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    Exclusive Interview: 'ग्राम स्वराज के सपने को पूरा करेगा विधेयक', 'जी-रामजी' बिल और क्या बोले शिवराज सिंह?

    By ASHUTOSH JHAEdited By: Abhishek Pratap Singh
    Updated: Sat, 20 Dec 2025 08:51 PM (IST)

    केंद्र सरकार ने मनरेगा की जगह 'विकसित भारत-जी रामजी' नाम से नया कानून पेश किया है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा देना है। ग्रामीण विकास मंत् ...और पढ़ें

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    केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान। (फाइल फोटो)

    आशुतोष झा और अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। ग्रामीण रोजगार नीति में बड़ा बदलाव करते हुए केंद्र सरकार ने मनरेगा की जगह विकसित भारत-जी रामजी नाम से नया कानून लाया है। संसद के दोनों सदनों से पारित इस कानून के बारे में सरकार का कहना है कि सिर्फ नाम का नहीं, काम का भी बदलाव है। नए कानून में रोजगार के दिन बढ़ाए गए हैं, काम तुरंत मिलेगा। पारिश्रमिक भी बढ़ेगा।

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    कानून की मंशा, उपयोगिता और अमल के बारे में कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान से दैनिक जागरण के राजनीतिक संपादक आशुतोष झा और विशेष संवाददाता अरविंद शर्मा ने विस्तार से बात की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश:

    केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान से विशेष बातचीत

    आप कहते हैं कि 'जी-रामजी' विधेयक गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को पूरा करेगा, लेकिन विपक्ष इसे सिर्फ नाम बदलने की कवायद बता रहा है। कैसे साबित करेंगे कि यह काम का भी बदलाव है?

    देखिए, गांधी जी ऐसा गांव गांव चाहते थे जो स्वावलंबी हो, जहां रोजगार हो, बुनियादी जरूरतें गांव में ही पूरी हों और लोग सम्मान के साथ जीवन जिएं। इसी सोच को केंद्र में रखकर यह विधेयक लाया गया है।इस कानून की दो बुनियादी विशेषताएं हैं। पहली, रोजगार की कानूनी गारंटी को 100 दिनों से बढ़ाकर 125 दिन किया गया है। यह सिर्फ घोषणा नहीं, कानूनी गारंटी है, जिसे केंद्र और राज्य दोनों को मानना होगा।

    दूसरी मनरेगा योजना में गांव के विकास का सुविचारित खाका नहीं था। क्या बनेगा, क्यों बनेगा और उसका दीर्घकालिक लाभ क्या होगा, इसपर गंभीरता से काम नहीं हुआ। अक्सर ऐसा हुआ कि एक साल तालाब खोदा गया, अगले साल फिर वही खोद दिया गया और तीसरे साल पानी भरने के बाद फिर खोदाई। इससे न तो गांव को फायदा हुआ और न ही टिकाऊ परिसंपत्ति बनी। शिकायतें आने लगीं तो तय किया गया कि एक नया, स्पष्ट और परिणामोन्मुख कानून लाना जरूरी है।

    नई योजना में 50 प्रतिशत तक मैटेरियल कंपोनेंट रखा गया है, ताकि मजदूरी के साथ स्थायी परिसंपत्तियों का निर्माण हो। मनरेगा में अब तक दस लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो चुके हैं, लेकिन बुनियादी ढांचा दिखाई नहीं देता। अब चार स्पष्ट श्रेणियों में काम तय किए गए हैं-जल संरक्षण, आधारभूत संरचना, आजीविका से जुड़े कार्य और ऐसे काम जो प्राकृतिक आपदाओं में भी गांव के काम आएं। ये काम ग्राम समितियां तय करेंगी, लेकिन लक्ष्य होगा स्थायी और उपयोगी संपत्तियों का निर्माण।

    इतने बड़े पैमाने पर काम के लिए तो बहुत बड़ी राशि की जरूरत होगी?

