी कर्मचारी थे और उसने मानसिक रूप से अक्षम अपने छोटे भाई के लिए परिवार पेंशन की मांग की। लेकिन जब कोई नतीजा नहीं निकला तो उसने हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की और हाई कोर्ट की एकल पीठ ने याचिका स्वीकार करते हुए पेंशन का आदेश दिया। जिसके खिलाफ प्रिंसपल एकाउंटेंट जनरल ने खंडपीठ में अपील की थी।
अपील पर सुनवाई के दौरान खंडपीठ को बताया गया कि एकलपीठ के आदेश पर अमल किया जा चुका है। यहां मामला सिर्फ एकलपीठ की सख्त टिप्पणियों को हटाने की मांग का है। लेकिन खंड पीठ ने मामले में दिए आदेश में विकलांग बच्चे के परिवार पेंशन पाने के अधिकार पर कानून बताते हुए व्यवस्था दी है। फैसले में कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस रहे जस्टिस टीएस अरुणाचलम की मानसिक रूप से अक्षम बेटी को परिवार पेंशन के मामले का भी जिक्र किया है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।