    बिल्कुल होगी, और इसी वजह से हमने बजट में बड़ा इजाफा किया है। प्रस्तावित बजट 1 लाख 51 हजार 282 करोड़ रुपये है, जो एक साल में खर्च किए जाएंगे। आगामी बजट में इसका प्रविधान किया जा रहा है। जरूरत होगी तो बजट और बढ़ाया जाएगा।

    अब गांवों में आजीविका से जुड़े काम भी होंगे। पहले जहां-जैसा मन किया, वैसा करा लिया। अब ऐसा नहीं होगा। इस योजना को पीएम गतिशक्ति से जोड़ा गया है, ताकि पहले से तय हो कि कौन सा काम प्राथमिकता का है। ग्राम समितियां तय करेंगी कि गांव को क्या चाहिए और क्या नहीं। सोच-विचार के बाद ही काम स्वीकृत होंगे।

    हम विभिन्न विभागों के साथ मिलकर काम करेंगे। खेती को एकीकृत तरीके से आगे बढ़ाया जाएगा, जिसमें पशुपालन, मछली पालन, मुर्गी पालन, कृषि और वानिकी को जोड़ा जाएगा।

    पूरी बहस के दौरान यह सवाल उठा कि अगर उद्देश्य विकास ही था तो क्या योजना का नाम बदलना जरूरी था?

    किसी योजना का नाम बदलने से किसी का मान-अपमान नहीं जुड़ा होता। हमारे पास लंबी सूची है कि कांग्रेस सरकार ने कब-कब योजनाओं के नाम बदले। जवाहर रोजगार योजना का नाम बदला गया तो क्या जवाहरलाल का अपमान हो गया? मनरेगा का नाम शुरू में नरेगा था। 2009 में चुनावी कारणों से गांधी का नाम जोड़ा गया। शुरुआत में ही नाम क्यों नहीं रखा गया?

    सच यह है कि कांग्रेस ने मनरेगा को कमजोर कर दिया। पूरे कार्यकाल में उन्होंने करीब दो लाख करोड़ रुपये ही खर्च किए। मोदी सरकार में अब तक आठ लाख करोड़ से ज्यादा खर्च हुए हैं। श्रमिकों की संख्या बढ़ाई गई, लेकिन सच बताऊं तो इसमें गंभीर खामियां थीं। भ्रष्टाचार, मशीनों से काम, ठेकेदारों का वर्चस्व। कई जगह कागजों पर काम था। इसलिए जरूरी था कि इसे पारदर्शी तकनीक से समृद्ध किया जाए और बापू की मूल भावना को साकार किया जाए।

    नाम बदलने से क्रियान्वयन तो नहीं बदलता। विवाद की आशंका थी, फिर भी यह कदम क्यों उठाया?

    हमारा जोर नाम पर नहीं, काम पर है। सच्चाई यह है कि कांग्रेस ने गांधी जी के विचारों का सबसे ज्यादा अपमान किया। गांधी जी ने कहा था कि आजादी के बाद कांग्रेस को लोकसेवक संघ बना देना चाहिए, लेकिन सत्ता के लालच में ऐसा नहीं किया गया। बापू की इच्छा के विरुद्ध देश का विभाजन हुआ। आपातकाल लगाया गया। दिल्ली में साधु-संतों पर गोलियां चलीं। घोटालों ने देश की छवि बिगाड़ी।

    भाजपा की पंच निष्ठाओं में गांधी का सामाजिक और आर्थिक दर्शन मूल में है। मोदी जी, बापू का सम्मान करते हैं। एक सांसद की टिप्पणी पर उन्होंने साफ कहा था कि बापू का अपमान बर्दाश्त नहीं होगा।

    मनरेगा मांग आधारित योजना थी। 15 दिनों के भीतर काम देना होता था। नई व्यवस्था में क्या होगा?

    पहले समस्या थी कि मांग आने पर कोई भी काम पकड़ा दिया जाता था, ताकि पैसे निकाले जा सकें। नई व्यवस्था में काम पहले से तय रहेगा। जब तक नया कानून पूरी तरह लागू नहीं होता, तब तक भी रोजगार मिलता रहेगा। नई व्यवस्था में आज मांगा तो कल काम मिलेगा, क्योंकि योजनाएं ग्राम पंचायत ही बनाएगी और वही उसे स्वीकृत करेगी। काम पहले से तय होंगे-जैसे स्कूल भवन या जल संरचना समेत कोई भी काम। जैसे ही कोई रोजगार मांगेगा, उसे तुरंत काम दिया जाएगा। काम ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

    अगर किसी काम में पहले से 25 मजदूर लगे हैं और बाद में पांच और आ जाते हैं, तो बजट कैसे संभलेगा?

    यह ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी है कि वह समायोजन करे। इसी वजह से बजट बढ़ाया गया है। पहले बजट 88 हजार करोड़ रुपये का बजट था। सिर्फ कोरोना के समय एक बार 1.11 लाख करोड़ किया गया। अब काम बढ़ाया है तो पैसा भी बढ़ेगा।

    चूंकि क्रियान्वयन राज्यों को करना है, क्या उनसे सुझाव लिए गए?

    बिल्कुल। मनरेगा को लेकर लंबे समय से शिकायतें आ रही थीं। हमने राज्यों के मंत्रियों और अधिकारियों से पूछा कि इसमें क्या सुधार चाहिए। उन्हीं चर्चाओं से ये खामियां सामने आईं-भ्रष्टाचार, मशीनों से काम, ठेकेदारों की भूमिका, गैर-जरूरी कार्य।कई राज्यों में सड़क सफाई या नहर खुदाई जैसे काम हुए, जिनका कोई स्थायी लाभ नहीं था। पंजाब में मजदूरों ने बताया कि रोजगार नहीं मिल रहा। बंगाल में ठेकेदारों को फायदा पहुंचाया गया। डेढ़ साल तक लगातार विचार-विमर्श के बाद यह कानून लाया गया।

    नई स्कीम में गरीब राज्यों को 40 प्रतिशत खर्च करना है। वे यह पैसा कहां से लाएंगे?

    कोई राज्य गरीब नहीं होता। पहाड़ी और पूर्वोत्तर राज्यों को सिर्फ 10 प्रतिशत देना होगा। बाकी राज्यों को 60 प्रतिशत केंद्र देगा। मनोवैज्ञानिक पहलू भी है - जब अपना पैसा लगता है तो काम की गुणवत्ता बेहतर होती है। मनरेगा में पहले मैटेरियल कंपोनेंट 40 प्रतिशत होता था, लेकिन कई राज्यों में यह 26 प्रतिशत तक गिर गया, क्योंकि उन्हें मैटेरियल पर पैसा देना पड़ता था। इसलिए वे सिर्फ मजदूरी वाले काम कराने लगे। इससे भ्रष्टाचार में आसानी होने लगी। अब मानसिकता बदलनी पड़ेगी।

    केंद्र के पास निगरानी का क्या तंत्र होगा?

    निगरानी का तंत्र है और सुनवाई का भी। अगर रोजगार नहीं दिया तो बेरोजगारी भत्ता देना पड़ेगा। मजदूरी देर से देने पर प्रतिदिन 0.5 प्रतिशत अतिरिक्त भुगतान करना होगा। जियो-टैगिंग के जरिए निगरानी होगी। हर सप्ताह जनता को बताया जाएगा कि कितने मजदूर काम कर रहे हैं। मोबाइल से भी और पंचायत भवन में भी सूचना चिपकाई जाएगी। केंद्र भी देखेगा कि नियमों का पालन हो रहा है या नहीं।

    बेरोजगारी भत्ता और मजदूरी की दरें तय हो गई हैं?

    हां, दरें तय हैं और मजदूरी कम नहीं होगी, बढ़ेगी। एनडीए सरकार में मजदूरी 29 प्रतिशत बढ़ी है। प्रशासनिक व्यय भी छह से बढ़ाकर नौ प्रतिशत किया गया है। इसके लिए बजट में 13 हजार करोड़ रुपये रखे गए हैं, ताकि रोजगार सहायकों, पंचायत सचिवों और तकनीकी स्टाफ को बेहतर भुगतान मिल सके। अब उन्हें डेढ़ गुना ज्यादा मिलेगा।

    विपक्ष राजनीतिक अभियान चलाने की बात कर रहा है। क्या राजनीतिक लड़ाई बढ़ेगी?

    भ्रम फैलाया जा रहा है। इन्हीं लोगों ने पहले भी योजनाओं के नाम बदले हैं। हम काम के आधार पर जवाब देंगे। हम सही जानकारी जनता तक पहुंचाएंगे। सवालकेंद्रीय मंत्री के तौर पर बताइए कि ग्रामीण विकास में राज्यों की भूमिका मजबूत हुई है या केंद्र का दखल बढ़ा है?उत्तरराज्यों को पूरी स्वायत्तता है। जिम्मेदारी दोनों की है। केंद्र सिर्फ यह देखता है कि दिशा-निर्देशों का पालन हो। पैसे का सही उपयोग हो। जहां राज्य सरकारें ठीक से काम करती हैं, वहां बेहतर नतीजे आते हैं। लेकिन जहां भ्रष्टाचार होगा, वहां कार्रवाई जरूरी है।

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